Suresh Kumar Sharma for BeyondHeadlines
आपके बच्चे स्कूल जाते हैं? बच्चों के जीवन के कीमती वर्ष, अपना बहुत सारा पैसा बिता कर आप तथा आपका बच्चा पाता क्या है? परीक्षाएँ पास कर लेने के बदले एक मार्कशीट? जिसमें लिखा होता है कि आपके बच्चे ने किस विषय में कितने अंक पाए?
क्या आप जानते हैं कि इन अंकों का ये मतलब होता है कि जितने अंक आए हैं, इस वर्ष बच्चे ने जो निर्धारित पुस्तक पढ़ी है उस पुस्तक की उतना प्रतिशत विषय वस्तु की समझ आपके बच्चे को है. उदाहरण के लिए अंग्रेजी में अगर 100 में से 70 अंक आए हैं तो इसका अर्थ ये हुआ कि उसे अपनी पुस्तक का लगभग 70% भाग अच्छी तरह से समझ आता है. गणित में अगर 100 में से 82 अंक आते हैं तो इसका अर्थ होता है कि बच्चे को करने के लिए दिया जाए तो लगभग 82 प्रतिशत गणित वह कर के दिखा सकता है.
ज्यादा अंक आना इस बात का प्रमाण है कि आपके बच्चे को उन विषय की ज्यादा समझ है. यह मार्कशीट वैसे ही होती है जैसे एक किराणा व्यापारी बैग में 10 थैलियों में चीजें डाल कर हर वस्तु का नाम और वजन लिख कर आपको अलग से एक पर्ची पकड़ाता है. हर थैली में रखी वस्तु का नाम और उस थैली में रखी वस्तु का वजन लिखा हो तो आपको पूरा थैला देखना नही पड़ेगा. परंतु क्या कभी आप पर्ची पर भरोसा कर लोगे? या खोल खोल कर हर चीज की और उसके वजन की जाँच करोगे?
सोचिये, किसी दिन आपके घर के आगे एक गाड़ी आए. एक बड़ी सी बोरी जिसमें 5 किलो चीनी हो और बड़े बड़े अक्षरों में उस पर लिखा हो “वजन 100 किलो”. आकार इतना बड़ा कि आपके पड़ोसी भी पढ़ लें. वे भी आपके घर आई इतनी चीनी पर मुस्कुरा दें. क्या वजन पढ़ कर आप विक्रेता की तोली हुई 100 किलो चीनी मंजूर कर लेंगे? कम तोलकर ज्यादा दिखाने वाला दुकानदार अपना काम निरंतर करता जाए और ग्राहक 5 किलो तुली चीनी पर लिखे 100 किलो वजन को मंजूर करता जाए तो दुकानदार तो अमीर हो जाएगा परंतु जानबूझकर या अंजाने में ग्राहक को यह गलत आदत लग जाए तो वह बरबाद हो जाता है.
कल्पना करें आपने बच्चे को 10 किलो चीनी लाने के लिए भेजा, वजन उठाने के आलस या डर से वह 4 किलो ही चीनी लेकर आए तो क्या आपको मंजूर होगा? दुकानदार से उसका समझौता हो जाए कि वह हर बार कम तुलवा कर ज्यादा लिखा लाए तो स्थिति आपके लिए और खतरनाक हो जाती है. स्कूल में बच्चा जब पढ़कर वर्ष के अंत में मार्कशीट लेकर आता है तो अच्छे नम्बर देख कर हम खुश हो जाते हैं. अक्सर मिठाई भी बाँटते हैं. अच्छे नम्बर लाने के नाम पर बच्चे अक्सर घर में ईनाम भी पाते हैं. बिना तोले जब आप किराणे के व्यापारी के दिए गये थैले पर विश्वास नहीं करते तो स्कूल की दी गई मार्कशीट पर विश्वास कैसे कर लेते हैं?
भारत भर में आजकल स्कूलों में इस तरह की भारी ठगी चल रही है. अपने बच्चे के भविष्य के लिए आपको उन पर धन खर्च करने के अलावा और भी कदम उठाने होंगे. अन्यथा, अधिकाँश अभिभावक आज विद्यालयों में ठगे जा रहे हैं. चौकस अभिभावक भी आजकल इतना भर कर रहे हैं कि घर पर उसकी देखभाल करने के लिए अतिरिक्त धन और समय खर्च कर रहे हैं. ये वैसे ही है जैसे सिनेमा हॉल में टिकट कटा कर तीन घण्टे बरबाद भी करें और पिक्चर भी नहीं देखें. रास्ते में आते हुए उस पिक्चर की एक डीवीडी पर पैसा खर्च करें और घर पर तीन घण्टे और बरबाद करें.
बाजार की चीजें खरीदते हैं तो कम तोलकर ज्यादा लिखने पर आप दुकानदार के पास शिकायत के लिए जाते हैं. हैरानी की बात है कि स्कूल में आपके बच्चे को कम पढ़ाकर ज्यादा अंक दे दिये जाने पर खुश होते हो कभी शिकायत भी नहीं करते. कम तुले पर अधिक की पर्ची चिपकी देख कर आप खुश हो तो कौन अध्यापक आपके बच्चे को झूठे नम्बर देकर वजन नहीं बढ़ा देगा?
बोर्ड की परीक्षाओं और विश्वविद्यालयों में भी जान छुड़ाने के लिए परीक्षा कॉपियों में अधिक नम्बर दे दिये जाते हैं. क्या आप साहस करोगे कि उपभोक्ता अदालतों में ऐसे मामले लाकर शिक्षातंत्र पर सवाल उठा सको? इन तथ्यों पर आप खुद विचार करें और अन्य अभिभावकों को भी सोचने के लिए प्रेरित करें.