Mohd. Arif for BeyondHeadlines
जैसे जैसे चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, उत्तर प्रदेश की सियासत और भी गरमाती जा रही है. भारतीय जनता पार्टी, जो पिछले दो लोकसभा चुनावों से सत्ता का वनवास झेल रही है, वापसी के लिए अपने मूल हिन्दुत्ववादी विचारधारा और हिन्दू राष्ट्रवाद (मैं हिन्दू राष्ट्रवादी हूँ -मोदी) के सहारे इस वनवास से निकलने का जी तोड़ प्रयास कर रही है. इसीलिए संघ के समर्पित कार्यकर्ता और कट्टर छवि वाले नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया है.
वहीं दूसरी ओर, समाजवादी पार्टी जो फिलहाल सूबे की हुकूमत पर काबिज़ है, मुसलमानों की मदद से लोकसभा में दिल्ली की कुर्सी तक पहुंचना चाहती है. मुसलमानों के आपसी मतभेदों को भुलाकर उन्हें अपने साथ लाने के लिए समाजवादी पार्टी भरसक कोशिश कर रही है.
इस पूरे सियासी दांवपेंच में, अल्पसंख्यकों की सहानुभूति जुटाने और खुद को उनका मसीहा साबित करने की पुरजोर कोशिश की जा रही है. पिछले दिनों बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने मुसलमानों से माफ़ी मांगने का प्रस्ताव किया था, इसका उत्तर देते हुए मुलायम सिंह ने पहले क़त्ल कराने और फिर माफ़ी मांगने का आरोप लगाया था.
दूसरी ओर नरेन्द्र मोदी ने मुज़फ्फरनगर में मुसलमानों के क़त्ल का जिम्मेदार सपा को कहा है. समाजवादी पार्टी खुद को सेक्युलर बताती है और खुद को मुसलमानों का सच्चा हमदर्द जताने वाले मुलायम जहां बीजेपी को सांप्रदायिक और देश तोड़ने वाली पार्टी बतातें हैं, वहीं सपा का दामन भी दंगों के रंग में रंगा हुआ है.
सपा के कार्यकाल में अब तक 100 से ज्यादा दंगे हो चुके हैं. और उन पर मुलायम और उनकी पार्टी के नेताओं के शर्मनाक बयान जगजाहिर हैं. मुज़फ्फरनगर में जाट वोटों की खातिर सपा के लालच का परिणाम वीभत्स दंगे के रूप में सबके सामने है और मोदी ने जो कुछ गुजरात में किया, वही सब कुछ सपा ने पशिचमी उत्तर प्रदेश में किया है.
ऐसा लगता है सपा ने संघ और बीजेपी का एजेंडा यूपी में लागू करने की डील की हुई है. मोदी ने मेहसाना में एक सभा में गुजरात के दंगा पीडि़तों के राहत कैम्पों को बच्चे पैदा करने का डेरा कहा था. उन्होंने मुसलमानों पर अपमानजनक टिप्पणी करते हुए उन्हें हम पांच और हमारे पच्चीस का पैरोकार कहा था.
कुछ इसी तरह की बेहूदा और शर्मनाक टिप्पणी समाजवादी नेताओं ने मुज़फ्फरनगर के दंगा पीडि़तों पर करते हुए उन्हें भिखारी और बसपा-कांग्रेस का एजेंट करार दिया था.
अगर केवल मुज़फ्फरनगर के सवाल को देखें तो सपा और बीजेपी की नूराकुश्ती को समझा जा सकता है. उत्तर प्रदेश में लगभग 18 प्रतिशत मुस्लिम निर्वाचक हैं, लेकिन निर्णायक वोटों की दृष्टि से ऊपरी दोआबा और रोहेलखंड क्षेत्र अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं.
इन दोनों क्षेत्रों में मुसलमानों की टैक्टिकल वोटिंग ही हार जीत तय करती है. चूंकि बीजेपी के लिए यह लोकसभा चुनाव जीवन-मरण का प्रश्न बन चुका है. इसलिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम और अन्य पिछड़ी, दलित जातियों का गठजोड़ टूटना बीजेपी के लिए आवश्यक है.
साथ ही, समाजवादी पार्टी के लिए मुस्लिमों का एकजुट रहना आवश्यक है. इस कारण वोटों का ध्रुवीकरण करने के लिए सपा और बीजेपी की सांठगांठ को आसानी से समझा जा सकता है. इसे अंजाम देने के लिए संघ ने पुराने तरीके पर बहू बेटी बचाओ, लव जिहाद जैसे कंसेप्ट को जोर-शोर से प्रचारित कर दंगो की ज़मीन तैयार की.
बीजेपी दंगों के बाद से लगातार सपा हुकूमत पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाती रही है, जबकि खुद बीजेपी विधायक ठाकुर सुरेश राणा ने बार-बार कहा है कि बहू-बेटी के सम्मान के लिए 100 बार भी जेल जाने को तैयार हैं.
इसी तरह अन्य बीजेपी नेता भी समाजवादी सरकार की छूट का लाभ लेकर खुद को हीरो की तरह पेश करते रहे हैं. इसमें चार क़दम आगे बढ़कर बीजेपी ने मोदी की आगरा रैली में विधायक संगीत सोम और सुरेश राणा का सम्मान किया.
अपनी मुस्लिम हितैषी होने के तमाम दावों के बावजूद सपा ने न सिर्फ मुज़फ्फरनगर में मुसलमानों का कत्लेआम होने दिया बल्कि दंगा पीडि़तों के राहत शिविरों पर बुलडोज़र भी चलवाएं.
सपा हुकूमत में अस्थान,कोसी कलां से लेकर मुज़फ्फरनगर तक पूरे प्रदेश को पूर्वनियोजित दंगों में झोंक दिया गया. मुलायम ने इलाहाबाद में कहा है कि क्या बीजेपी मुसलमानों को बेवकूफ समझती हैं?
वस्तुत: ये सवाल सपा मुखिया को खुद अपने आप से करना चाहिए कि मुस्ल्म वोटों की मदद से सत्ता में आये मुलायम मुस्लिमों को जीवन और संपत्ति की सुरक्षा का अधिकार भी नहीं दे सके हैं, और सौ से ज्यादा दंगों के बाद भी वो किस तरह के सेक्युलर और मुस्लिमों के हमदर्द हैं कि दंगे रुक नहीं रहे हैं?
वास्तव में समाजवादी पार्टी ने बीजेपी के साथ मिलकर संघ के कारनामों को ही अंजाम देने का काम किया है. संघ से मुलायम की नज़दीकी को जुलाई में कारसेवकों पर गोली चलवाने की घटना पर माफ़ी से समझा जा सकता है.
ऐसी कौन सी वजह रही कि मुलायम ने 23 साल बाद संघ परिवार से सार्वजानिक रूप से खेद जाहिर किया. इसी क्रम में 84कोसी परिक्रमा से पूर्व अशोक सिंघल और मुलायम ने मुलाक़ात और बाद में दोनों ने बयानी नूराकुश्ती की.
सपा की बीजेपी के साथ नजदीकियां यहीं ख़त्म नहीं होती, बल्कि बात और आगे तक एक दुसरे के लिए वोट शिफ्ट करने की भी है. जहां कहीं भी सपा बीजेपी के प्रत्याशी जीत से दूर होते हैं, वहां पर ये एक दुसरे को स्पेस देने का भी काम करते हैं.
राजनाथ सिंह के खिलाफ सपा अपने प्रत्याशी नहीं लड़ाती है, तो इसके बदले में कन्नौज में उपचुनाव में बीजेपी ने जानबूझकर अपना प्रत्याशी नहीं घोषित किया. बीजेपी के साथ सपा का इस तरह का समझौता किस आधार पर होता है, अगर उनकी विचारधारा अलग-अलग है ?
मुसलमानों को विश्वस्त और समझदार बताने वाले मुलायम ने मुस्लिम मतदाताओं के साथ विश्वासघात किया है और बीजेपी के एजेंडे को ही आगे बढाया है. उनके सेक्युलर होने का अर्थ बिलकुल साफ़ है वोटों के बदले सुरक्षा का आश्वासन, जो कि दंगों का डर दिखा कर या गुजरात और मुज़फ्फरनगर की तस्वीर सामने रख कर प्रस्तुत किया जाता है. लेकिन अब असलियत खुल चुकी है. इस बार प्रदेश से सपा का सूपड़ा साफ होना तय है.