नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने लिखी कविता, होली नहीं मनाने का ऐलान…

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BeyondHeadlines News Desk

नई दिल्ली: नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने भी ऐलान किया है कि वो इस बार होली का त्योहार नहीं मनाएंगे. उन्होंने कहा है कि जीवन में पहली बार होली नहीं खेलूंगा. मेरी दिल्ली में नफ़रत की आग ने बस्तियों को, खुशियों को, भरोसे को और इंसानों तक को ज़िंदा जला डाला. धुएं में सभी रंग काले पड़ चुके हैं. ईश्वर से प्रार्थना है कि जल्दी ही सारे रंग अपने सौंदर्य के साथ लौट सकें और हम इंसान बन सकें. उन्होंने इसे लेकर एक कविता भी लिखी है. इसे आप नीचे पढ़ सकते हैं —

हर साल होली पर

उगते थे इंद्र धनुष

दिल खोल कर लुटाते थे रंग

 

मैं उन्हीं रंगों से सराबोर होकर

तरबतर कर डालता था तुम्हें भी

तब हम एक हो जाते थे

अपनी बाहरी और भीतरी

पहचानें भूल कर

 

लेकिन ऐसा नहीं हो सकेगा

इस बार

सिर्फ एक रंग में रंग डालने के

पागलपन ने

लहू लुहान कर दिया है

मेरे इंद्र धनुष को

 

अब उसके खून का लाल रंग

सूख कर काला पड़ गया है

अनाथ हो गए मेरे बेटे के

आंसुओं की तरह

जिसकी आँखों ने मुझे

भीड़ के पैरों तले

कुचल कर मरते देखा है

जिस्म पर नाखूनों की खरोंचें और फटे कपड़े लिए

गली से भाग, जल रहे घर में जा दुबकी

अपनी ही किताबों के दम घोंटू धुएँ से

किसी तरह बच सकी

तुम्हारी बेटी के स्याह पड़ गए

चेहरे की तरह

 

आसमान में टकटकी लगा कर

देखते रहना मेरे दोस्त

फिर से बादल गरजेंगे

फिर से ठंडी फुहारें बरसेंगी

फिर इन्द्र धनुष उगेगा

वही सतरंगा इन्द्र धनुष

और मेरा बेटा, तुम्हारी बेटी, हमारे बच्चे

उसके रंगों से होली खेलेंगे…

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