Anil Yadav for BeyondHeadlines
सोलहवीं लोकसभा चुनाव मे तमाम पार्टियो नें देश की आंतरिक व बाह्य सुरक्षा को मुद्दा बनाया है, परन्तु यदि हमभाजपा के घोषणा पत्र कोदेखें तो पता चलता है कि देश की सुरक्षा को लेकर वह कुछ ज्यादा ही गम्भीरहै. भाजपा ने अपने घोषणा-पत्र में खुफिया एजेंसियों को ‘और अधिक’ स्वायत्ता देने की बात कही है.
भारत के संविधान के प्रस्तावना में भारत के लोगों (हम भारत के लोग) को संविधान की शक्ति का स्रोत बताया है और यही शक्ति संसद के रूप में प्रतिबिम्बित होती है. लोकतंत्र की तमाम मशीनरी इसी संसद के प्रति जबावदेह है, परन्तु दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत की बिडम्बना है कि उसकी खुफिया ऐसेजियां संसद के प्रति जवाबदेह नहीं हैं.
आज जब हमारा देश 16वीं बार लोकतन्त्र की कसौटी पर परखा जा रहा है, तो जायज है कि सवाल उठे कि लोकतन्त्र के इस सफर में हम कहां तक पहुंचे हैं? आजादी के66 साल बाद हमारे रहनुमा लोकतंत्र, देश के लोगों की आजादी और उनकीसुरक्षा का मतलब क्या समझते हैं? क्या एक लोकतान्त्रिक देश में किसी संस्था को इतनी स्वयत्ता और स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए?
रिहाई मंच (आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों की लड़ाई लड़ने वाला संगठन)द्वारा जारी 25 सूत्री मांग-पत्र में खुफिया एंजेसियों को संसद के प्रतिजिम्मेदार बनाने की मांग प्रमुखता के साथ कही गयी है. देश के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी तक ने खुफिया एजेंसियों को संसद के दायरे में रखने की बात कही है.
देश में तमाम मानवाधिकार संगठनों ने खुफिया एजेंसियों की कार्य प्रणाली पर सवाल उठाया है, खासकर के आंतकवाद और आंतकवाद के नाम पर फंसाये गये बेगुनाहों के मामले में खुफिया एजेंसियों की भूमिका संदिग्ध पायी गयी है. साथ ही साथ यह भी देखा गया है कि इसकी स्वायत्ता व स्वतन्त्रता देश की संप्रभुता और लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए भी घातक है.
आंतकवाद व आंतकवाद के नाम पर हुई गिरफ्तारियों में आईबी समेत तमामखुफिया एजेंसियों की भूमिका संदिग्ध रही है. उत्तर प्रदेश में आर.डी.निमेष आयोग ने जिस तरह से तारिक और खालिद (उत्तर प्रदेश से हुए कचहरी बम विस्फोट के अभियुक्त) को निर्दोष बताते हुए आईबी और एटीएस के ऊपर सवालिया निशान लगाया है.
गौरतलब है कि आर.डी. निमेष की रिपोर्ट आने से पहले ही 18 मई 2013 कोमौलाना खालिद की हिरासत में मौत हो गयी. उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि भारत के इतिहास में यह पहली घटना है जब आईबी के ऊपर इस मामले में मुक़दमा दर्ज किया गया है.
आईबी के आपराधिक कृत्य का एक और उदाहरण हैदराबाद के अब्दुल रज्जाक की आत्महत्या है. अब्दुल रज्जाक पर खुफिया एजेंसिया लगातार मुखबिर बनने का दबाव बना रही थी. इसी कारण उसे आत्महत्या करने के लिए बाध्य होना पड़ा.
खुफिया एजेंसियों का इतिहास ऐसे काले-कारनामों से भरा हुआ है. यदि हम जैन रिपोर्ट (राजीव गांधी हत्याकाण्ड पर गठित आयोग) की बात करें तो स्थिति बिल्कुल साफ हो जाती है कि भारत की खुफिया ऐजेंसी किस तरह से सीआईए और मोसाद के साथ इस षड़यन्त्र में शामिल थी.
दुनिया भर में हम खुफिया एजेंसियों के कारनामों को देख चुके हैं. इराक पर हमले की पूरी ज़मीन खुफिया एजेंसियों ने पूरी दुनिया को गलत और झूठी जानकारी देकर तैयार की थी.
आज जब दुनिया के तमाम देश अपनी खुफिया एजेसियों को अपने संसद के प्रति जवाबदेह बना रहे है तो भारत में सत्ता पाने के लिए सबसे ज्यादा आतुर भाजपा अपने घोषणा में खुफिया एजेंसियों को और अधिकार देने की बात कर रहा है.
गौरतलब है कि भाजपा के अनुषांगी रहे तमाम उग्रवादी संगठन खुफिया एजेंसियों द्वारा लगातार बचाये जाते रहे हैं. यदि हम उत्तर प्रदेश के कचहरी बम विस्फोट की बात करे तो पाते हैं कि बम विस्फोट एक खास संगठन से जुड़े वकीलों के चेम्बर में हुआ और विशेष समय पर भी हुआ जब वहां उपस्थित नहींथे.
इसी क्रम में देखा जाये तो अजमेर, समझौता एक्सप्रेस और मालेगांव बम-विस्फोट में भी पहले मुस्लिम नौवजवानों को फंसाया गया परन्तु मानवाधिकारसंगठनों के दबाव में आकर असली गुनहगार सामने आये. इस तरह से खुफियाएजेंसियों की साम्प्रदायिक जेहनियत भी साफ है.
भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेन्द्र मोदी ने भी खुफिया एजेंसियों का इस्तेमाल गुजरात में बखुबी ढंग से किया है. मामला चाहे अक्षरधाम मंदिर काण्ड का हो या फर्जी मुठभेड़ों का… नरेन्द्र मोदी भूमिका भी खुफिया एजेंसियों की तरह संदिग्ध रही है.
राष्ट्रवाद और हिन्दूत्व का जाप करने वाल नरेन्द्र मोदी और भाजपा की जेहनियत साफ नहीं है. खुफिया एजेंसियों के सहारे एक खास तबके के ऊपर बर्बर दमन और उसे अपराधी घोषित करवाने की योजना के तहत भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में ऐसे अलोकतान्त्रिक एजेंडे को शामिल किया है. भाजपा काघोषणा में शामिल यह एजेंडा हिन्दी के मुहावरे ‘करेला चढ़े नीम की डाल’ को चरितार्थ करता नज़र आता है.