History

24 कैरट की पीआर एक्सरसाईज़ वाले इस दौर में मार्ले सेफर जैसे रिपोर्टर बहुत याद आते हैं…

By Abhishek Upadhyay

इस न्यूज़ रिपोर्ट ने वाक़ई दंग कर दिया. पत्रकारिता अंध-राष्ट्रवाद नहीं देखती. सिर्फ़ इंसानियत देखती है.

ये 1965 का साल था. वियतनाम में अमेरिकी युद्ध अपने चरम पर था. मार्ले सेफर वियतनाम में अमेरिकी न्यूज़ चैनल सीबीएस न्यूज़ के फॉरेन करेस्पोंडेंट थे. वे वियतनाम वॉर को कवर कर रहे थे.

एक रोज़ वे अमेरिकी मरीन कमांडोज़ के साथ वियतनाम के “कैम ने गांव” में मौजूद थे. अमेरिकी फौज इस गांव में एक ‘सर्च एंड डेस्ट्रॉय ऑपेरशन’ चला रही थी. मक़सद वियतनामी विद्रोहियों से बदला लेना था.

मार्ले सेफर अमेरिकी फौज के साथ कवरेज के लिए आए थे. क़ायदे से उन्हें वही दिखाना था जो अमेरिकी फौजें चाहतीं. तभी उन्होंने अचानक देखा कि अमेरिका के कमांडोज़ ने उस वियतनामी गांव की झोपड़ियों को आग लगाना शुरू कर दिया. झोपड़ियों पर माचिस की जलती तीलियां फेंकी जाने लगीं. ज़िप्पो लाइटर से आग लगाई जाने लगी. थोड़ी ही देर में वो गांव धू-धूकर जल रहा था. औरतें, बच्चे, बुजुर्ग चीखते-चिल्लाते हुए बाहर की ओर भाग रहे थे.

मार्ले सेफर न सिर्फ़ इस तस्वीर को अपने कैमरे में रिकॉर्ड कर रहे थे बल्कि उस क्रूर बदले का ब्योरा भी देते जा रहे थे. आज जिसे हम रिपोर्टिंग की भाषा मे पीटीसी या फिर वाकथ्रू कहते हैं, वो काम आज से क़रीब 53 साल पहले मार्ले सेफर बेबाक अंदाज़ में करते जा रहे थे.

अमेरिकी फौजों की निगाहें बचाकर वे इस बर्बरता का पूरा ब्योरा रिकॉर्ड कर रहे थे. कुछ ही देर में अमेरिकी सैनिकों ने कुछ बुजुर्ग वियतनामियों को लाइन में इकट्ठा किया. उनसे अंग्रेज़ी में पूछताछ शुरू की गई. उनसे आईडी कार्ड के मतलब पूछे गए. वे बेचारे क्या अंग्रेज़ी समझ पाते! और ऐसे में क्या जवाब देते. पर उन्हें इसी आधार पर निपटा दिया गया कि वे पूछताछ का जवाब नहीं दे पा रहे हैं. कुल 150 घर जलाए गए. 3 महिलाओं को घायल किया गया. एक नन्हें बच्चे को जान से मार दिया गया.   

मार्ले सेफर ने जहाज़ के ज़रिए अपनी रिपोर्ट वियतनाम से अमेरिका भेजी. इस रिपोर्ट के सीबीएस न्यूज़ पर टेलीकास्ट होने के साथ ही अमेरिका में गुस्से की लहर दौड़ पड़ी. युद्ध के नाम पर इंसानियत के इस क़त्लेआम ने अमेरिका की जनता को आक्रोश से भर दिया. उस वक़्त के अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने सीबीएस न्यूज़ के प्रेसिडेंट को तलब कर लिया. जमकर भड़ास निकाली.

सीबीएस पर अमेरिकी झंडे को नीचा दिखाने का इल्ज़ाम तक मढ़ दिया. ऐसे ही इल्ज़ामों को आज के दौर में एंटी-नेशनल क़रार दिया जाना कहते हैं.

अमेरिका में सत्ता समर्थकों ने सीबीएस को ‘कम्युनिस्ट ब्राडकास्टिंग सिस्टम’ का नाम तक दे दिया. उधर वियतनाम में मार्ले सेफर पर जान का ख़तरा हो गया. अमेरिकी फौजों की नज़र में वे गद्दार घोषित हो चुके थे.

बाद में अपनी किताब “Flashbacks: On Returning to Vietnam” में मार्ले ने लिखा कि वियतनाम में बाद की कितनी ही रातें उन्हें 9 एमएम पिस्टल सिरहाने रखकर काटनी पड़ीं. मगर मार्ले की एक रिपोर्ट अमेरिका में वियतनाम युद्ध के असली सत्य की तस्वीर बन गई. ये युद्ध कुछ साल और चला पर अमेरिकी जनता के आक्रोश के आगे सरकार को झुकना पड़ा. रही सही कसर वियतनामी गुरिल्लाओं ने पूरी कर दी. आख़िरकार अमेरिका ने वियतनाम से पांव वापिस खींच लिए.

उस दौर में जब सिक्योरिटी फोर्सेज़ की रिपोर्टिंग का मतलब 24 कैरट की पीआर एक्सरसाईज़ हो चला हो, मार्ले सेफर जैसे रिपोर्टर बहुत याद आते हैं…

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