BeyondHeadlines Editorial Desk
ये किसी से छुपा नहीं है कि भारत में ऐसे लोगों का एक बड़ा वर्ग है जो मुसलमानों से जुड़ी हर चीज़ को मिटा देना चाहता है. उनके प्रतीकों, उनकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक उपलब्धियों को बदलना और उनके ऐतिहासिक किरदारों को मिटाना चाहता है. ऐसे में चाहे वो ताजमहल को तेजो महालय नहीं कर सकते, लेकिन औरंगज़ेब रोड का नाम बदलकर एपीजे अब्दुल कलाम रोड तो कर ही सकते हैं.
ये सीधा और साफ़ संदेश है कि भारत को ईमान के पक्के मुसलमान नहीं, बल्कि नाम के मुसलमान चाहिए. जिनके लिए इस्लाम किरदार की चमक नहीं बल्कि बस विरासत में मिला एक नाम हो. इसलिए उन्हें एपीजे अब्दुल कलाम चाहिए. औरंगज़ेब नहीं चाहिए.
वो औरंगज़ेब जिसने इस मुल्क पर 49 साल शासन किया और जिसे आलमग़ीर यानी दुनिया जीत लेने वाले का ख़िताब दिया गया. वो औरंगज़ेब नहीं चाहिए जिसने टुकड़ों में बंटे भारत को एक करके हिंदुस्तान बनाया था.
वो उस औरंगज़ेब के बारे में मिथक गढ़ेंगे, उसके चरित्र पर हिंदू विरोधी होने का आरोप लगाएंगे. भले ही इस बात के कितने ही प्रमाण क्यों न हों कि औरंगज़ेब हिंदू विरोधी नहीं बल्कि इस्लाम प्रेमी शासक था. वो अपने धर्म का पक्का था, अपने ईमान का पक्का था और उसका किरदार उसकी शासन व्यवस्था में नज़र आता था.
वो आपको बार-बार ये बताएंगे कि औरंगज़ेब की तलवार के डर से लाखों लाख हिंदू मुसलमान बन गए. लेकिन वो आपको ये नहीं बताएंगे कि वही औरंगज़ेब टोपियां बुनकर अपना ख़र्च चलाता था. जो आलमग़ीर औरंगज़ेब बादशाह अपने ख़र्च के लिए टोपियां बुनता और क़ुरान लिखता हो वो आपने शासन में कितना इंसाफ़ पसंद होगा ये बताने की ज़रूरत नहीं है.
मूल बात पर लौटते हैं. वो सत्ता में है इसलिए औरंगज़ेब रोड को अब्दुल कलाम रोड कर सकते हैं. लेकिन आपको क्या करना चाहिए? औरंगज़ेब के किरदार को ज़िंदा रखना उनकी नहीं आपकी ज़िम्मेदारी है. तो क्या आप अपने बेटे का नाम औरंगज़ेब रखेंगे और अपनी ऐतिहासिक विरासत को स्वीकर करेंगे. क्या आप अपनी औलादों को ईमान का पक्का होने की शोहबत देंगे? भले ही ईमान का पक्का होने की क़ीमत जो भी चुकानी पड़े?