मोदी की नई सरकार: मुसलमानों को मिला क्या?

Beyond Headlines
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By Abdul Wahid Azad

चुनाव का एलान, मुहिम का शोर, नतीजे और नई सरकार का गठन… अब सारी प्रक्रियाएं पूरी हो चुकी हैं. इस पूरे क्रम में एक बात खुलकर सामने आई, जिस पर मीडिया में सन्नाटा है… वो है —मुसलमानों का गिरता मनोबल, बढ़ती मायूसी, गहराता डर, पसरती बेचैनी और इसके नतीजे में लोकतंत्र पर घटता विश्वास…

इसके लिए किसे इल्ज़ाम दिया जाए? जवाब साफ़ है— कोई भी क़ौम दूध की धुली नहीं होती और मुसलमान इसके अपवाद भी नहीं, लेकिन किसी भी ऐसे मामले में सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी बहुसंख्यक समुदाय की होती है… इस देश में बहुसंख्यक हिंदू है और तल्ख़ बात यही है कि इसका सबसे बड़ा ज़िम्मेदार वही है.

ज़रा ग़ौर करिए, इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 37.4 फ़ीसदी मत मिले. हिंदू वोटरों के बीच पार्टी की लोकप्रियता अपने चरम पर रही. 44 फ़ीसदी हिंदुओं ने बीजेपी को वोट किया, और याद रहे मुसलमानों की 8 फ़ीसदी आबादी ने भी उसे वोट किया.

अब हिसाब समझिए— देश में कुल वोटर 90 करोड़ हैं. यानि क़रीब 70 करोड़ वोटर हिंदू हैं. इसका मतलब हुआ- क़रीब 46 करोड़ हिंदुओं ने मतदान में हिस्सा लिया. इनमें से 44 फ़ीसदी ने बीजेपी को वोट किया यानी 20 करोड़ हिंदुओं ने बीजेपी को वोट किया. देश में क़रीब 13.5 करोड़ मुस्लिम मतदाता हैं, जिनमें करीब 9 करोड़ ने मतदान में हिस्सा लिया. 8 फ़ीसदी मुसलमानों ने बीजेपी को वोट किया. यानी 72 लाख वोटरों ने बीजेपी को वोट किया. यानी कांग्रेस के बाद इतनी बड़ी संख्या में मुसलमानों ने किसी दूसरी पार्टी को वोट नहीं किया है… इसका मतलब ये भी है कि बीजेपी को ईसाई और सिक्खों से ज़्यादा वोट मुसलमानों ने दिया.

मुसलमानों को मिला क्या?

आप देखिए— मोदी सहित उनकी कैबिनेट में 60 लोग है, जिसमें एक मुसलमान मंत्री बनाए गए हैं, जबकि दो सिक्ख, एक पारसी और एक जैन हैं.

अगर बीजेपी अपनी झोली में आए वोटों के आधार पर मंत्री बनाती है या काम करती है (जिसका उदाहरण मेनका गांधी का बयान है) तो उस हिसाब से भी मुसलमानों के साथ बेईमानी की गई है. अगर 20 करोड़ वोटों के आधार पर 50 से ज़्यादा हिंदू मंत्री बन सकते हैं यानी- क़रीब 40 लाख वोट पर एक मंत्री… तो इस हिसाब से भी मुसलमानों के दो मंत्री होने चाहिए…

सच ये है कि इस देश में हिंदुओं का बहुमत इस समय भक्ति भाव में जी रहा है, ज़हर भरे सपने की गोलियां ऐसी खाई है कि उसमें अच्छे-बुरे की तमीज़ जाती रही है… इसीलिए राह चलते किसी मासूम पर हमला हो जाता है, उसकी जान ले ली जाती है तो भी ऐसी घटनाएं उसे बेचैन नहीं करती… उसके नैतिक पतन का जीता-जागता उदाहरण है. इसलिए मुझे इतना ज्यादा मुश्किल हिसाब किताब करना पड़ है ताकि आपकी सोई हुई नैतिकता जाग उठे… ताकि आप अपने बहुसंख्यक होने का फ़र्ज़ निभाएं.

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