जामिया मिल्लिया इस्लामिया से ‘इस्लामिया’ शब्द हटाने का महात्मा गांधी ने किया था विरोध

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BeyondHeadlines News Desk

‘एक मौक़े पर जब गांधी जी को ये मालूम हुआ कि उनके एक क़रीबी साथी ने ये प्रस्ताव रखा है कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया अपना नाम बदल दे. इससे ग़ैर-मुस्लिम स्त्रोतों से फंड लाने में आसानी होगी, तो इस पर गांधी जी ने कहा, अगर “इस्लामिया” शब्द निकाल दिया गया तो उन्हें इस तालीमी इदारे में कोई दिलचस्पी नहीं होगी.’

इस बात का ज़िक्र प्रोफ़ेसर मो. मुजीब साहब ने अपने एक लेख ‘महात्मा गांधी और जामिया मिल्लिया इस्लामिया’ में किया है. उनका ये लेख 1969 में जामिया से निकलने वाली उर्दू मैगज़ीन ‘जामिया’ के नवम्बर अंक में छपा था.

यही नहीं, सैय्यद मसरूर अली अख़्तर हाशमी अपनी किताब में यह भी लिखते हैं, ‘गांधी ने न सिर्फ़ जामिया मिल्लिया के साथ “इस्लामिया” शब्द बने रहने पर ज़ोर दिया बल्कि वह ये भी चाहते थे कि इसके इस्लामिक चरित्र को भी बरक़रार रखा जाए.’

बता दें कि प्रोफ़ेसर मुहम्मद मुजीब (1902-1985) एक महान स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद और अंग्रेज़ी व उर्दू साहित्य के विद्वान थे. मुजीब साहब ने ऑक्सफोर्ड में इतिहास का अध्ययन किया. फिर मुद्रण का अध्ययन करने के लिए जर्मनी चले गए. वहां ज़ाकिर हुसैन से इनकी मुलाक़ात हुई. 1926 में अपने दो दोस्त आबिद हुसैन व ज़ाकिर हुसैन के साथ भारत लौटकर जामिया की सेवा में लग गए. 1948 से लेकर 1973 जामिया मिल्लिया इस्लामिया के वाइस चांसलर रहे. 1965 में भारत सरकार द्वारा साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किए गए.

(जामिया के संबंध में ये महत्वपूर्ण बातें पत्रकार अफ़रोज़ आलम साहिल द्वारा लिखित पुस्तक ‘जामिया और गांधी’ से ली गई है.)

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