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उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के नाम भाकपा (माले) का एक खुला पत्र

प्रति,

    श्रीमान मुख्यमंत्री,

    उत्तराखंड शासन,

    देहरादून.

महोदय,

       उत्तराखंड में एक वर्ष पूर्व भीषण आपदा आई थी, जिससे राज्य में बड़े पैमाने पर जान-माल का नुक़सान हुआ था. इस आपदा में देश-विदेश के लोगों, संस्थाओं ने आगे बढ़कर मदद की. केंद्र सरकार ने भी सात हज़ार करोड़ रुपये की सहायता का ऐलान किया था.

लेकिन आपदा के एक वर्ष बाद देखें तो राज्य सरकार के पास ना तो कोई समग्र नीति और ना ही दृष्टि नज़र आती है, जो भविष्य में इस तरह की विभीषिकाओं का कारगर ढंग से मुकाबला करने में सक्षम हो सके.

महोदय, आपदा के एक वर्ष बीतने पर भाकपा (माले) आपसे यह मांग करती है कि –

  • महोदय, आपके द्वारा केंद्र सरकार से आपदा से निपटने के लिए 4000 करोड़ रुपये की मांग की गयी है. भाकपा(माले) मांग करती है कि आपदा से निपटने के लिए केंद्र सरकार द्वारा दिए गए 7000 करोड़ रुपये तथा अन्य माध्यमों से प्राप्त कुल धनराशि एवं उसके खर्च को लेकर राज्य सरकार एक श्वेत पत्र जारी कर संपूर्ण ब्यौरा सार्वजनिक किया जाए.
  • महोदय, आपदा की विभीषिका को बढ़ाने में उत्तराखंड में क़दम-क़दम पर बनने वाली जल-विद्युत परियोजनाओं की बड़ी भूमिका थी. उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर भारत सरकार द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति ने भी इस तथ्य को माना है. लेकिन कुछ दिन पूर्व राज्य मंत्रिमडल की बैठक में उच्चतम न्यायालय में परियोजना निर्माण पर लगी रोक हटाने की पैरवी करने का फैसला लिया गया. यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय है और दर्शाता है कि बीते वर्ष की आपदा से सरकार ने कोई सबक नहीं सीखा है और वह भविष्य में भी ऐसी त्रासदियों को आमंत्रित करना चाहती है.

महोदय, भाकपा(माले) यह मांग करती है कि राज्य में निर्माणाधीन/प्रस्तावित सभी परियोजनाओं की समीक्षा की जाए. बीते वर्ष की आपदा की विभीषिका बढाने के लिए जिम्मेदार जे.पी., जी.वी.के., लैंको, एल एंड टी जैसी जल-विद्युत् परियोजना निर्माता कंपनियों के खिलाफ जान-माल को नुक़सान पहुंचाने के लिए आपराधिक मुक़दमा दर्ज किया जाए.

  • राज्य में जनोन्मुखी पुनर्वास नीति घोषित की जाए. आपदा पीड़ितों को ज़मीन

के बदले ज़मीन दी जाए और मकान के बदले मकान दिया जाए. मुआवजे में राज्य सरकार अपना हिस्सा बढ़ाते हुए, इसे पांच लाख रुपया किया जाए. जिनके रोज़गार

के साधन पूरी तरह नष्ट हो गए हैं, उन्हें इन स्थितियों से उबरने तक जीवन निर्वाह भत्ते के रूप में राज्य द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन दिया जाए.

  • अनियोजित शहरीकरण, बेतहाशा खनन और सड़क निर्माण सहित तमाम निर्माण कार्यों में अंधा-धुंध विस्फोटकों के इस्तेमाल व मलबा नदियों में डाले जाने ने भी आपदा की विभीषिका को कई गुना बढ़ा दिया. शहरों में तमाम निर्माण नियोजित तरीके से हों, अवैध खनन पर रोक लगे, विस्फोटकों के इस्तेमाल को नियंत्रित किया जाए और किसी भी सूरत में मलबा नदियों में निस्तारित करने की अनुमति ना हो. इन सब बातों को सुनिश्चित करने के लिए सरकार नियामक इकाईयों को चुस्त-दुरुस्त करे.

महोदय, आपदा के एक वर्ष बीतने पर उक्त उपायों को प्रभावी तरीके से सुनिश्चित करवाने के लिए राज्य सरकार को स्वयं पहल करनी चाहिए थी. लेकिन अफ़सोस कि राज्य सरकार तो सिर्फ लीपापोती जैसे उपाय ही कर रही है.

अतः भाकपा(माले) राज्य सरकार से मांग करती है कि उक्त मांगों पर तत्काल प्रभावी कार्यवाही की जाए अन्यथा पार्टी आंदोलनात्मक क़दम उठाने को बाध्य होगी .

उचित कार्यवाही की अपेक्षा में

सहयोगाकांक्षी

इन्द्रेश मैखुरी

गढ़वाल सचिव

भाकपा(माले)

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