Edit/Op-Ed

शिवराज को दिग्विजय पसंद हैं…

By Javed Anis

राजनीति एक ऐसा खेल है जिसमें चाहे-अनचाहे दुश्मन भी ज़रूरत बन जाते हैं. चुनाव के मुहाने पर खड़े मध्य प्रदेश में इन दिनों कुछ ऐसा ही नज़ारा देखने को मिल रहा है जिसमें दो कट्टर प्रतिद्वंदी एक दूसरे को निशाना बनाकर अपनी पोजीशनिंग ठीक कर रहे हैं.

शिवराज सिंह और दिग्विजय सिंह के बीच अदावत किसी से छिपी नहीं है. लेकिन आज हालत ऐसे बन गए हैं कि दोनों को एक दूसरे की ज़रूरत महसूस हो रही है.

जहां शिवराज सिंह को एक बार फिर मध्य प्रदेश की सत्ता में वापस लौटना है, वहीं दिग्विजय सिंह की स्थिति अपने ही पार्टी में लगातार कमज़ोर हुई है. आज हालत ये है कि पार्टी में उनके पास मध्य प्रदेश चुनाव के लिए बनाए गए समन्वय समिति के अध्यक्ष के अलावा कोई पद नहीं बचा है. पार्टी के हाईकमान से भी उनकी दूरी बनती हुई नज़र आ रही है. ऐसे में उन्हें भी अपने आलाकमान को यह दिखाना है कि मध्य प्रदेश में अभी भी उनकी ज़मीनी पकड़ क़ायम है.

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दिग्विजय सिंह को इस तरह से निशाने पर ले रहे हैं जैसे कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया का कोई वजूद ही ना हो और उनका मुक़ाबला अकेले दिग्विजय सिंह से है. जहां कहीं भी मौक़ा मिलता है वे पूरी श्रद्धा भाव के साथ दिग्विजय सिंह की निर्मम आलोचना करते हैं.

दूसरी तरफ़ दिग्विजय सिंह भी शिवराज द्वारा छोड़े गए हर तीर को खाली वापस नहीं जाने दे रहे हैं, बल्कि उसकी सवारी करके खुद की ताक़त और ज़मीनी पकड़ का अहसास कराने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ रहे हैं.

आज स्थिति यह है कि मध्य प्रदेश में राजनीति के मैदानी पिच पर ये दोनों ही बल्लेबाज़ी करते हुए नज़र आ रहे हैं और शायद दोनों ही यही चाहते भी हैं.

जब शिवराज सिंह ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ये कहा कि “कई बार दिग्विजय सिंह के ये क़दम मुझे देशद्रोही लगते हैं.” तो दिग्विजय सिंह इस पर ज़रूरत से ज़्यादा आक्रमक नज़र आए और पूरे लाव-लश्कर के साथ अपनी गिरफ्तारी देने भोपाल स्थित टी.टी. नगर थाने पहुंच गए, जहां पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उनके ख़िलाफ़ देशद्रोह का कोई सबूत नहीं है.

यह बहुत साफ़ तौर पर कांग्रेस का नहीं, बल्कि दिग्विजय सिंह का शक्ति प्रदर्शन था जिसमें बहुत ही शार्ट नोटिस पर भोपाल में हज़ारों दिग्विजय समर्थकों और कार्यकर्ताओं की भीड़ इकट्ठी हुई.

जानकार मानते हैं कि दिग्विजय सिंह का यह शक्ति प्रदर्शन शिवराज से ज़्यादा कांग्रेस आलाकमान के लिए था. इस पूरे एपिसोड की सबसे ख़ास बात यह थी कि इससे प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेताओं की दूरी रही. शिवराज के बयान पर कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया दोनों की कोई प्रतिक्रिया भी सामने नहीं आई. हालांकि कमलनाथ ने दिग्विजय सिंह को पीसीसी से रवाना ज़रूर किया लेकिन वे उनके साथ थाने तक नहीं गए.

ज़ाहिर है शिवराज के आरोप और इस पर दिग्विजय सिंह की प्रतिक्रिया दोनों ही पूरी तरह से सियासी थे और दोनों की मंशा अपने-अपने राजनीतिक हित साधने की थी.

शिवराज सिंह अपने इस बयान के माध्यम से यह सन्देश देना चाहते थे कि मुक़ाबला उनके और दिग्गी राजा के बीच है, जबकि दिग्विजय सिंह की मंशा थाने पर प्रदर्शन के ज़रिए हाईकमान और कांग्रेस के दूसरे खेमों को अपनी ताक़त दिखाने की थी.

‘देशद्रोही’ कहे जाने का विवाद अभी शांत भी नहीं हुआ था कि शिवराज सिंह चौहान ने दिग्विजय सिंह पर एक बार फिर निशाना साधते हुए कहा कि “ओसामा बिन-लादेन को ओसामा जीकहने वाले ये लोग स्वयं सोच लें कि कौन देशभक्त है और कौन आतंकवादी.”

इसी कड़ी में शिवराज सरकार द्वारा, पूर्व मुख्यमंत्रियों के सरकारी बंगले खाली कराने के हाईकोर्ट के फैसले के बाद भी दिग्विजय सिंह को छोड़कर बाक़ी के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों कैलाश जोशी, उमा भारती और बाबूलाल गौर को वही बंगले फिर से आवंटित कर दिए हैं, इसको लेकर राजनीति गरमा गई है और कांग्रेस ने इस पर आपत्ति जताई है. कांग्रेस सवाल उठा रही है. कांग्रेस इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाख़िल करने वाली है.

ज़ाहिर है शिवराज के निशाने पर दिग्विजय सिंह ही हैं, जिन्हें पंद्रह साल पहले उमा भारती ने मिस्टर बंटाधार का तमग़ा देकर मध्य प्रदेश की सत्ता से उखाड़ फेंका था. अब भाजपा एक बार फिर दिग्विजय सिंह के दस वर्षीय कार्यकाल को सामने रखकर मध्य प्रदेश में चौथी बार सत्ता हासिल करना चाहती है. इसी रणनीति के तहत भाजपा द्वारा दिग्विजय सिंह सरकार और शिवराज सरकार के कार्यकाल की तुलना करते हुए विज्ञापन तैयार छपवाए जा रहे हैं.

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पूरे प्रदेश में घूम-घूम कर कह रहे हैं कि “दिग्विजय ने अपने 10 सालों के शासन में प्रदेश को बदहाल कर दिया था. अब हमने उसे विकासशील और विकसित बनाया है, अब हम प्रदेश को समृद्ध बनाएंगे.”

दिग्विजय सिंह को निशाना बनाकर उन्हें मुक़ाबले में लाने की भाजपा की रणनीति एक तरह से अपने लिए सुविधाजनक प्रतिद्वंद्वी का चुनाव करना है साथ ही एक तरह से कांग्रेस के सजे साजाए चुनावी बिसात को पलटना भी है.

दरअसल कांग्रेस आलाकमान के लम्बे माथा-पच्ची के बाद कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रदेश अध्यक्ष और चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया था, जिससे दोनों फ्रंट पर रहकर शिवराज को चुनौती पेश करें और दिग्विजय सिंह कार्यकर्ताओं के बीच जाकर उन्हें एकजुट करने का काम करें, लेकिन शिवराज इस क़िलेबंदी को तोड़ना चाहते हैं और ऐसी स्थिति बना देना चाहते हैं, जिसमें उनका मुक़ाबला कमलनाथ और सिंधिया के बजाए दिग्विजय सिंह से होता दिखाई पड़े.

यही वजह है कि अपने देशद्रोही वाले बयान पर उनकी तरफ़ से कोई सफ़ाई नहीं की गई, उल्टे वे दिग्विजय को लगातार निशाने पर लेते हुए बयान देते जा रहे हैं और अब बंगला ना देकर उन्होंने पूरे कांग्रेस को मजबूर कर दिया है कि वे दिग्विजय सिंह का बचाव करें.

दिग्विजय सिंह को इस ध्यानाकर्षण की सख्त ज़रूरत थी. राज्यों का प्रभार उनसे पहले से ही ले लिया गया है. हाल ही में वे कांग्रेस कार्य-समिति से भी बेदख़ल कर दिए गए हैं. अब केन्द्र के राजनीति में वे पूरी तरह से हाशिए पर हैं.

शायद इस स्थिति को उन्होंने पहले से ही भांप लिया था. इसीलिए पिछले क़रीब एक साल से उन्होंने अपना फोकस मध्य प्रदेश पर कर लिया है, जहां उन्होंने खुद को एक बार फिर तेज़ी से मज़बूत किया है.

अपने बहुचर्चित “निजी” नर्मदा परिक्रमा के दौरान उन्होंने प्रदेश में अपने पुराने संपर्कों को एक बार फिर ताज़ा किया है. इसके बाद उनका इरादा एक सियासी यात्रा निकलने का था पर शायद पार्टी की तरफ़ से उन्हें इसकी अनुमति नहीं मिली. बहरहाल इन दिनों वे प्रदेश में घूम-घूम कर कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ “संगत में पंगतके तहत उनसे सीधा सम्पर्क स्थापित कर रहे हैं, जिसका मक़सद गुटबाज़ी को ख़त्म किया जा सके.

वर्तमान में मध्य प्रदेश में कांग्रेस की तरफ़ से दिग्विजय सिंह ही ऐसे नेता है जिनकी पूरे राज्य में पकड़ है और प्रदेश के कांग्रेस के संगठन में हर जगह पर उनके लोग हैं जिन्हें इन दिनों वे लगातार मज़बूत किए जा रहे हैं. प्रदेश कांग्रेस में उनके स्तर के एक वही नेता हैं जो इस तरह से लगातार सक्रिय हैं.

पिछले दिन दिग्विजय सिंह ने प्रदेशाध्यक्ष के पद से हटाए जाने के बाद नाराज़ चल रहे अरुण यादव को नसीहत देते हुये कहा था कि “राजनीति में सब्र रखें, जो व्यक्ति सब्र नहीं रख सकता वह राजनीति में आगे आ नहीं सकता, हालांकि बुरा तो लगता है, लेकिन राजनीति में यह लड़ाई अनंत है, कांग्रेस समुद्र है,  इसमें अपना रास्ता खुद निकालना पड़ता है”. ज़ाहिर है दिग्विजय भी खुद अपना रास्ता निकाल रहे हैं, जिससे वे हाशिए से बाहर आ सकें.

(जावेद अनीस भोपाल में रह रहे पत्रकार हैं. उनसे javed4media@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.)

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