Poonam Kaushal for BeyondHeadlines
गाँधीनगर में घी की नदी के बाद अब सोशल मीडिया पर संवेदनाओं की नदी बह रही है. हम अचानक ही संवेदनशील हो गए हैं. सड़क पर घी बहा देखते ही कुपोषित बच्चों के चेहरे नज़र आने लगे है.
साढ़े पाँच लाख लोगों ने 16 करोड़ रुपये का घी बहा दिया. यानी औसतन हर व्यक्ति ने करीब एक किलो घी (कीमत लगभग 300 रुपये) माता पर चढ़ाया. प्रत्येक व्यक्ति का आँकड़ा चौंकाने वाला नहीं है. त्यौहार के दिन तीन सौ रुपये का चढ़ावा कोई बड़ी बात नहीं है.
लेकिन जब यही चढ़ावा सामूहिक रूप से सड़क पर बहता हुआ दिखा तो चौंकना लाज़मी है. संवेदनशील लोगों का माथा ठनकना भी लाज़मी है. दरअसल ये आस्था का मामला है. लोगों की माता में आस्था थी तो घी बहा दिया. सरकार में आस्था नहीं है, तो टैक्स बचाने का हर संभव प्रयास करते हैं. हज़ार रुपये इनकम टैक्स में बचाने के लिए पचास तरह के फ़र्ज़ी बिल लगाते हैं.
यही पैसा अगर टैक्स में चुकाया जाए तो माता के कुपोषित बच्चे के चेहरे भी लाल हो जाएंगे. लेकिन सवाल फिर आस्था का ही है. माता में आस्था है, सरकार में आस्था नहीं है!