क्या अर्दोगन की नेतागिरी ख़तरे में है?

Ajit Sahi
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जैसे ही किसी देश का लीडर राष्ट्रवाद या धर्म का नाम लेकर सरकारी क़दम उठाए आपको फ़ौरन पता करना चाहिए — इसकी नेतागिरी ख़तरे में है क्या?

दरअसल तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोगन के साथ यही हो रहा है. तुर्की की अर्थव्यवस्था बदहाल है. इस साल तुर्की की करेंसी, जिसे लीरा कहते हैं, तेरह फ़ीसदी गिर चुकी है. पिछले साल ये बीस फ़ीसदी गिरी थी.

उसके पिछले साल भी बीस फ़ीसदी गिरी थी. किसी देश की करेंसी की वैल्यू जब गिरती है तो पूरे देश पर उसका बहुत बुरा असर होता है. एक ओर विदेशी क़र्ज़ की अदायगी और महंगी हो जाती है. और दूसरी ओर विदेश से इंपोर्ट होने वाला सामान और भी महंगा हो जाता है. इससे महंगाई भी बढ़ती है और लोगों की आर्थिक संपन्नता भी कम होती है. यानी ग़रीबी बढ़ती है.

सरकारी आंकड़ों के हिसाब से तुर्की में महंगाई की दर बारह फ़ीसदी है. ये आंकड़ा भी फ़र्ज़ी है. असली दर इससे कहीं अधिक है. पिछले साल तुर्की की सरकार ने महंगाई की दर बीस फ़ीसदी बताई थी. लेकिन अमेरिकी अर्थशास्त्री स्टीव हैंक ने पिछले साल अनुमान लगाया था कि तुर्की में महंगाई की असली दर 43% के आसपास है.

ज़ाहिर सी बात है कि लोगों की आय उस अनुपात में नहीं बढ़ती है जितनी महंगाई बढ़ती है. पिछले साल जो दस हज़ार मिल रहे थे वो आज पांच हज़ार के बराबर हो चुके हैं.

तुर्की में बेरोज़गारी भी चरम पर है. कल ही तुर्की के Statitical Institute ने बताया कि देश का हर चौथा नौजवान बेरोज़गार है. सरकार के मुताबिक़ बेरोज़गारी की दर तेरह फ़ीसदी है. ये भी फ़्रॉड आंकड़ा है.

दरअसल कोरोना वायरस के दौर में अर्दोगन ने प्राइवेट कंपनियों में छंटनी पर रोक लगा दी है. लेकिन साथ ही सैलरी न देने की इजाज़त दे दी है. तो आज की तारीख़ में लाखों तुर्क बग़ैर पगार के घर बैठे हैं, लेकिन आंकड़ों में नौकरीशुदा हैं.

ज़ाहिर है महीनों बाद ये नौकरी पर नहीं लौट नहीं पाएंगे और आज नहीं तो कल, बेरोज़गार गिने जाएंगे. इसी महीने के आंकड़े बता रहे हैं कि रोज़गार दर 5% घट कर 41% पर आ गई है. यानी पांच में दो तुर्क ही नौकरीशुदा हैं.

पिछले तीन-चार सालों से तुर्की में उद्योग और व्यापार में भी काफ़ी मंदी आई है. मुनाफ़ों में भारी गिरावट आई है. विदेश निवेश पीछे हट रहा है. देशी कंपनियां भी व्यापार के विस्तार से चूक रही हैं. भवन निर्माण यानी कंट्रक्शन इंडस्ट्री तुर्की के जीडीपी का दस फ़ीसदी है. ये सेक्टर भी भयानक दौर से गुज़र रहा है. देश में लॉकडाउन करने के बावजूद अर्दोगन की हिम्मत नहीं हुई कि कंट्रक्शन पर रोक लगाई जाए. लिहाज़ा कई मज़दूर कोरोना की चपेट में आ गए. इससे मज़दूरों में नाराज़गी है. अर्दोगन के विरोध में प्रदर्शन भी हुए हैं.

2003 में पहली बार चुनाव जीत कर सत्ता हासिल करने के बाद अर्दोगन ने अर्थव्यवस्था बढ़ाने के लिए उधार लेकर जम कर पैसा ख़र्च किया. पहले पांच साल तो अर्थव्यवस्था बढ़ी भी. लेकिन फिर रफ़्तार धीमी होने लगी.

आज सरकार और निजी कंपनियों का क़र्ज़ पांच लाख करोड़ डॉलर हो चुका है. ये रक़म देश की जीडीपी का दो-तिहाई है. इसकी अदायगी कर पाना न सरकार और न ही निजी कंपनियों के बस की बात है. तुर्की पर दबाव बन रहा है कि वो International Monetary Fund से उधार लेकर अपनी माली हालत सुधारने की कोशिश करे. लेकिन IMF से लोन लेने का मतलब होगा कि सरकार पर और सरकारी कंपनियों पर होने वाले ख़र्चों में कटौती हो. वो भी अर्दोगन के बस की बात नहीं है.

तुर्की में सरकारी भ्रष्टाचार भी चरम पर है. ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल के मुताबिक़ भ्रष्टाचार से लड़ाई में पिछले साल दुनिया के 180 देशों में तुर्की 78वें नबंर पर था. इस साल वो गिर कर 91 नंबर पर पहुंच गया. यानी सिर्फ़ एक साल में भ्रष्टाचार ख़ासा बढ़ गया है. 2010 में ये 56 नंबर पर था. यानी दस साल में भ्रष्टाचार लगभग दोगुना हो चुका है.

इन सब कारणों से अर्दोगन का विरोध बढ़ रहा है. पिछले साल तुर्की के सबसे बड़े और सबसे अधिक आबादी वाले शहर इस्तांबुल में मेयर के चुनाव में अर्दोगन की पार्टी AKP की हार हो गई. अर्दोगन ने उस फ़ैसले को मानने से मना कर दिया और चुनाव अधिकारियों पर दबाव बनाकर तीन महीने बाद दोबारा चुनाव करवाया. दूसरे चुनाव में तो पार्टी और अर्दोगन को और भी मुंह खानी पड़ी. कई और शहरों में अर्दोगन की पार्टी को बुरी हार मिली है.

पिछले कुछ सालो में अर्दोगन ने देश भर में अपने विरोधियों को जेल भेजना शुरू कर दिया. हज़ारों पत्रकार, यूनिवर्सिटी प्रोफ़ेसर, एक्टिविस्ट, वकील, और जजों को भी या तो नौकरी से निकलवा दिया है या जेल में डाल दिया है. तुर्की की न्यायपालिका आज अपनी स्वतंत्रता खो चुकी है. पिछले हफ़्ते एमनेस्टी इंटरनेशनल के तीन मुलाज़िमों को अदालत ने आतंकवादी घोषित करके जेल की सज़ा सुना दी है.

अब तो आप जान गए कि अर्दोगन ने अचानक क्यों एक संग्रहालय को मस्जिद में तब्दील करने का फ़ैसला ले लिया. ये हमारे मोदी जी के मौसेरे भाई ही हैं.

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