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भारत को स्वस्थ बनाने के मक़सद से आशुतोष की ये अनोखी ‘स्वस्थ भारत यात्रा-2’

BeyondHeadlines Correspondent  

नई दिल्ली: महात्मा गांधी की 150वीं जयंती वर्ष में अंतिम जन पर दवा और इलाज के मद में बढ़ते आर्थिक बोझ को देखते हुए बिहार के आशुतोष कुमार सिंह अपनी धर्म-पत्नि प्रियंका सिंह के साथ एक अनोखी यात्रा पर निकले हैं. उनकी इस ‘स्वस्थ भारत यात्रा-2’ का मक़सद स्वास्थ के क्षेत्र में फैले भ्रष्टाचार को समाप्त कर भारत को स्वस्थ बनाना है. उनकी ये यात्रा 30 जनवरी को गुजरात के साबरमती से शुरू होकर सोमवार 4 फ़रवरी को महाराष्ट्र के कनेरी मठ, कोल्हापुर पहुंच चुकी है. इस यात्रा का ध्येय वाक्य है —‘स्वस्थ भारत के तीन आयाम जनऔषधि, पोषण और आयुष्मान’ 

90 दिनों की ये यात्रा 21 हज़ार किलोमीटर का सफ़र तय करके दिल्ली में ख़त्म होगी. इससे पहले भी आशुतोष 2017 में स्वस्थ भारत यात्रा कर चुके हैं.

बता दें कि 36 वर्षीय युवा पत्रकार आशुतोष कुमार सिंह का जन्म एक मध्यमवर्गीय परिवार में 15 सितम्बर 1982 को बिहार प्रान्त के सिवान ज़िला अन्तर्गत रजनपुरा ग्राम में हुआ. शुरू से पढ़ाई से भागने वाले आशुतोष कुछ दिनों तक गाँव के ही सरकारी स्कूल में पढ़े. उनके गाँव से 6 किमी की दूरी पर स्थित चैनपुर में उनका ज्यादातर समय गुज़रा. हाईस्कूल की पढ़ाई भी उन्होंने वहीं से की. हाई स्कूल पास करने के बाद अपने घर वालों की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ पढ़ने के लिए लखनऊ चले गए.

बिहार छोड़कर बाहर पढ़ाई करने जाने के बारे में आशुतोष बताते हैं कि “2001 में जब मैं बोर्ड की परीक्षा दे रहा था, तो उस वक़्त शहाबुद्दीन वहां के सांसद थे. परीक्षा सेन्टर पर वो निरक्षण के लिए आया करते थे, उसी दौरान सेन्टर पर गोली चल गई, जिसके कारण कई पेपर कैंसिल हो गए. 2 महीने बाद जब हमारा पेपर हुआ वो उतने अच्छे नहीं गए, क्योंकि जो मई-जून का महीना होता है, वो लगन का समय होता है. उस समय हमलोगों का ज्यादातर समय बारात और शादी के कार्यक्रमों को अटेंड करने में निकल जाता है. तो ऐसे में पढ़ाई का मामला लगभग ख़त्म ही हो गया था. बाद में किसी तरह बेमन से परीक्षा दिया और जिसकी आशंका थी वही बात हो गयी. मैं द्वितीय श्रेणी से पास हुआ.”

आशुतोष कुमार सिंह कहते हैं कि बचपन में मैं बहुत शरारती हुआ करता था. 10वीं के बाद मैं आईएएस बनना चाहता था. तब पिता जी ने मुझसे पूछा था कि आई.ए.एस. का फुल फॉर्म क्या होता है? उस वक़्त मैं इसका जवाब नहीं दे पाया. तब पिता जी ने कहा था कि “फुल फरम मालूमे नइखे अउर चलल बारन आई.ए.एस. बने” तब मैंने पिता जी की बात को दिल पर लेते हुए यह तय कर लिया कि अब जब पढूंगा तो बाहर वर्ना आगे की पढ़ाई नहीं करूँगा, और उसके बाद मैं आगे की पढ़ाई के लिए लखनऊ आ गया.

लखनऊ के बप्पा श्री नारायण वोकेशनल इंटर कॉलेज से आईए करने के बाद आशुतोष दिल्ली आ पहुंचे. दिल्ली में रहकर इन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के श्री अरविंद महाविद्यालय से राजनीतिक शास्त्र में स्नातक किया और बाद में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा कोर्स भी किया.

पत्रकारिता करने के दौरान ही आशुतोष की ज़िन्दगी में अचानक से एक ऐसा मोड़ आया जिससे उनकी सोच पूरी तरह बदल गई और वो स्वास्थ्य व्यवस्था व इससे जुड़ी समस्याओं के बारे में सोचने लगे…

इस घटना के विषय में आशुतोष बताते हैं कि मैं अपने मित्र के रिश्तेदार को देखने अस्पताल गया था. वहां जब दवा लाने केमिस्ट के पास गया, तो देखा जो दवा 20-25 रुपये की है उसे 90-100 रूपये में दे रहे हैं. हमने पूछा कि इतना क्यों ले रहे हो? तो उसने कहा कि हम एमआरपी से कम नहीं ले सकते हैं और कम्पूटर में सब कुछ फीड है. तो हमने कहा कि कम्पूटर आदमी के लिए है या आदमी कम्प्यूटर के लिए. और उसके बाद एक हॉट-टॉक हुई, लेकिन वो नहीं माना. और टोटल 340 रुपये की दवाई हमने खरीदी. जो होलसेल रेट 50 से 60 रुपये थी. यानी कि हज़ार परसेंट एक्स्ट्रा रकम मुझसे लिया गया… तब मुझे बहुत गुस्सा आया. लेकिन खुद को सम्भाला. अपने गुस्से को सकारात्मक दिशा दी. और ‘स्वस्थ भारत विकसित भारत अभियान’ को लेकर आगे बढ़ा.

आशुतोष आगे अपनी इस मुहिम के बारे में बताते हैं कि मैं चाहता हूं कि राष्ट्र स्वस्थ हो. क्योंकि जब राष्ट्र स्वस्थ होगा, तभी राष्ट के सभी नागरिकों की उत्पादन क्षमता में वृद्धि होगी. और तब जाकर भारत खुद- ब- खुद विकसित हो जाएगा. आशुतोष स्वास्थ्य के क्षेत्र में फैले भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ पिछले सात साल से आवाज़ उठा रहे हैं.

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