लोकतांत्रिक देश में अलोकतांत्रिक कृत्य

Beyond Headlines
10 Min Read

Irshad Ali for BeyondHeadlines

पूरे देश के लोगों की दुआएं और देशी-विदेशी डॉक्टरों के तमाम प्रयास 23 साल की दामिनी को बचा न सकें. बेहतर इलाज के लिए उसे सिंगापुर के माउंट ऐलिजाबेथ अस्पताल में भेजा गया लेकिन वहां उसके शरीर के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया और दामिनी ने शनिवार की रात सवा दो बजे आखिरी सांस ली. जबकि सरकार अपनी जिम्मेदारियों से बचती रही और खोखले आश्वासन देती रही. इतना ही नहीं सरकार ने दिल्ली के मुख्य मेट्रों स्टेशन बंद कर दिये, इंडिया गेट तक पहुंचने के अन्य सड़क मार्ग भी बंद कर दिये. शनिवार को तो दिल्ली को दिन निकलने से पहले ही छावनी में तब्दील कर दिया गया.

जिस सरकार ने खुद को खतरे में डालकर अमेरिका से परमाणु क़रार किया, तमाम राजनीतिक दलों के विरोध के बावजूद एफडीआई पास करा लिया. वह सरकार आधी आबादी के लिए संसद का विशेष सत्र क्यों नहीं बुला रही ताकि महिलाओं की सुरक्षा, स्वतंत्रता की रक्षा के लिए मज़बूत से मज़बूत कानून बनाया जा सकें.

सरकार का आलम यह है कि सरकार के अभिजीत मुखर्जी जैसे नुमांइदे जब तुच्छ बयान देंगे तो दरिंदों के हौसले बढ़ेगें ही. कानून के रखवाले पुलिसवाले पीड़ितों के मामले दर्ज कराने के बजाय उनसे घिनौने सवाल पूछते हैं. जैसे फिल्म ‘वाटेंड’ में पुलिसवाला अभिनेत्री आयशा टाकिया से पूछता है, तो दुष्कर्म के मामले कैसे कम होगें.?

बात यहीं आकर नहीं रुकती बल्कि समाज की मानसिकता को भी दर्शाती है. अभी एक हफ्ते पहले की बात है. लड़कियां गैंगरेप पीड़ित लड़की को न्याय दिलाने के लिए प्रदर्शन करते हुए नारे लगा रही थी कि ‘हमारी मांगे पूरी करो’…’हमारी मांगे पूरी करो’…  तभी कुछ लड़कों ने अपनी तुच्छ और शरारती मानसिकता का परिचय देते हुए माडिफाईड नारा दिया… ‘हमारी मांगे सिंदूर से भरो’. यह इस बात का सुबूत है कि जो लोग ऐसी मानसिकता रखते है, वे बेखौफ है, उनमें कानून का डर नहीं है.

देश को विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का गौरव प्राप्त है. कानून भी यहां भरमार है लेकिन कानून कमजोर है, और कानून को लागू करने वाले ओर भी ज्यादा कमजोर हैं, तभी तो 16  दिसंबर के बाद से आज तक 12 से ज्यादा रेप केस सामने आ चुके है जिनमें 6 साल की बच्ची से लेकर 54 साल की महिला तक हवस का शिकार हुए हैं. लोगों की इंसानियत कितनी गिर गई है, इसको मापने का कोई पैमाना नहीं है. लोग ये तक भूल गए हैं कि वे अपने ही खून के साथ दुष्कर्म कर रहे है. देश में महिलाएं कितनी सुरक्षित हैं, इसकी गवाही ये आकड़े बयां करते है. 41 फीसदी लड़कियां सार्वजनिक परिवहन के इस्तेमाल करते वक्त या बस स्टैंड पर छेड़छा़ड़ की शिकार बनती हैं. 40 फीसदी सड़क किनारे चलते समय, 17 फीसदी बाजार-मॉल आदि भीड़भाड़ वाली जगहों पर और 2 फीसदी पार्क आदि में.

सवाल महिलाओं की सुरक्षा के अलावा देश की गरिमा का भी है. सच तो यह है कि दुनिया में अपना देश बदनाम हो चुका है और महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देश का दर्जा पा चुका है. अब यहां कि पुलिस और सरकार क्या क़दम उठायेगी या सब यूं ही चलता रहेगा, इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता.

देश के संविधान का अनुच्छेद 21 लोगों को जीवन जीने का अधिकार देता है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के अनुसार ‘नारी का उसके साथ शिष्ट और गरिमापूर्ण व्यवहार किये जाने का अधिकार’ तथा ‘सम्मान काअधिकार’ भी शामिल है. लेकिन महिलाओं को अपने मनोरंजन का साधन समझने वाले, महिलाओं के जीवन में डाका डालकर उसे खत्म करने पर उतारु हैं, हो भी क्यों नहीं..? उन्हें जिस पुलिस का डर होना चाहिए उसका दामन  पहले से ही दागदार है. सांसदों और विधानसभाओं के सदस्य भी दुष्कर्म के आरोपों से मुक्त नहीं हैं. संसद में कुछ सांसद तक अश्लील फिल्में देखते हुए स्टिंग आप्रेशन के कैमरे में कैद हो चुके हैं, तो ऐसे में किससे महिलाओं की सुरक्षा की उम्मीद की जाएं..?

जहां संविधान का अनुच्छेद 19(1)(घ) नागरिकों को भारत में कहीं भी घूमने की आजादी देता है वही खाफ पंचायते समाज के बिगड़े और दूषित मानसिकता के पुरुषों पर लगाम लगाने के बजाय महिलाओं पर ही तरह-तरह की पाबंदी के फरमान सुनाती रहती है. इतना ही नहीं नेताओं की भी महिला विरोधी टिप्पणियां आती रहती है.  संविधान के अनुच्छेद 39(ड) में पुरुषों और महिलाओं के स्वास्थ्य, शक्ति और बच्चों की सुकुमार अवस्था के दुरुपयोग को रोकने की जिम्मेदारी राज्य को देता है, लेकिन राज्य यहां भी अपने कर्तव्य से मुंह मोड़ता दिखाई देता है. अनुच्छेद 39 (च) बच्चों को स्वतंत्र व गरिमामय वातावरण में  विकास का प्रावधान करता है तो फिर छह बार फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद भी सुरेन्द्र कोहली जैसे दरिदें जिंदा क्यों है..?

महिलाओं के कपड़े उनके साथ दुष्कर्म या छेड़छाड़ का कारण नहीं हैं, क्योंकि अगर ऐसा होता तो गावों में पूरी साड़ी में लिपटी रहने वाली महिलाओं के साथ दुष्कर्म की घटनाएं न होती. इसकी असली वजह बदचलन, अश्लील फिल्में, कमजोर कानून, धीमी न्यायिक प्रक्रिया, सरकार की निष्क्रियता और सरकार की राजनीतिक लाभ के लिए ढीले कदम उठाने की प्रवृत्ति, दोषपूर्ण बच्चों का सामाजिकरण, समाज का नैतिक पतन और बेरोजगारी है. जबकि नागरिकों को संविधान के अनुच्छेद 51 क (च) के अनुसार, सभी लोगों में समरसता और भाईचारे की भावना का निर्माण करना है और ऐसी प्रथाओं का त्याग करना है, जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध है. सरकार को दुष्कर्म के मामले में सात साल के बजाय मृत्युदंड का प्रावधान करना चाहिए.

इतना ही नहीं देश की उन गली-मोहल्लों में, जो तंग है, जिनमें रात के अंधेरे में अनैतिक काम होते है, दूर दराज के स्कूलों में, दिल्ली में स्कूलों के बाहर लड़कियों के कपड़े फाड़े जाते है, कहीं लड़की के ऊपर तेजाब फेंका जाता है, इन सब से महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान किया जाना चाहिए. हम विश्व में सिर झुकाकर नहीं जी सकते और आधी-आबादी को असुरक्षा के माहौल में भारत कभी भी विश्व शक्ति बन ही नहीं सकता है क्योंकि महाशक्ति वही बन सकता है, जो पूरी तरह अंदर से मजबूत हो.

ऐसे लोगों पर रहम की कोई गुंजाईश नहीं बचती, क्योंकि अगर पीड़ित लड़की बच भी जाती है तो समाज में उसका तिरस्कार होता है. उसे हीन दृष्टि से देखा जाता है. सरकार को अपने राजनीतिक लाभ-हानि छोड़कर बिना वक्त गंवाए, संसद का विशेष सत्र बुलाना चाहिए और इस गंभीर मसले पर आरोपियों के लिए फांसी जैसे कठोर दण्ड की व्यवस्था करनी चाहिए.

पुलिस के रवैये में बदलाव किये जाने चाहिए और इनकी भर्ती के लिए एक ऐसा एग्जाम आयोजित किया जाना चाहिए जिससे पुलिसिया सेवा में आने से पहले महिलाओं के प्रति उनकी सोच और सामाजिक संवेदनशीलता जैसी सोच का पता लगाया जा सके और इस एग्जाम में फेल होने वालों को पुलिस सेवा से अयोग्य ठहरा देना चाहिए. क्योंकि पुलिस ही कोर्ट में किसी को न्याय या अन्याय दिलाने में मह्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है.

तमाम भारतीय खुद कसम लें कि वह भविष्य में कभी ऐसा कुछ नही करेंगे, जिससे महिलाओं के सम्मान को ठेस पहुंचे. वे कानून का पालन करें. सरकार को चाहिए कि वह कठोरतम कानून बनाए. सिर्फ कठोर कानून बनाये ही नहीं बल्कि उसका पूरी मज़बूती से पालन करवाये. हर आरोपी को उसके किये गए अपराध की सजा देना ज़रूरी है जिसे वह भोगे. संविधान की प्रस्तावना का पालन हो, जिसमें व्यक्ति के गरिमापूर्ण जीवन की रक्षा का वचन राज्य की तरफ से दिया गया हो.

बयानबाजी करने वाली सरकार अपने लोगों का विश्वास खोती जा रही है. अगर जल्दी से जल्दी सरकार की तरफ से राहत देने वाले फैसले नहीं लिए गये और दोषियों को जल्द से जल्द सजा नहीं मिली तो इसके दूरगामी दुष्परिणाम ये होगा कि लोग अपनी बेटियों का घर से निकलना बंद कर देंगे, जिससे उनका शैक्षिक, आर्थिक और मानसिक विकास अवरूद्ध हो जाएगा. सुप्रीम कोर्ट से लोगो को हमेशा न्याय की आशा रहती है. उसे भी अपनी जिम्मेदारी का परिचय देते हुए जब तक मज़बूत कानून अस्तित्व  में नहीं आता है. महिलाओं की सुरक्षा के लिए सरकार और पुलिस को उचित दिशा निर्देश देने चाहिए.

(लेखक भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयारी कर रहे हैं.)

Share This Article