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जानिए, इस लॉकडाउन के बाद आपके बच्चों का क्या होगा भविष्य?

 Nishchal Tyagi
Nishchal Tyagi Published May 12, 2020 1 View
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6 Min Read
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कोरोना आज भारत समेत दुनिया भर के देशों में स्वास्थ्य एवं जीवनयापन के लिए बहुत बड़ी गंभीर चुनौती बनकर खड़ी है. अभी तक 185 से ज़्यादा देशों के क़रीब 25 लाख लोग संक्रमित हैं. 2.86 लाख लोग इस दुनिया को अलविदा कह चुके हैं.

इस महमारी ने सबसे ज़्यादा प्रभावित बच्चों को किया है. इसके कारण बच्चों की असुरक्षा से संबंधित तत्कालीन प्रभाव जहां दिखने शुरू हो गए हैं, वहीं दूरगामी प्रभाव बहुत ही चुनौतीपूर्ण होने वाले हैं. लॉकडाउन के इस दौर में बच्चों को शोषण, घरेलू हिंसा और साइबर अपराधों का सामना आम दिनों से बहुत ज़्यादा करना पड़ रहा है.

आपको जानकर बेहद हैरानी होगी कि भारत में लॉकडाउन के बाद संस्था ‘चाइल्डलाइन’ को सिर्फ़ शुरू के 11 दिनों में ही घरेलू हिंसा से जुड़े 92,000 से अधिक कॉल प्राप्त हुए.

दक्षिण एशिया के सबसे बड़े बाल संरक्षण संगठनों में से एक ‘इंडिया चाईल्ड प्रोटेक्शन फंड’ ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि लॉकडाउन के बाद देश के बड़े शहरों में चाईल्ड पोर्न और बच्चों के ख़िलाफ़ हिंसा या अत्याचार दिखाने वाली सामग्री की मांग बहुत ज़्यादा तेज़ी से बढ़ी है.

घरेलू हिंसा की सबसे ख़तरनाक और दुखद स्थिति यह है कि बच्चों की शिक्षा, मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य पर भी इसका असर देखा जा रहा है.

सभी स्कूल बंद हैं. बच्चों का सारा समय घर पर बीत रहा है और बच्चों को वो आधारभूत शिक्षा नहीं मिल पा रही है जिससे उनका बौद्धिक विकास हो सके. घर में क़ैद होने के कारण उनमें अवसाद बढ़ गया है. लॉकडाउन के दौरान समाज के अन्य लोगों से संपर्क न कर पाने की स्थिति में ज़्यादातर बच्चे, सोशल नेटवर्किंग साइट्स व मोबाइल फ़ोन का अत्याधिक प्रयोग करने लगे हैं. इससे इंटरनेट पर बच्‍चों को डराने, धमकाने या फुसलाने के मामलों में भी इज़ाफ़ा हो रहा है.   

बच्चों पर महामारी के दीर्घकालीन प्रभाव

संयुक्त राष्ट्र ने कोरोना महामारी से संबंधित अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि इस महामारी की वजह से होने वाली वैश्विक मंदी के कारण 4 से 6 करोड़ बच्चे भीषण गरीबी की गर्त में जा सकते हैं. उनमें से लाखों की मौत हो सकती है.

यह सत्य है कि आख़िरी तीन महीनों में दुनिया नाटकीय रूप से बदल गई है. विश्व की अर्थव्यवस्था तेज़ी से गिरी है. भारत में लॉकडाउन ने अधिकांश कारखानों और व्यवसायों को बंद कर दिया.

‘सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ मार्च 2020 में रोज़गार दर 38 फ़ीसद के साथ सबसे निचले स्तर पर आ गई थी.

कोविड-19 के कारण उद्योगों के बंद होने से बड़ी संख्या में भारत के विभिन्न शहरों से गांवों की तरफ़ मज़दूरों का पलायन हुआ है. इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार की कमी, कामगारों की अधिकता तथा प्रतिस्पर्द्धा के कारण ग्रामीण असंगठित क्षेत्र (दिहाड़ी, कृषि मज़दूर आदि) की मज़दूरी में कमी आई है.

अब लोग क़र्ज़ के बोझ में दबेंगे. ऐसा होने से इसका सबसे ज़्यादा प्रभाव बच्चों पर ही पड़ेगा. ज़्यादा से ज़्यादा बच्चे शिक्षा से वंचित हो सकते हैं. बच्चे कम पैसे में मज़दूरी करते हैं. ऐसे में नुक़सान से जूझ रहे ठेकेदार बाल मज़दूरों की मांग ज़्यादा कर सकते हैं.

यही नहीं, परिवार में बेरोज़गारी व भुखमरी से बचने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा बच्चे बाल मज़दूरी व भिक्षावृति जैसे कृत्यों में झोंके जाएंगे. बच्चों के अवैध व्यापार का धंधा तेज़ी से फले फूलेगा. इनके अपहरण के मामलों में बढ़ोतरी भी हो सकती है. बच्चों को वेश्यावृति जैसे घिनौने कामों में भी धकेलने की संभावना बढ़ेगी. और बाल विवाह जैसी घातक सामाजिक कुरीतियां बढ़ जाएंगी.

‘बाल मित्र समाज’ का करना होगा निर्माण

ऐसे स्थिति में बच्चों के इन समस्याओं का समाधान सरकारें अकेले कभी नहीं कर सकेंगी. लॉकडाउन हटने के बाद सरकारें सबसे पहले महामारी फिर से न फैले, गिरती अर्थव्यवस्था को संभालने, राजकोषीय घाटा कम करने, खाद्यान भंडारण बढ़ाने, ऋण वसूलने आदि कार्यो पर अपना ध्यान केंद्रित करेगी. ऐसे में बाल कल्याण संबंधित कार्य प्रमुख कार्य-सूची में नहीं होंगे.

ऐसी स्थति में समाज व सामाजिक संघठनों को आगे आना होगा. इस महामारी का बच्चों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को ‘बाल मित्र समाज’ बनाकर बहुत कम किया जा सकता है. एक ऐसा समाज जहां लोग बच्चों के हितों का चिंतन करें और उनके कल्याण के लिए सभी क़दम प्रमुखता से उठाएं. देश में बड़ी संख्या में बाल मित्र ग्राम और बाल मित्र मंडलों का निर्माण करना होगा.

ऐसे में सभी समाज के लोगों की ज़िम्मेदारी और बढ़ जाती है कि वे बाल मित्र समाज बनाने में अपना पूरा सहयोग दें और बच्चों की सुरक्षा, शिक्षा और सम्मान देना और दिलवाना अपना परम कर्तव्य समझें. अगर हम बाल मित्र समाज बनाने में समर्थ होते हैं तो ये मानवता के पक्ष में एक सबसे बड़ा योगदान होगा और इसे मानव कल्याण के सन्दर्भ में विश्व की सबसे बड़ी जीत मानी जाएगी.

लेखक कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन से जुड़े हुए हैं.

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