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मीडिया जगत की शब्दावली में शोषण शब्द है ही नहीं!

Anita Gautam for BeyondHeadlines

दूसरों को बेनकाब करने वाली मीडिया का एक वो दौर था, जब मीडिया जगत खोजी पत्रकारिता करते हुए अपनी लेखनी के बल से असंख्य बार रंगा-रंग कारनामे करने वालों को समाज के सामने लाया करती थी, वो चाहे बहुचर्चित तांत्रिक टाइप बाबा हो या कोई नेता… कोई कोना बाकी नहीं जहां इनका कैमरा न पहुंचता हो.

असल मज़ा तो फिल्म पिपली लाइव देख कर आता है जब नत्था के पीछे पूरा का पूरा मीडिया इस क़दर पड़ जाता है कि नत्था ने कब और किस जगह शौच किया,  मीडिया उसकी भी पूरी कवरेज करते नज़र आता है. दादागिरी के नाम पर किसी भी पुलिस वाले से सीना चौड़ा कर बोल दो, मैं फलाने चैनल से हूं, फिर चैनल के नाम का कमाल देखिए, दुनिया को अपने डंडे पर नचाने वाली पुलिस बरफी के बफ्फी की तरह बिना सवाल जवाब किए आपके इशारे पर किस क़दर नाचने लगती है.

चूंकि चारों अंगुलियां बराबर नहीं होती, एक तो अंगुठा भी होता है. पत्रकारिता जगत का भी यही हाल है. तमाम छात्र पत्रकारिता की पढ़ाई के साथ कहीं न कहीं मन में एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ लिए खोजी पत्रकार बनने की बखूबी कोशिश करते हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जो शार्ट-कट का इस्तेमाल अपनी सौंदर्यता, चाटुकता और चतुरता की कला के बलबूते कर रातों रात नीचे से उपर पहुंच जाते हैं…

बात सिर्फ उन युवाओं की ही नहीं है जो इस मैदान में पहला क़दम रखते हैं. लोग तो इतने कलाकार होते हैं कि जिसका कहीं नाम नहीं कोई पहचान नहीं रातों-रात न जाने कौन सा मंतर फुंक नेताओं के नज़दीकी और कैमरे के बेहतरीन रिर्पोटर बन जाते हैं.

हालांकि मैंने भी मीडिया जगत के उस रोशनी को बहुत नज़दीक से देख उस चमचमाते दिये के अंदर की कालिख को देखा है. आज जब मेरे साथ के वही लोग तरूण तेजपाल की बात करते हैं तो फिर एक बार मुझे वो पुराने दिन याद आ जाते हैं. पर तरूण तेजपाल तो मात्र एक नमुना है, न जाने ऐसे कितने तेजपाल अपना तेज हर रोज अलग-अलग मीडिया जगत में फैला रहे होते हैं और फिर मुझे हंसी आने लगती है जब कोई एंकर, वो भले कोई महिला हो या पुरूष जब चिल्ला-चिल्ला कर बोलता है कि तरूण तेजपाल ने यौन शोषण किया… इसमें कोई दो राय नहीं कि उसने क्या-क्या नहीं किया होगा.

आखिर उसके बाल ऐसे ही थोड़े ही ना पके हैं. बड़े पापड़ बेलने पड़ते हैं. तब जाकर कोई तहलका मचाने लायक बनता है. पर हैरत की बात है जो लोग कैमरे के सामने गला फाड़ इतने दिनों से बोल रहे हैं वो क्या अब तक किसी शोषण से बच पाए होगे? दोस्तों ये मीडिया है मीडिया… यहां वही चेहरा चमकता है जो खुब लिपापोती करवा चुका होता है, वरना पत्रकारिता का पाठ तो कईयों ने पढ़ा होता है…

हमारे पत्रकार बंधु भी अनेक श्रेणियों में बंटे हुए होते हैं. कोई अमीर पत्रकार होता है तो कोई बेचारा चप्पल घिसता हुआ पत्रकारिता की चूल्हें में खुद को रात दिन झोंक घर का चूल्हा जलाता है. तो कोई उपहार में तरक्की, आलीशान गाड़ी, विदेश टूर, लैपटॉप पाता है और कोई बेचारा प्रेस-विज्ञप्ति हाथ में थामे मुफ्त का 5 रूपये का पेन मिलना तो दुर एक बुंद पानी तक के लिए मर जाता है.

अजीब स्थिति है देश के इस बिकाऊ मीडिया की… हर बार लोगों को कटघरे में खड़ा कर सवालिया अंगुली उठाने वाले वो लोग खुद ही बच जाया करते हैं क्योंकि उनके हाथ में क़लम नामक लिगल हथियार जो होता है, जब और जैसे मन किया चला दिया. तरूण तेजपाल एक ऐसा मज़बूत नाम है जिसने कई बार देश की राजनीति में तहलका मचाया है, पर जब आज वो सामने आया है तो सरकार और कानून न जाने कौन से बिल में छुप गई है और छुपे भी क्यों ना आखिर मामा भी तो सरकार चलाने वालों का दायां-बायां हाथ हैं…

एक और सोचने वाली बात है मीडिया क्षेत्र में सुबह होते ही जब किसी की पदोन्नति हो जाती है तो कोई नहीं पूछता रात कौन सी काबिलीयत दिखाई थी पर जब शोषण की बात की जाए तो सब नज़रें चुराये घुमने लगते हैं. यहां यह कहना सरासर गलत होगा कि इस चमचमाती नगरी में सिर्फ महिलाओं का ही शोषण होता है बल्कि यहां पुरूषों का भी शोषण किया जाता है. यदि यही किसी आम आदमी ने किया होता तो पुलिस वाले चार डंडे मारकर जेल की हवा खिलाते. दूसरों को भ्रष्टाचारी बोलना बहुत ही आसान है पर मेरे हिसाब से भ्रष्टाचार का अर्थ सिर्फ चोरी, बेईमानी, धोखाधड़ी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वो लोग भी भ्रष्ट के श्रेणी में आते हैं जो दूसरों का शोषण करते हैं. वो चाहे मानसिक हो या शारीरिक… पर मीडिया जगत की शब्दावली में शोषण शब्द रखा ही नहीं गया है वो तो बस वाक्य बनाने के लिए प्रयोग होता है. फलाने ने शोषण किया… ढिमकाने ने शोषण किया… पर जब खुद की बात आती है तो बात वहीं दब जाती है. सच में कानून अंधा होने के साथ साथ उच्च स्तर का भेदभाव करने वाला है. मुझे नहीं लगता तेजपाल प्रकरण के बाद भी उस महिला पत्रकार को न्याय मिलेगा बजाय कहीं इज्ज़त की नौकरी मिलने के…

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