Sonika Sharma for BeyondHeadlines
कोई भी व्यक्ति अपराधी अचानक नहीं बनता. परिस्थितियाँ, परवरिश और संगत इंसान को अपराधी बनवाने में कारगर सिद्ध होते हैं. किसी भी परिवार में बच्चे की परवरिश के समय जब हम देखते हैं कि बच्चा झूठ बोलना, गलत हरकतें करने, चोरी करना या मारपीट करने जैसे कामों में लिप्त होता है तो उसको मिलनेवाली “शह” या “रोक” बच्चे को अपराधी प्रवृत्ति कि ओर ले जाती है या उसके अपराधी मन की दिशा को बदल कर एक ईमानदार आदर्श बालक के रूप में परिवर्तित करने की कोशिश करती है.
हम देखेंगे कि बच्चे की परवरिश के समय बच्चे की गलत आदत को देखकर भी अनदेखा करते हुये बच्चे के दादा-दादी या नाना-नानी उसको शह देते हैं, जिससे उसे गलत कार्य करने पर सजा न मिलने की वजह से “गलत कार्य करना” उसकी दिनचर्या में शामिल होता चला जाता है और वह अपराध के नये-नये गुण सीखता चला जाता है जिससे बड़ा होकर उसका मन मजबूत व निर्दयी हो जाता है और वह चोरी-ड्केती या हत्या करने से नहीं घबराता. अगर हम विश्लेषण करेंगे तो हमें मालूम पड़ेगा कि उस बच्चे के अपराधी बनने में सबसे बड़ा हाथ दादा-दादी या नाना-नानी की वह शह थी जिसने उस बच्चे की गलत हरकत पर रोक लगाने की अपेक्षा उसे शह देना ज़रूरी समझा.
आज हमारे देश की पुलिस प्रशासनिक व्यवस्था के अधिकारी यह कहते हैं कि “जनता हमारा साथ नहीं देती इसलिये अपराध पर लगाम लगाना हमारे लिये बहुत मुश्किल हो जाता है” हमारा यह कहना है कि क्या पुलिस प्रशासन ने ऐसी कोई व्यवस्था की है, जिससे पीड़ित व्यक्ति जब कभी पुलिस प्रशासन के पास जाकर सहायता प्राप्त करने की कोशिश करे तो उसके साथ कैसा व्यवहार किया जा रहा है. यह (CCTV Camera) या अन्य साधन का उपयोग करके अधिकारियों या मीडिया के सामने आ सके.
जैसे एक बच्चे की छोटी सी गलती को हम संज्ञान में लेते हुये उस पर अंकुश लगाने की कोशिश करते हैं. उसी प्रकार क्या छोटे-छोटे वे अपराध जैसे छीना-झपटी, मोबाईल चोरी करना, धमकी देना, दादागिरी करना, छेड़खानी करना जैसे अपराधों पर शुरूवात में ही लगाम नहीं लगाई जाये तो बड़े होकर बड़े-बड़े अपराधी बनकर क्षेत्र में आतंक फैलाने का काम करते हैं. मगर हमारे देश में ऐसे छोटे अपराधी पर लगाम इसलिए नहीं लगाई जाती क्योंकि इस कार्य में किसी भी प्रकार से पुलिस अधिकारी या हवलदार वगैरह को ऊपरी आमदनी न के बराबर मिल पाती है. इसलिये वे ऐसे अपराधों को अनदेखा तो करते ही हैं साथ ही एक प्रकार से उनके विरुद्ध कार्यवाही न करके ऐसे अपराधियों को बड़े-बड़े अपराध करने के लिये प्रेरित भी करते हैं. जिसकी वजह से एक आम इंसान जो शरीफ नागरिक बनकर जिन्दगी बिता सकता है, एक नामचीन मँजा हुआ अपराधी बन जाता है. आज अगर हम चाहें तो ऐसा कोई भी अपराध नहीं है जिसे हम आधुनिक तकनीक का सहारा लेकर उजागर न कर सकें.
पुलिस प्रशासन में “Cyber Crime Branch” क्यों बनाया गया है? इसलिये न कि “चंद पलों” में इस “तकनीक” का उपयोग करते हुये “अपराध होते ही अपराधी” को “चिन्हित” कर लिया जा सके, मगर ऐसा महसूस होता हैं कि हमारी पुलिस व्यवस्था ही इन अपराधियों का साथ देती है जिसकी वजह से न तो अपराधी को चिन्हित किया जाता है और न ही पकड़ा जाता हैं. परिणाम यह होता है कि अपराधी के हौसले बुलन्द होते चले जाते हैं और वह अपराध पर अपराध करते हुये बड़े अपराधियों की फेहरिस्त में शामिल होता चला जाता है. हमारे संगठन के पास इसी प्रकार का एक मामला आया है जिसमें पीड़ित का मोबाईल उसकी खुद की दुकान से चोरी किया गया, जब वह उसकी शिकायत करने थाने गया तो उसकी शिकायत तो लिखी ही नहीं गई, बल्कि उसे प्रताड़ित भी किया गया और गालियाँ भी दी गईं जैसे वह “पीड़ित” नहीं बल्कि “अपराधी” हो. ऐसी अवस्था में एक “सामान्य नागरिक” तो अपना चाहे जितना नुकसान हो जाये, मगर वह कभी भी पुलिस विभाग में दुबारा जाने के बारे में सपने में भी नहीं सोचेगा.
(लेखिका भ्रष्टाचार विरूद्ध भारत जागृति अभियान से जुड़ी हैं.)