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सांप्रदायिक हिंसा विरोधी विधेयक का समर्थन और मुज़फ़्फ़रनगर दंगा पीडि़तों के पुनर्वास के लिए विरोध प्रदर्शन

BeyondHeadlines Event Desk

सरकार के बुलंद बांग दावों के बावजूद हिन्दुस्तान में सांप्रदायिक दंगों का अंतहीन सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार अभी तक हिन्दुस्तान में लगभग पचास हजार से अधिक दंगे हो चुके हैं. पिछले दो वर्षों के दौरान केवल उत्तर प्रदेश में एक दर्जन से अधिक बड़े दंगे हो चुके हैं. अगर छोटे दंगों की गिनती कर लें तो यह तादाद पचास से अधिक तक पहुंचती है. ऐसी स्थिति में ऐसे कानून की सख़्त ज़रूरत है जो दंगों को रोक सके. इसी बात को ध्यान में रखते हुए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय लायर्स फोरम सांप्रदायिक हिंसा विरोधी विधेयक का समर्थन और मुज़फ़्फ़रनगर दंगा पीडि़तों के पुनर्वास के लिए एक विरोध प्रदर्शन दिनांक 16 दिसम्बर, 2013 को 11 बजे दिन में दिल्ली के जंतर-मंतर पर आयोजित किया है. जिसमें मुज़्फफरनगर के दंगा पीड़ित भी भाग लेंगे.

स्पष्ट रहे कि कांग्रेस ने 2004 में अपने घोषणा-पत्र में सांप्रदायिक हिंसा विरोधी विधेयक लाने का वादा किया था. अगर यह बिल पास हो गया होता तो मुरादाबाद, गोपाल गढ़, टोन्क, उत्तर प्रदेश में सिलसिलेवार दंगे नहीं होते और न ही अन्य जगह वहशतनाक और अमानवीय हिंसा हुई होती. अब जबकि लोकसभा चुनाव का समय निकट आ रहा है और कांग्रेस को मुसलमानों का वोट दूर जाता नज़र आने लगा है तो उसने मौजूदा संसद सत्र में इस विधेयक को पेश करने की घोषणा की है. लेकिन कांग्रेस की नीयत बिल पास कराने की नहीं है.

इस कार्यक्रम के आयोजकों का कहना है कि यह दौर सरकार पर दबाव डालने का है. जो जितना वज़न और दबाव डाल पाते हैं उनके काम उतने ही आसानी से हो जाते हैं. जो हल्के और कमज़ोर होते हैं वह हवा में लटके रहते हैं. जैसा कि मुसलमान और उनकी समस्याएं हवा में ही लटकी हैं. यह समय मातम करने का नहीं, बल्कि एकजुट होकर अपने अधिकार और संविधान में दिए गए मूल अधिकार लेने का है. इस अवसर पर सरकार से हमारी कुछ मांगे हैं जो निम्नलिखित हैं :

1.             सांप्रदायिक हिंसा विरोधी विधेयक को तुरंत पास किया जाये. इसके लिए जो तरीके अपनाऐ जा सकते हैं वह सरकार अपनाए.

2.             मुज़फ़्फ़रनगर दंगे की सी.बी.आई. जांच करवाई जाए और सभी दंगा पीडि़तों का पुनर्वास और उनके नुकसान की पूर्ति की जाए.

3.             बलात्कार की शिकार महिलाओं को 25 लाख रुपये का मुआवज़ा दिया जाए और मुक़दमा चला कर दोषियों को जल्द से जल्द कठोर दंड दिया जाए.

4.             सरकार उन दंगा पीडि़तों को भूमि आवंटित करे जो अपनी ज़मीन और संपत्ति छोड़ कर आए हैं.

5.             शिविरों में जिन मासूम बच्चों की मौत हुई उनके पसमान्दगान को सिख दंगों की तरह मुआवजा दिया जाए.

6.             दंगा पीडि़तों को न्याय दिलाने के लिए फास्ट ट्रेक कोर्ट स्थापित किया. निर्भया की तरह कम समय में मुक़दमा का फैसला किया जाए.

7.             घायलों को दस लाख रुपये का मुआवजा और नौकरी दी जाए.

8.             मुज़फ़्फ़रनगर दंगों में बड़ी संख्या में लोग लापता हैं. सरकार लापता लोगों को उत्तराखंड की तरह दो महीने के अंदर मृत घोषित करके उनके घर वालों को मुआवज़ा दे.

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