Rakshpal Abrol for BeyondHeadlines
मुम्बई हमारे देश की आर्थिक राजधानी है. भारतीय रिजर्व बैंक का मुख्य कार्यालय मुम्बई स्थित है. भारत का सबसे बड़ा सट्टा बाजार मुम्बई माना जाता है. इस देश में इस नगर में सटोरियों का शासन चलता है. फिल्मो में इन सटोरियों का ही धन लगता है.
एक कहावत है कि बूंद-बूंद से भरे सरोवर… इन बूंदो की कीमत नहीं चुकानी पड़ती. हमारे राजनेताओं ने इसको अपनी गांठ में बांध लिया. हमने चार लड़ाईयां पिछले कुछ वर्षों में लड़ी. एक 1947 के पहले, आजादी की, फिर हमारे ही पड़ोसी सरकार चीन के साथ. उसके बाद हमारे द्वारा अग्रेजों के कहने पर पैदा किये गये हमारे ही भाई पाकिस्तान के साथ… तब बांगलादेश का जन्म नहीं हुआ था. यह बात 1965 की है.
हमारे उपर दो सीमाओं की जंग जारी था. एक तरफ था पश्चिम पाकिस्तान और दूसरी तरफ था पूर्वी पाकिस्तान… उस समय अमरीकी सरकार इन लोगो के साथ थी, क्योंकि हमने अमरीका से गेंहू आयात करना बंद कर दिया था. उस समय के हमारे प्रधानमंत्री थे स्वर्गीय श्री लाल बहादुर शास्त्री. हमारी अर्थव्यवस्था काफी संतुलित थी.
हमारे आज के दुनिया में सबसे प्रसिद्ध अर्थ शास्त्रीयों का तांता लगा हुआ था. रुपये की कीमत अमरीकी डालर के मुकाबले में एक रुपया एक डालर के बराबर था. लोग सट्टा खेलने के आदी नहीं थे. फिर हमने बांगलादेश को आजाद कराने की लड़ाई 1971 में लड़ी. उस समय भी अमरीका का साथ पश्चिम पाकिस्तान के साथ था.
यह हमको आज के अर्थ शास्त्रीयों ने अमरीकी चाल के चलते भुलवाने की गलत कोशिश की. इस समय चार अर्थ शास्त्री इस देश की बागडोर अपने हाथों में लेकर बैठे हैं. डा मनमोहन सिंह, डा मनटोक सिंह आहलूवालिया, श्री पी चिदम्बरम, अर्मत्य सेन… इन चारों की शिक्षा अमरीका में ही हुई है. इनके परिवार वाले आज भी अमेरीका का पैसा इस देश में लाने के उत्सूक हैं. आज हमारे देश में एक रुपये का नोट नहीं छापा जाता, क्योंकि सरकार के पास धन नहीं है. आज एक डालर की कीमत है इक्सठ रुपये. आज भी अमेरीका में एक डालर का नोट छपता है.
अमेरीका से हम गेंहू या चावल आयात नहीं करते. चमड़ा आयात नहीं करते. कपड़ा आयात नहीं करते. लोहा, पीतल, तांबा, जस्ता, नमक, शक्कर, पीने का पानी, दवाईयां, प्लास्टिक, रबर, डीजल पेट्रोल, खनिज पदार्थ, डिफेंस में काम आने वाली कोई भी वस्तु हमारे देश में अमेरीका से आयात नहीं की जाती, फिर हमारे देश के रुपये की तुलना डालर से क्यों?
इस देश पर अंग्रेजों ने अपना शासन 300 वर्ष किया. हमने उनके यहां प्रचलित पाउंड को हमारे देश में नहीं चलने दिया. फिर हमारी सरकार अमरीकी डालर की ही बात क्यों करती है? इंग्लैंड, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, रुस, जापान, कोरिया, चीन, अफगानिस्तान, दुर्बइ, नाईजीरिया, दक्षिण अफ्रीका, युगानडा, बांगलादेश, नेपाल, भूटान, मयंमार व अरब देश अपनी देश के धन को अमरीका के डालर से ज्यादा अहमियत देते हैं.
इन अर्थ शास्त्रीयों ने पूरे देश को जुए का अडडा बना दिया है. आम आदमी को इसका मोहरा. इनको न तो इस देश की पड़ी है न ही आम आदमी की कोई चिन्ता. बस एक ही रट लगाई जा रही है कि वह आम जनता को एक भिखारी के रुप मे अनाज सस्ते दामों में उपलब्ध करवायेंगे, बड़ो को लूटेंगे. किसान को कम दाम देंगे. वह तो आय कर भरता नहीं है. प्रत्येक वस्तु का उपयोग करता है चाहे वह गैस हो, विद्युत, सड़क, शिक्षा, रेलवे, पानी इत्यादी…
हमारे देश में किसानो की संख्या ज्यादा है. अर्थ शास्त्रीयों की संख्या कम है. उनकी संख्या भारत में वकीलों से भी कम है, इसलिए चार्टेड एकाउंटेंटो को ज्यादा अहमियत दी जा रही है. प्रत्येक आयकर देने वाले को चार्टैड एकाउंटेट से अपना आय-खर्च ऑडिट करवाना अनिवार्य किया गया है. वह आम आयकर देने वालों को लूट रहे हैं. उनका कानून संविधान के अन्तर्गत नहीं आ सकता, क्योंकि वह 1949 का है. हमारे मूलभूत अधिकारों का हनन करने वाले सभी अधिनियम अवैध हैं. ऐसी व्यवस्था अब तक अमरीका, इंग्लैंड, जर्मनी, जापान में नहीं है. इस लिए हमारा मानना है कि जिस देश का नेता अर्थ शास्त्री यानी जुआरी उस देश की जनता भिखारी. यही कारण है हमारे देश में भ्रष्टाचार फैल रहा है.
(लेखक भारतीय उद्यमी एंव उपभोक्ता संघ के अध्यक्ष हैं.)