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‘वह देखकर मुझ पर क़यामत टूट पड़ी’

Ankur Jain

अहमदाबाद का दरियापुर इलाक़ा. साबरमती नदी और अहमदाबाद रेलवे स्टेशन के बीच में बसा यह इलाक़ा पुराने शहर में है. मौलाना अब्दुल मियां कादरी अक्षरधाम मामले में पकड़े अन्य अभियुक्त आदम अजमेरी, सलीम शेख और अब्दुल कयूम की तरह दरियापुर के निवासी हैं.

गुजरात में 2002 दंगों के बाद हुआ अक्षरधाम मंदिर हमला हो या टिफ़िन बम धमाका या हरेन पंड्या का कत्ल, इन सभी मामलों में पकड़े गए लोगों में सबसे ज़्यादा, इसी इलाक़े से हैं.

अब्दुल मियां को अदालत ने 10 साल की सज़ा सुनाई थी. सात साल जेल में रहने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें 2010 में ज़मानत दी और 16 मई, 2014 को उन्हें अन्य लोगों के साथ सभी आरोपों से बरी कर दिया गया.

‘मानो ज़मीन फट गई’

मौलाना अब्दुल मियां कहते हैं, “मुझे भी अन्य लोगों की तरह कोर्ट में पेश करने के 13 दिन पहले 17 अगस्त 2003 को पुलिस ने बुलाया. एक कमरे में बिठाए रखा और फिर कुछ देर बाद एक बड़े अधिकारी मुझसे इधर-उधर की बात करने लगे. मुझे लगा कि वह शायद मुझसे कोई जानकारी चाहते हैं. फिर उन्होंने मुझसे पूछा अक्षरधाम हमले के बारे में क्या जानते हो? उस समय ऐसा लगा मानो मेरे पाँव के नीचे ज़मीन फट गई.”

अब्दुल मियां दरियापुर इलाक़े की एक मस्ज़िद में मौलाना हैं. जब पुलिस उन्हें पकड़ कर ले गई, तब उनकी उम्र 41 साल थी.

वह बताते हैं, “फिर उन्होंने मुझे कई मनगढ़ंत कहानियां सुनाईं और उन्हें मनवाने के लिए मुझे कई दिनों तक थर्ड डिग्री टॉर्चर दिया. दिन भर मारने के बाद रात को मेरे हाथ पीछे कर हथकड़ी बांध देते. मुझे 40 सालों में इतना दर्द नहीं मिला, जितना कुछ दिनों में अहमदाबाद क्राइम ब्रांच में मिला.”

हमारे मुँह पर काले कपड़े बांधकर कई लोगों के बीच खड़ा कर दिया. थोड़ी देर में पता लगा हम सब पत्रकारों के बीच में हैं और सभी हमारे फोटो ले रहे थे, वह मंज़र देख कर तो मुझ पर क़यामत ही टूट पड़ी. घर वालों पर इसके बाद क्या बीतेगी इस ख़्याल से मेरे रोंगटे खड़े हो गए.” –मौलाना अब्दुल मियां, निवासी, दरियापुर

वह कहते हैं, “मार खा-खा के हमारा हाल बेहाल था. फिर 29 अगस्त 2003 जुमे का दिन आया. उस दिन हमारे मुँह पर काले कपड़े बांधकर कई लोगों के बीच खड़ा कर दिया. थोड़ी देर में पता लगा हम सब पत्रकारों के बीच में हैं और सभी हमारे फोटो ले रहे थे, वह मंज़र देख कर तो मुझ पर क़यामत ही टूट पड़ी. घर वालों पर इसके बाद क्या बीतेगी इस ख़्याल से मेरे रोंगटे खड़े हो गए.”

‘अक्षरधाम मंदिर आज तक नहीं देखा’

अब्दुल मियां पर अहमदाबाद पुलिस ने आरोप लगाया था कि अक्षरधाम हमले में मारे गए दो फिदायीन के पास से जो चिट्टी मिली थी वह उन्होंने उन तक पहुंचाई थी.

वह कहते हैं, “उनकी कहानी में मेरा किरदार कहीं भी फिट नहीं हो रहा था तब उन्होंने यह आरोप लगाया कि इस हमले की साज़िश के लिए जो बैठकें हुई थीं, उनमें मैं हाज़िर था और कय्यूम भाई की लिखी चिट्टी मैंने उन फ़िदायीन तक पहुंचाई थी.”

वह आगे कहते हैं, “लेकिन बिना किसी सबूत के एक झूठे केस की बिना पर मुझे 10 साल की सज़ा सुना दी गई. इस मामले में जो बाकी लोग पकड़े गए थे उनमें से कय्यूम भाई के अलावा तो मैं किसी को जानता भी नहीं था. पर मुझे यकीन था कि ऊपरी कोर्ट से बरी हो जाऊंगा. लेकिन जब हाईकोर्ट में भी सज़ा बरक़रार रही तब मुझे बहुत बड़ा धक्का लगा.”

अक्षरधाम मामले में बरी होने वाले लोग

अब्दुल मियां कहते हैं, “हमको सुप्रीम कोर्ट से आशा की किरण दिखी. आज हम बेक़सूर करार हो चुके हैं लेकिन हमारा गुज़रा वक्त कौन लौटा सकता है. मैंने आज तक अक्षरधाम मंदिर नहीं देखा. अपने ऊपर बैठे लोगों को ख़ुश करने या उनके आदेश से पुलिस वालों ने हमारी और हमारे घर वालों की ज़िंदगी की ख़ुशियां लूट लीं.”

उनके वकील खालिद शेख कहते हैं, “अब्दुल मियां की भूमिका पुलिस कहानी में कहीं ठीक तरह से नहीं बैठ पाई. इस वजह से उन पर वह आरोप नहीं लगे जो अन्य पर लगाए गए थे. लेकिन उन्हें भी उसी प्रताड़ना और दर्द से गुज़रना पड़ा. सुप्रीम कोर्ट ने उनकी उम्र और आरोप को देखकर उन्हें ज़मानत दे दी थी.”

‘हुकूमत पर भरोसा नहीं’

पिछले 14 सालों में अहमदाबाद में कई ऐसे हादसे हुए हैं जो यहां के लोगों के ज़ेहन से आज तक नहीं निकल पाए. फिर चाहे वो साल 2001 का भूकंप हो या साल 2002 में गोधरा ट्रेन में जलकर मरने वाले लोग, 2002 के दंगे, हरेन पंड्या का कत्ल, ‘फ़र्ज़ी’ एनकाउंटर और कई बम धमाके.

हम वतन के वफ़ादार आज भी हैं और हमेशा रहेंगे. हमें भारत के क़ानून पर यक़ीन था. हाईकोर्ट से इंसाफ़ नहीं मिला पर सुप्रीम कोर्ट से मिलेगा यह यक़ीन था. हाँ, लेकिन मेरा हुकूमत पर से भरोसा उठ गया है क्योंकि यहाँ 100 में से 90 फ़ीसदी मामलों में बेगुनाहों को अंदर कर दिया है.” –मौलानाअब्दुल मियां, निवासी, दरियापुर

अब्दुल मियां कहते हैं, “इतने ग़लत केस करके लोगो को अंदर कर देने से दहशतगर्दी बढ़ती है. हिंदू हो या मुसलमान अगर कोई भी ग़लत फंसा हो तो कार्रवाई करके उसे तुरंत बाहर निकालना चाहिए. मैं जेल में देख कर आया हूँ. कई मासूम आज भी जेल में क़ैद हैं. हम गुमराह नहीं हुए पर अन्याय होने पर कोई नादानी भी कर सकता है.”

वह बताते हैं, “हम वतन के वफ़ादार आज भी हैं और हमेशा रहेंगे. हमें भारत के क़ानून पर यक़ीन था. हाई कोर्ट से इंसाफ़ नहीं मिला पर सुप्रीम कोर्ट से मिलेगा यह यक़ीन था. हाँ, लेकिन मेरा हुकूमत से भरोसा उठ गया है क्योंकि यहाँ 100 में से 90 फ़ीसदी मामलों में बेगुनाहों को अंदर कर दिया है.”

हालांकि अब्दुल मियां ने, बाकियों की तरह, उनकी हिरासत के वक़्त गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी, के बारे में कुछ भी कहने से मना कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट से बरी यह छह लोग उन्हें ग़लत तरीके से फंसाने के लिए गुजरात सरकार से मुआवजा मांगने की बात कर रहे हैं. यह लोग अब उन अधिकारियों के ख़िलाफ़ भी कार्रवाई की माँग कर रहे हैं, जिन्होंने उन पर मामला दर्ज किया था.

गुजरात के डीजीपी पीसी ठाकुर कहते है, “मैंने अभी तक अक्षरधाम मामले में सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर देखा नहीं है. अगर उसमें इस केस से जुड़े पुलिस अधिकारियों पर उंगली उठाई गई है, तो इसकी जाँच की जाएगी.” (Courtesy: BBC)

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