क्या सिर्फ़ कंडोम भर बांट देने से इस देश से एड्स ख़त्म हो जाएगा?

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By Afroz Alam Sahil

नई दिल्ली: 01 दिसम्बर को ‘विश्व एड्स दिवस’ पर देश के तमाम छोटे-बड़े शहरों व गांव में एड्स के ख़िलाफ़ कार्यक्रमों का तांता लगा रहा. हज़ारों-हज़ार छात्र-छात्राएं, एन.एस.एस., एन.सी.सी. कैडेट्स, स्वास्थयकर्मी, समाजसेवी और राजनीति के पुरोधा इन कार्यक्रमों में शामिल हुए. सभी के ज़ुबान पर एक ही नारा गूंज रहा था —‘हमने यह ठाना है, एड्स को भगाना है.’ बीच-बीच में एड्स के ख़िलाफ़ जागरूकता हेतु भाषणबाज़ी, नुक्कड़-नाटक एवं काव्य पाठ की फुलझरियां भी छुटती रही. ऐसा नहीं है कि इस वर्ष ही एड्स के ख़िलाफ़ ऐसे कार्यक्रमों के साथ-साथ एक मेले का तुफ़ान आया हो, बल्कि ऐसा कार्यक्रम एवं मेला-ठेला इस दिन वर्षों से जारी है.

इन कार्यक्रमों के आयोजकों के उत्साह, समर्पण तथा परिश्रम को देखा जाए तो ऐसा लगता है कि एड्स इनसे भयभीत होकर आज ही देश छोड़कर भाग खड़ा होगा. लेकिन ऐसा नहीं हैं. भारत सरकार के खुद के आंकड़ें बताते हैं कि तमाम जागरूकता अभियान के बावजूद मुल्क में एड्स या एचआईवी पोजीटिव मरीज़ों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है.

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि देश में इस समय एड्स/एचआईवी संक्रमित लोगों की अनुमानित संख्या 21.40 लाख है. जबकि साल 2013 में ये आंकड़ा सिर्फ़ 6.32 लाख था.

आंकड़ें बताते हैं कि देश में सबसे अधिक एड्स/एचआईवी संक्रमित लोग महाराष्ट्र में हैं. यहां 3.29 लाख लोग एड्स/एचआईवी से संक्रमित हैं. वहीं दूसरा व तीसरा स्थान आंध्र प्रदेश व कर्नाटक का है. आंध्र प्रदेश में 2.70 लाख तो वहीं कर्नाटक में ये आंकड़ा 2.47 है. यहां यह स्पष्ट कर दूं कि सरकार ने ये आंकड़ें सिर्फ़ उन लोगों से तैयार किया है जो किसी न किसी तरह अस्पताल या जांच कैम्प तक गए.

जानकारों के मुताबिक़ अगर एड्स/एचआईवी के लिए जांच बड़े पैमाने पर गांव तक चलाई जाए तो यह आंकड़े और भी अधिक बल्कि देश को चौंकाने वाले हो सकते हैं.  क्योंकि आज भी देश में काफ़ी बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जिन्होंने रजिस्ट्रेशन नहीं कराया. जानकारों का यह भी मानना है कि एड्स नियंत्रण में लगी ज़्यादातर संस्थाओं का कार्यक्रम कागज़ातों, कम्प्यूटरों एवं बैनरों पर ही चलता है. चाहे वो सरकारी संस्थाएं हों या गैर-सरकारी…

यही नहीं, हमारे देश में एड्स से मरने वालों की संख्या में भी बेतहाशा वृद्धि हुई है. साल 1987 से लेकर साल 2012 तक एड्स से मरने वालों की संख्या जहां सिर्फ़ 12 हज़ार थी. वहीं स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि साल 2017-18 में 51,919 लोगों की जान एड्स/एचआईवी से गई. वहीं साल 2016-17 में मरने वालों की संख्या 49,630 और  साल 2015-16 में 49,593 लोग मरे थे.

सरकारी आंकड़ें यह भी बताते हैं कि जितनी तेज़ी से एड्स फैल रहा है, उतनी ही रफ़्तार से एड्स रोक-थाम कार्यक्रमों का ख़र्च भी बढ़ता जा रहा है. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय से उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि पिछले चार सालों में देश के विभिन्न एड्स नियंत्रण सोसाइटिज़ पर 3156.07 करोड़ खर्च किया जा चुका है. साल 2015-16 में 791.57 करोड़, साल 2016-17 में 906.89 करोड़ , साल 2017-18 में 844.71 करोड़ और साल 2018-19 में 612.88 करोड़ की रक़म खर्च की गई.

अब प्रश्न उठता है कि इतने सारे संगठनों के एड्स के विरूद्ध युद्ध में लगे रहने तथा हज़ारों करोड़ रुपये ख़र्च होने के बावजूद आख़िर इस बीमारी पर अंकुश क्यों नहीं लग पा रहा है? इस पहलू पर फिर से एक बार सोचने की ज़रूरत है कि क्या सिर्फ़ कंडोम भर बांट देने से एड्स इस देश से ख़त्म हो जाएगा?

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