Avdesh Kumar for BeyondHeadlines
वाह! वाह! अमित शाह जी! मान गए आपको… या तो आपने मोदी को सिखाया है या आपने मोदी से सीखा है कि झांकी कैसे बनाई रखी जाए.
दलित के घर खाना खाना कोई ऐतिहासिक घटना या प्रलयकारी परिवर्तन नहीं है. चूंकि आपकी नज़र में दलितों की अलग ही परिभाषा है. आप की दृष्टि में जो आपको हलवा-पूरी, मिठाई, चार-चार तरह की सब्जियां, बिसलेरी की बॉटल, शानदार प्लेट, बैठने के लिए बिछावन आदि की व्यवस्था कर सके, वही दलित है. हो भी क्यों न, क्योंकि आप ऐसे ही घर पर तो खाना खा सकते हैं.
जिस घर में आपने खाना खाया. उस घर के बाहर ही आपने खाना बनवाया. लंबी चौड़ी कढ़ाइयों में देशी घी में उबलती पूड़ियां… देशी घी में उबलती पूड़ी इस बात के परिणाम है कि यह दलित धनाड़े ही होगा.
ऊपर से आपने ओबीसी के घर जाकर उसे दलित बना दिया. ये या तो आप कर सकते हैं या मोदी जी कर सकते हैं. आप में वाक़ई करिश्मा है. वरना मात्र आठ महीने में बिसाहड़ा गांव की फ्रीज से निकला हुआ मटन आपके स्मरण मात्र से बीफ़ बन जाता है. तो फिर जो भी दलित आपसे स्पर्श करेगा. उसे 56 भोग का खाना तो बनाना ही होगा.
बता दें कि यह मल्लाह, केवट, बिंद सभी जातियां ओबीसी केटेगरी में आती हैं. उत्तर प्रदेश और केंद्रीय सरकार की वेबसाइट पर इन्हें देखा जा सकता है. ये प्रिंट शार्ट भी वहीं से लिए गए हैं.