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नरेंद्र मोदी से आशाएं और अपेक्षाएं

Mani Ram Sharma for BeyondHeadlines

समय-समय पर जन सम्बोधनों में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने सुशासन के दावे व वादे करते रहते हैं, किन्तु वास्तविकता का इनको कितना ज्ञान है. इसका सही आंकलन हमसे बेहतर कोई नहीं कर सकता. हम यहां इनके सुशासन व जनप्रिय सरकार के कुच्छेक नमूने उजागर करने जा रहा हूं.

गुजरात राज्य में अभी भी अंग्रेजों द्वारा बनाई गई भारतीय दंड संहिता, 1860 व दंड प्रक्रिया संहिता लागू है. ये कानून अंग्रेजों ने 1857 की प्रथम क्रांति के बाद उपजी परिस्थितियों को देखते हुए बनाए थे. निश्चित रूप से इन कानूनों में जनता का दमनकर राजसता में बने रहने की पुख्ता व्यवस्था की गयी थी, जो स्वतंत्र भारत के लिए किसी भी प्रकार से उपयुक्त नहीं हो सकता.

यदि यही अंग्रेजी कानून और न्याय-व्यवस्था हमारे लिए उपयुक्त थी तो फिर हमें स्वतंत्रता की क्या आवश्यकता थी? भारतीय संविधान के अनुसार न्याय-व्यवस्था राज्यों का विषय है, जिस पर कानून बनाने के लिए स्वयं राज्य सक्षम है.

भ्रान्तिवश मोदी सरकार को विकासोन्मुखी समझते हुए उक्त कानूनों में आमूलचूल परिवर्तन करने के लिए हमने खुद दिनांक 18 फरवरी, 2012 को स्पीड पोस्ट के ज़रिए मोदी सरकार को एक पत्र लिखा था, जो इनके कार्यालय को दिनांक 21 फरवरी, 2012 को प्राप्त हो गया.

दिनांक 14 मार्च, 2012 को सूचना के अधिकार के अंतर्गत एक आवेदन कर उक्त पत्र पर मोदी सरकार द्वारा की गयी कार्यवाही की जानकारी चाही, किन्तु उसकी कोई जानकारी आज तक नहीं मिल सकी है.

मुझे यह कहते हुए अफ़सोस है कि उक्त पत्र का मुख्यमंत्री कार्यालय में कोई अता-पता तक नहीं चला और उलटे मुख्यमंत्री कार्यालय जैसे जागरूक और जिम्मेदार कार्यालय से हमारे पास फोन आया कि यह पत्र किसे व कब भेजा था?

पुन: दिनांक 16 जून, 2013 को हमने भारतीय दंड संहिता, 1860 व दंड प्रक्रिया संहिता में संशोधन हेतु गुजरात के राज्यपाल महोदय को निवेदन किया. जिन्होंने पत्रांक जी.एस.13.26/61/6340/2013 दिनांक 11.10.13 द्वारा यह पत्र गृह विभाग को आवश्यक कार्यवाही हेतु भेज दिया.

 हमने दिनांक 29 अक्टूबर, 2013 को सूचना के अधिकार के अंतर्गत एक आवेदन कर  अपने पूर्व पत्र दिनांक 18.02.12 व उक्त पत्र दिनांक 16.06.13 पर की गयी कार्यवाही तथा गुजरात सरकार के अधिकारियों के उपलब्ध ईमेल पतों की जानकारी चाही, किन्तु गृह विभाग ने पुन: अपने पत्रांक वीएसऍफ़ /102013/आरटीआई-161/डी  दिनांक 05.12.13 से यही लिखा कि उक्त पत्र उनके यहां उपलब्ध नहीं. अत: लेखक अपने पत्र की प्रति भेजे.  हमने गृह विभाग की इस अनुचित अपेक्षा की भी पूर्ति की.

भारतीय दंड संहिता, 1860 व दंड प्रक्रिया संहिता में संशोधन करना गृह विभाग के क्षेत्राधिकार में है, किन्तु गृह विभाग द्वारा पत्रांक वीएसऍफ़/102013/आरटीआई-161/डी दिनांक 02.01.14 से उक्त पत्र दिनांक 16.06.13 को आश्चर्यजनक रूप से पुलिस महानिदेशक कार्यालय को भेज दिया गया, जिससे यह परिलक्षित होता है कि गुजरात सरकार को पुलिस चला रही है, इसमें जन प्रतिनिधियों की कोई भूमिका नहीं है अथवा गुजरात में जनतंत्र नहीं अपितु पुलिसराज कायम है.

क्या गुजरात राज्य में भारतीय दंड संहिता, 1860 व दंड प्रक्रिया संहिता में संशोधन करने का अधिकार पुलिस महानिदेशक में निहित है? पाठकों को स्मरण होगा कि नडियाद (गुजरात)  में मजिस्ट्रेट को ज़बरदस्ती शराब पिलाने के मामले में उच्चतम न्यायालय ने लगभग 23 वर्ष पहले टिप्पणी की थी कि गुजरात में सरकार पर पुलिस हावी है. आज भी उतनी ही प्रासंगिक लगती है और पुलिस की सहमति के बिना सरकार कोई भी कानून बनाने में समर्थ नहीं है.

ठीक इसी प्रकार अहमदाबाद के ही मजिस्ट्रेट पर 10 वर्ष पूर्व आरोप लगे थी 40000 रुपये के बदले भारत के मुख्य न्यायाधीश व राष्ट्रपति 4 प्रमुख व्यक्तियों के विरुद्ध फर्जी मामले में वारंट जारी किये.

मोदी सरकार के अधिकारियों के ई-मेल पते इन्टरनेट पर उपलब्ध नहीं हैं और मेरे उक्त आवेदन दिनांक 29.10.13 के बिंदु 3(3) में मांगने पर भी अवर सचिव, गृह विभाग ने ये उपलब्ध नहीं करवाए हैं. इससे यह प्रमाणित है कि गुजरात सरकार में नौकरशाही ने राजतंत्र की एक मोटी अभेद्य दीवार बना रखी, जिसमें से लोकतंत्र की कोई हवा भी नहीं आ सकती है.

मोदी सरकार पूरी तरह से अपारदर्शी ढंग से संचालित है और गुजरात का जो आर्थिक विकास हुआ है, उसमें उसकी भौगोलिक परिस्थितियां और नागरिकों की कर्मठता का ही योगदान है, इसमें मोदी सरकार की वास्तव में कोई सक्रिय भूमिका नहीं है.

आप अनुमान लगा सकते हैं कि मोदी के ज़रिए किए जाने वाले सुशासन के दावे और वादे कितने खोखले हैं. उनके कार्यपालक जनता से प्राप्त पत्रों को फ़ुटबाल के दक्ष खिलाड़ी की भांति ठोकरें मारकर इधर-उधर भेजते रहते हैं, समय व्यतीत करते हैं  और उन पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं करते हैं. चाहे तो इन्हें ऊँचे वेतन पर रखे हुए डाकिये कह सकते हैं जो डाक को अनावश्यक इधर-उधर करते रहते हैं.

 हमने हाल ही दिनांक 04 जनवरी, 2014 को  मोदी को एक और व्यक्तिगत पत्र लिखकर रजिस्टर्ड डाक से भेजते हुए न्यायव्यस्था में सुधार करने का परामर्श दिया है. शायद मोदी जी को पढ़ने को भी नहीं मिला होगा और यदि मिल गया हो तो भी उस पर कोई ठोस कार्यवाही होना संदिग्ध है, क्योंकि उसे भी पुलिस महानिदेशक या उच्च न्यायालय को भेजकर अब तक उनके अधिकारियों ने अपने पुनीत कर्तव्य की इतिश्री कर ली होगी.

सत्ता हथियाने के लिए देश में विभिन्न राजनैतिक दल समय-समय पर अपनी चाल-चरित्र भिन्न होने का दावा करते रहते हैं. किन्तु ऐसा नहीं है यह हाल सिर्फ मोदी सरकार के ही हैं. हमने ऐसे ही पत्र और सूचनार्थ आवेदन विभिन्न दलों की विभिन्न राज्य सरकारों को भेजे हैं किन्तु सभी के परिणाम एक जैसे ही हैं. जनता को सतर्क और सावधान रहना चाहिए कि भारत में सभी राजनैतिक दल किसी दलदल से कम नहीं हैं.

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