Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines
सितंबर, 2013… उत्तर प्रदेश के ज़िला मुज़फ्फरनगर की हरी-भरी ज़मीन मासूमों के खून से लाल हो गई. सैकड़ों मारे गए… हज़ारों अपने ही देश में शरणार्थी हो गए… और लाखों के दिलों में हमेशा के लिए दहशत बैठ गई. सामाजिक ताने-बाने को तोड़ने वाली इस राजनीतिक साज़िश की ढ़ाल बनाया गया बेटियों को…
जनवरी, 2014… सहारनपूर… एक युवती ने एक युवक से अपनी मर्जी से विवाह किया… फिर मुज़फ्फरनगर दोहराने की साज़िश… लेकिन नाकाम…
चुनावी साल में बेटियां साम्प्रदायिक ज़हर फैलाने का ज़रिया बनकर रह गई हैं. बेटियों को आधार बनाकर सुनियोजित ढंग से नफ़रत को बढ़ावा दिया जा रहा है. उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर से शुरू हुई साज़िश फैलाने का यह खेल अब बिहार के चम्पारण तक पहुंच गई है. चम्पारण में बांटे गए एक उत्तेजक पर्चे की कॉपी BeyondHeadlines को मिली है, जो चम्पारण में एक भारी-भरकम साज़िश की ओर इशारा करते हैं.
इस साज़िश के केन्द्र में जो संस्था काम कर रही है, उसका नाम है ‘बेटी बचाओ-भारत बचाओ आन्दोलन समिति’. यह संस्था इन दिनों ज़ोर-शोर से चम्पारण ज़िले में ‘बेटियों का अस्तित्व खतरे में…’ नाम के पर्च के ज़रिए नफ़रत की सौग़ात बांट रही है.
यह पर्चा इस क़दर भयावह है कि इनके भीतर बहन बेटियों की इज़्ज़त और आबरू के नाम पर दो धार्मिक समूहों के बीच खून की खेती बो देने की पूरी आशंकाएं है.
इस पर्चे पर संस्था का पता D-195 इण्डस्ट्रियल एरिया, ओखला, नई दिल्ली दर्ज है. इसे एक रजिस्टर्ड संस्था बताया गया है. पर्चा लिखने वाले के ज्ञान का स्तर इस बात से रता चल जाएगा कि इसमें लिखा गया है, ‘संगीता बिजलानी, नयना साहनी, सुष्मिता बनर्जी जैसी विख्यात हिन्दू लड़कियां मुसलमानों के चक्कर में जान गंवा चुकी हैं.
आपके आस-पास भी ऐसी कई घटनाएं घट चुकी हैं. सावधान! अपने घर के भीतर किसी मुसलमान को न आने दें, ताकि हिन्दू कौम जीवित रह सके. प्रत्येक माता-पिता अपने बेटे-बेटियों को इस खतरे की जानकारी अवश्य देवें. अपने साथ घटित या आस-पास में घटी ऐसी घटना की जानकारी हमारी संस्था के ई-मेल पर अवश्वय भेजे.’
चम्पारण के बेतिया शहर में बांटा जा रहा यह पर्चा संविधान की एकता की भावना का खुला उल्लंघन हैं. एक ओर संविधान है जो सभी भारतीयों को एका साथ मिलजुल कर रहने के लिए कहता है और एक ओर ऐसी संस्थाएं हैं जो खुले आम नफ़रत को बढ़ावा देती हैं.
यह पर्चा इस क़दर भड़काऊ है कि हम इसके विषय-वस्तू को ज्यों का त्यों छाप भी नहीं सकते. मगर इसका लब्बो-लबाब यह है कि इसके ज़रिए हिन्दूओं को मुसलमान से अपनी बेटियां बचाने की न सिर्फ सलाह दी गई है, बल्कि खतरे व समाधान तक बताए गए हैं. उन्हें बरगलाने और दूसरे समुदाय के खिलाफ हिंसा का रास्ता अख्तियार करने को तैयार करने की क़वायद की गई है.
इसमें भड़काउ बातों के साथ-साथ इतिहास को भी तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है. पर्चे में लिखा है, ‘एक हिन्दू लड़की के मुसलमानों के यहां चले जाने से उसकी कई पीढ़ियां मुसलमान हो जाती हैं. इसी प्रकार से भारत में मुसलमानों की जनसंख्या बढ़ी है. ध्यान दें… अकबर ने एक हिन्दू युवती से विवाह किया था, लेकिन उसके पौत्र (पोते) औरंगज़ेब ने लाखों हिन्दुओं की हत्या की, सैकड़ों मंदिरों को तोड़ा, असंख्य गायों का क़त्ल किया और हज़ारों हिन्दू लड़कियों-स्त्रियों का शील भंग किया….’
यही नहीं, इस पर्च में मुज़फ्फरनगर दंगे की ज़िक्र करके भी लोगों को भड़काने की कोशिश की गई है.
चिंता की बात यह है कि ये भड़काऊ पर्चे प्रशासन की नाक के ठीक नीचे खुलेआम बांटे जा रहे हैं और प्रशासन इन्हें लेकर पूरी तरह लापरवाह है. ये अलग बात है कि यही प्रशासन मुहर्रम के मौके पर रात में निकाले जाने वाले आखाड़ा को रोकने के लिए मुसलमानों को दंगाई बना देने की धमकी भी दे चुकी है.
यहां पढ़िए : मुहर्रम पर जुलूस निकाला तो दंगाई बना देंगे!
यहां यह याद दिलाना ज़रूरी है कि हाल ही में नागपंचमी पूजा के दिन निकलने वाले महावीरी आखाड़े के मौक़े पर इसी चम्पारण में इस पर्व का मोदीकरण कर शहर का माहौल खराब करने की पूरी कोशिश की गई थी. लेकिन लोगों की सूझ-बूझ और क़ुदरती बारिश ने इस शहर को जलने से बचा लिया.
यहां पढ़िए : ‘They were Burning My City’
क्या बेतिया के ‘मोदीकरण’ से बिगड़ा है शहर का माहौल?
इस पूरे घटनाक्रम में भाजपा नेताओं का काफी सक्रिय भूमिका रही थी. उस दिन चम्पारण का सिर्फ बेतिया शहर ही इस ‘मोदियापे’ का शिकार नहीं हुआ था बल्कि आस-पास के कुछ गाँवों में भी हिंसा हुई थी. उनमें से साठी के चांदवाड़ा गांव प्रमुख है. यह सारी हिंसाएं पूरी तरह से नियोजित और प्रायोजित थी. बाद में पुलिस प्रशासन ने भी अपने साम्प्रदायिक ज़ेहनियत का परिचय दिया.
‘बैलेंसिंग थ्योरी’ के आधार पर कई बेगुनाहों की गिरफ्तारी की गई. वो अभी भी जेल हैं. इस पूरे घटना में एक मुस्लिम युवक को गोली भी लगी. लेकिन पुलिस प्रशासन से इसे गोली के बजाए पत्थर की चोट बताकर मुआवज़े की रक़म से बेदखल कर दिया. जबकि खुद सरकारी अस्पताल पीएमसीएच इसे गोली लगना बताया है.
यहां पढ़िए : ‘मोदियापे’ में झुलसने से बच गया एक शहर
चम्पारण सत्य के प्रयोग की ज़मीन रही है. चम्पारण ने देश और दुनिया दोनों को तरक़्क़ी और अमन पसंदगी का नायाब रास्ता दिखाया है. उसी चम्पारण की ज़मीन पर ज़हर की यह नई फसल सिर उठा रही है, यानी हालात बेहद संवेदनशील हो चले हैं और ऐसे में चुनावी आग की एक लपट इन हालातों को अपने मक़सद के लिए इस्तेमाल कर सकती है. उम्मीद है कि चम्पारण ऐसी साज़िशों को पहचानेगा और अपने इतिहास व गौरव दोनों की रक्षा के लिए ऐसी साज़िशों का मूंह-तोड़ जवाब देगा.
और एक सवाल बेटियों को भी खुद से करना है कि कब तक वे गंदी राजनीति को पूरा करना का ज़रिया बनती रहेंगी? क्या आजाद हिंदुस्तान की बेटियां अपने इस घिनौने इस्तेमाल के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा पाएंगी?