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BeyondHeadlines > Lead > भाजपा का धर्मनिरपेक्ष उदारवादी मुखौटा : कितना झूठ कितना सच
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भाजपा का धर्मनिरपेक्ष उदारवादी मुखौटा : कितना झूठ कितना सच

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published April 18, 2014 1 View
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11 Min Read
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Mohd Arif for BeyondHeadlines

पिछले कुछ दिनों से भारतीय जनता पार्टी के नेता मुस्लिम मतदाताओं में अपनी उदारवादी और सकारात्मक छवि बनाने का प्रयास कर रहे है. भाजपा के नेता अल्पसंख्यकों को सेक्युलर पार्टियों से सावधान रहने की नसीहत भी देते नजर आ रहे हैं. उनके अनुसार ये सेक्युलर पार्टियां सच्चे अर्थों में सेक्युलर नहीं हैं, बल्कि अवसरवादी हैं.

मुसलमानों में अपनी छवि सुधारने के लिए तो भाजपा ने बाकायदा एक इकाई का भी निर्माण कर रखा है. इस क्रम में राजनाथ सिंह की माफ़ी और हाल में शाहनवाज़ हुसैन के सच्चर समिति की सिफारिशों को लागू करने जैसे बयानो को देखा जा सकता है.

भाजपा के इन दावों की हकीक़त को समझ लेना ज़रुरी है कि कल तक मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाने वाली भाजपा आज खुद मुसलमानों पर इतनी मेहरबान क्यों है?

अगर पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम पर नज़र डालें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि लोकसभा चुनावों के ठीक पहले भाजपा के नेताओं के सुर बदले हुए हैं. इस बार भाजपा नेता बहुत ही कूटनीतिक और सोच समझकर बयान दे रहे हैं. भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि हम मुसलमानों से माफ़ी मांगने को तैयार हैं, लेकिन दूसरे ही दिन भाजपा प्रवक्ता मुख़्तार अब्बास ने इसका खंडन करते हुए  कहा कि जब कोई गलती ही नहीं की तो माफ़ी किस बात की ?

अगर इन बयानों का निहितार्थ देखें तो साफ़ पता चलता है कि गुजरात दंगों को लेकर भाजपा नेतृत्व न ही शर्मिंदा है. न ही उसे गलती मानने को तैयार है. यह नरेन्द्र मोदी के उस बयान का ही मुख़्तार अब्बास वर्जन है, जिसमे मोदी ने कहा था कि प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया होती है.

इससे साफ़ पता चलता है कि भाजपा ने अल्पसंख्यकों को लेकर न अपनी रणनीति बदली है और न ही उनके पास संघ की विचारधारा से स्वतंत्र कोई राजनैतिक कार्यक्रम है.

भाजपा प्रवक्ता शाहनवाज़ हुसैन ने एक साक्षात्कार में मुसलमानों को इंसाफ देने की बात कही है, उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए कहा कि 60 सालों में कांग्रेस ने मुसलमानों को छला है. भाजपा अब सच्चर समिति के आधार पर मुस्लिमों के विकास के लिए कार्यक्रम बनायेगी.

इसमें सबसे रोचक तथ्य ये है कि भाजपा शुरुआत से ही सच्चर समिति की सिफारिशों का विरोध करती रही है और इसे पूर्वाग्रहग्रस्त और मुस्लिम-तुष्टिकरण क़रार देती है.

सवाल ये है कि भाजपा लोकसभा चुनावों के ठीक पहले मुसलमानों पर इतना मेहरबान क्यों है? गुजरात दंगों के बाद से ही भाजपा के चरित्र और संघी विचारधारा को लागू करने के एजेंडे ने देश के तमाम बुद्धिजीवियों और धर्मनिरपेक्ष इंसाफपसंद आवाम को इस सांप्रदायिक ज़हर से निपटने के लिए सोचने पर मजबूर कर दिया था, जिससे भाजपा की छवि उग्र  हिंदुत्व की पैरोकार के रूप में बनी है.

वस्तुतः वर्तमान में इस तरह की बयानबाजी का मक़सद गुजरात दंगों के दाग़ को मिटाने का प्रयास है और नरेन्द्र मोदी को पूरे भारत के नेता के रूप में प्रस्तुत करने के एजेंडे का हिस्सा है.

ये निर्विवाद रूप से सत्य है कि बौद्धिक चेतना के लोग और तमाम धर्मनिरपेक्ष लोग संघ की इस भेड़चाल को अच्छी तरह से समझते हैं. उनके मुखर विरोध को कम करने के लिए भाजपा इस तरह की बयानबाज़ी कर रही है और यह ड्रामा कर रही है कि वह विकास पर आधारित राजनीति करती है.

सच्चर समिति की रिपोर्ट की ही तरह भाजपा सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम एवं लक्षित हिंसा (न्याय एवं क्षतिपूर्ति) विधेयक को भी नकारती है और इसे हिन्दू समुदाय के विरुद्ध विद्वेषपूर्ण बताकर दुष्प्रचारित करती है.

राष्ट्रीय एकता परिषद की सोलहवीं बैठक जो सांप्रदायिक दंगों से निपटने की रणनीति पर आयोजित की गयी थी उसमे नरेन्द्र मोदी ने न तो हिस्सा लिया और न ही अपना प्रतिनधि भेजना उचित समझा, ये उपेक्षा मोदी के संघी विचारों को ही पुष्ट करती है कि सांप्रदायिक हिंसा ‘क्रिया की प्रतिक्रिया’ का परिणाम है.

वास्तव में भाजपा मुसलमानों को लेकर केवल एक भ्रम पैदा कर रही है. भाजपा की सदैव रणनीति रहती है कि मुसलमानों के विरुद्ध हिंदुत्व के नाम पर वोटों का ध्रुवीकरण किया जाये  और यह संघ  की पुरानी वैचारिक रणनीति का हिस्सा रहा है. यहां मुसलमानों के संबंध में संघ के विचारों को जान लेना उचित होगा संघ यह स्पष्ट घोषणा करता है कि हिंदुस्तान में राष्ट्र का अर्थ ही हिन्दू है.

गुरु गोलवलकर के शब्दों में “विदेशी तत्वों के लिए सिर्फ दो रास्ते खुले हैं, या तो वे राष्ट्रीय जाति के साथ मिल जाएं और उसकी दया पर रहें… यही अल्पसंख्यकों की समस्या के बारे में आजमाया हुआ विचार है. यही एकमात्र तर्कसंगत और सही समाधान है. जाति और संस्कृति की प्रशंसा के अलावा मन में कोई और विचार न लाना होगा अर्थात हिन्दू राष्ट्रीय बन जाना होगा और हिन्दू जाति में मिलकर अपने स्वतंत्र अस्तित्व को गंवा देना होगा, या इस देश में पूरी तरह से हिन्दू राष्ट्र की गुलामी करते हुए, बिना किसी प्रकार का विषेशाधिकार मांगे, विशेष व्यव्हार की कामना करने की तो उम्मीद ही न करे, यहां तक कि बिना नागरिकता के अधिकार के रहना होगा. उनके लिए इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं छोड़ना चाहिए. हम एक प्राचीन राष्ट्र हैं और हमें उन विदेशियों से उसी प्रकार निपटना चाहिए जैसे कि प्राचीन राष्ट्र विदेशी नस्लों से निपटा करते हैं.”(गोलवलकर,’वी’ पृष्ठ 47-48)

गोलवलकर राष्ट्र को परिभाषित करते हुए कहते हैं,“सिर्फ वे लोग ही राष्ट्रवादी  देशभक्त हैं जो अपने ह्रदय में हिन्दू जाति और राष्ट्र की शान बढ़ने की आकांक्षा रखते हुए इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील होते हैं अन्य सभी या तो राष्ट्रीय हित के लिए विश्वासघाती और शत्रु हैं या नरम शब्दों में कहें तो मूर्ख हैं.”(वही पृष्ठ 44)

फासीवादी विचारों का विरोध करने वाली सभी पार्टियों को आरएसएस सदैव ‘नकली राष्ट्रवादी’ कहता रहा है. इसी  तरह वर्तमान में भी आरएसएस ने सभी पार्टियों को धर्मनिरपेक्षता का ढोंग करने वाला घोषित कर रखा है.

भाजपा प्रवक्ता शाहनवाज़ हुसैन ने कहा है कि वे दीनदयाल उपाध्याय के अन्त्योदय दर्शन का पालन करते हुए अंतिम पंक्ति के हर व्यक्ति (मुसलमानों को भी) को विकास से जोड़ेंगे. दीनदयाल उपाध्याय एकात्म  मानववाद और जनसंघ के सिद्धान्तकर रहे हैं. उनके विचारों पर आरएसएस ने 7 खण्डों में एक पुस्तक माला प्रकाशित की है, जिसमे केंद्रीय सूत्र के रूप में मुसलमानों को राजनीतिक तौर पर पराजित करने का प्रमुख लक्ष्य छाया हुआ है. वे यह मानते हैं कि जब तक मुसलमानों की राजनीतिक हैसियत को पूरी तरह से रौंद नहीं दिया जाता है तब तक उनके हिंदुत्व पर आधारित राष्ट्र की स्थापना नहीं हो सकती है. गोलवलकर की तरह वे भी मुसलमानों को हिन्दू राष्ट्र के ‘आतंरिक संकट’ मानते थे.

 दरअसल, भाजपा अपने पितृ-संगठन की वैचारिक कार्यक्रमों को लागू करने का ही एक राजनैतिक उपक्रम है, जिसे संघ से ही प्राणवायु मिलती है. वस्तुतः संघ का उद्देश्य केवल सत्ता प्राप्ति नहीं है, बल्कि वह इसके माध्यम से अपने एकात्मवादी हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना चाहता है, जो अपने मूल वैचारिक स्वरुप में घोर सांप्रदायिक, प्रतिक्रियावादी, जनतंत्र विरोधी है.

संघ का राष्ट्रवाद असमानता पर आधारित राष्ट्र के निर्माण की बात करता है. “हमारे दर्शन के अनुसार ब्रह्माण्ड का उदय ही सत्व, रजस और तमस के तीन गुणों के बीच संतुलन बिगड़ने के कारन हुआ है और इन तीनो में यदि बिल्कुल सही ‘गुणसाम्य’ स्थापित हो जाये तो ये ब्रह्मांड फिर शून्य में विलीन हो जायेगा. इस लिए असमानता इस प्रकृति का अविभाज्य अंग है. इसलिए ऐसी कोई भी व्यवस्था जो इस अन्तर्निहित असमानता को पूरी तरह समाप्त करना चाहती है, वह विफल होने के लिए बाध्य है.” (एम एस गोलवलकर,बंच ऑफ़ थॉट्स,1960 पृष्ठ 31)

इस प्रकार संघ वैचारिक स्तर पर न केवल अल्पसंख्यक विरोधी है, अपितु दलित और पिछड़ा विरोधी भी है और सामाजिक न्याय को नकारता है. संघ भारत के वैविध्यपूर्ण स्वरुप को एकात्मवादी बनाना चाहता है. गोलवलकर के ही शब्दों में “इस लक्ष्य को हासिल करने का सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली क़दम हमारे संविधान के संघीय ढांचे की तमाम बैटन को भगवान के लिए बहुत गहरे दफना देना होगा, एक भारत के अन्दर सभी स्वायत्त या अर्धस्वायत्त राज्यों के अस्तित्व को समाप्त कर देना होगा और ‘एक देश, एक राज्य, एक विधायिका और एक कार्यपालिका’ की घोषणा करनी होगी… संविधान का पुनर्निरीक्षण किया जाना चाहिए तथा इस प्रकार की एकात्म सरकार की स्थापना के लिए उसका पुनर्लेखन किया जाना चाहिए. (एम एस गोलवलकर,बंच ऑफ़ थॉट्स,1966 पृष्ठ 435- 436)

इससे स्पष्ट हो जाता है कि भाजपा नेतृत्व द्वारा दिए जा रहे बयान केवल एक दिखावा मात्र है जबकि संघ के आगे भाजपा पूरी तरह से नतमस्तक है. यह बात शीशे की तरह साफ़ है चाहे वह मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जाना हो या फिर मुरली मनोहर जोशी और लालजी टंडन को लोकसभा सीटें छोड़ने का निर्देश, भाजपा नेतृत्व आज्ञाकारी बच्चे की तरह उसका पालन करता है.

ऐसे में भाजपा का मुसलमानों के प्रति यह उदारवादी मुखौटा किसी को दिग्भ्रमित नहीं कर सकता है, क्योंकि हमारे यहां एक कहावत है कि दूध का जला छाछ भी फूंक कर पीता है.

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