क्या ‘जय श्री राम’ या ‘जय हनुमान’ का नारा लगाकर किसी पर भी हमला जायज़ हो जाएगा?

Beyond Headlines
4 Min Read

By Dilnawaz Pasha

आप कितना भी चाहें कि लिंचिंग की तस्वीरें नहीं देखनी है. इस पर नहीं लिखना है. लेकिन पत्रकारिता की पेशेवर मजबूरियां हैं कि आपको ये तस्वीरें देखनी ही पड़ती है.

झारखंड में तबरेज़ पर भीड़ के हमले की तस्वीरें और वीडियो भी देखने पड़े. कोशिश की कि इस बारे में न लिखा जाए. न सोचा जाए. लेकिन जब भारत सरकार अधिकारिक तौर पर ये कह दे कि उसे अपनी धर्मनिरपेक्षता पर गर्व है और ठीक उसी दिन तबरेज़ की मौत की ख़बर आए. उसकी चीखें कानों में गूंजे. उसकी बेबस आंखें सवाल करें तो फिर कैसे ख़ुद को लिखने से रोका जाए?

ये कौन सा दौर है कि भीड़ एक व्यक्ति को धार्मिक नारे लगाकर मार रही है और लोग इसे भी जायज़ ठहरा रहे हैं? क्या जय श्री राम या जय हनुमान का नारा लगाकर किसी पर भी हमला जायज़ हो जाएगा?

तबरेज़ की मौत से ठीक पहले दिल्ली में एक मस्जिद के ईमाम पर हमले और जय श्री राम का नारा लगवाने की ख़बर आई. पुलिस ने इसे दुर्घटना का मामला बताया. जबकि पीड़ित बार-बार कह रहा था कि उसकी धार्मिक पहचान की वजह से उस पर हमला किया गया.

चलिए अमेरीका के विदेश विभाग की रिपोर्ट को दरकिनार कर देते हैं. लेकिन ये सवाल क्यों न पूछा जाए कि भीड़ के हमले के अधिकतर शिकार मुसलमान और दलित ही क्यों हैं. हिंसक भीड़ जय श्रीराम या जय हनुमान का नारा ही क्यों लगवा रही है. अभी तक किसी ने अल्लाह हू अकबर या या अली का नारा क्यों नहीं लगवाया? 

और भीड़ से ज़्यादा हिंसक क्या पुलिस का रवैया नहीं है जो पीड़ित को न्याय दिलाने के बजाए घटना की लीपापोती पर लग जाती है? ऐसी कितनी घटनाओं पर हम पर्दा डालेंगे? नज़रअंदाज़ करने की कोशिश करेंगे. अपनी न्यूज़ फीड में दिख रहे कितने बेबस लोगों को नज़रअंदाज़ करेंगे?

क्या धीरे-धीरे हम ऐसा भारत नहीं बना रहे हैं जहां धार्मिक पहचान ही सर्वोपरि हो गई है. हिंदू या मुसलमान का पता चलते ही लोगों का रवैया बदल जाता है. क्या होगा अगर कल इन घटनाओं की प्रतिक्रिया होने लगे? क्या फिर देश की शांति और अखंडता को बरक़रार रखा जा सकेगा?

तबरेज़ पर चोरी का इल्ज़ाम है. मान लिया कि वो चोर है. तो क्या अब चोरों को जय श्रीराम का नारा लगाकर पीटा जाएगा?

इस भीड़ में क़ानून का कोई डर क्यों नहीं है? जब बीस लोग हमला करते हैं तो कोई एक व्यक्ति ऐसा क्यों सामने नहीं आता जो उन्हें रोकने की कोशिश करें. हमला करने वालों की बढ़ती तादाद में बचाने वाले क्यों गुम हो गए हैं?

भीड़ के हमले से वीभत्स इस मामले में स्थानीय पुलिस का रवैया है. पुलिस ने बुरी तरह से घायल युवक को अस्पताल के बजाए जेल भेज दिया. वो बच सकता था लेकिन मर गया. और पुलिस के रवैये से भी वीभत्स है बहुसंख्यक समाज की इस मौत पर ख़ामोशी…

Share This Article