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लूट की दास्तान —4…

लूट की दास्तान —1…

लूट की दास्तान —2…

लूट की दास्तान —3…

इस लूट की सबसे खास बात यह है कि काले धन को मनीलांड्रिंग को जरिए सफेद किया जाता रहा और ईडी के अफसर खड़े तमाशा देखते रहे. आरबीआई ने खुद न सिर्फ मनीलांड्रिंग का कच्चा चिट्ठा खोला बल्कि अखिलेश दास के खिलाफ मनीलांड्रिंग एक्ट के तहत मामला चलाने की सिफारिश भी की. अरबों की मनीलांड्रिंग के जरिए देश की वित्तीय सुरक्षा से भी खिलवाड़ किया गया है. जिसकी उच्चस्तरीय जांच भारत सरकार को करानी चाहिए.

यहीं नहीं अखिलेश दास गुप्ता ने नोएडा अथारिटी का भी करोड़ों रुपया षडयंत्र के तहत अपनी कंपनियों के जरिए हड़प लिया इस घोटाले में अथारिटी के बड़े अफसर भी शामिल थे. मनीलांड्रिंग की भनक पड़ते ही आरबीआई ने मर्केंटाइल कोआपरेटिव बैंक को 26 फरवरी, 2012 को पत्र भेजकर कहा कि संदिग्ध लेनदेन आरबीआई के सर्कुलर यूबीडी.एनओ. 21/12.05.00/93 दिनांक 21 सितम्बर 93 का उल्लंघन है. इसलिए फिनैंशिएल इंटेलिजेंस यूनिट नई दिल्ली से संपर्क करें.

इसके बावजूद बैंक चुप्पी साधे रहा. प्रिटेंशन आफ मनीलांड्रिंग एक्ट 2002 के उल्लंघन पर आरबीआई ने पुनः एलके.यूबीडी. 1365/1203.381/2009-10, 26 फरवरी को एक रिमांडर भेजा. लेकिन बैंक ने 31.3.2012 तक इसका भी पालन नहीं किया. आरबीआई ने यह तक कहा कि विराज कंस्ट्रक्शन, विराज प्रकाशन व कबीर सिक्योरिटी में एक बार में सात करोड़ का संदिग्ध लेनदेन कैसे किया गया.

Dr.-Akhilesh-Das-Gupta

अब जरा मनीलांड्रिंग के पूरे गोरखधंधे पर गौर फरमाएं तो 20 मार्च 2007 को मर्केंटाइल बैंक की अलीगंज ब्रांच ने करीब 72 लाख 50-50 हजार के 144 पेमेंट आर्डर मधु सिंह को नकद के सापेक्ष जारी किए. जबकि उक्त मधु सिंह के निवास का कहीं अता पता नहीं था. 5 जून 2007 बचत खाता सं. 1634 मधु सिंह के नाम पर खोला गया था. पते का प्रमाण तक नदारद था. इसका साफ अर्थ है कि उक्त खाता धारक का पता फर्जी था.

इसी तरह दीप्ति गुप्ता, सौरभ गुप्ता, गरिमा गुप्ता, जीआर गुप्ता, पीआरके गुप्ता, प्रेमलता गुप्ता के नाम से 28.3.2007 को 63 पे-आर्डर करीब 32 लाख के जारी किये गये जो अखिलेश दास गुप्ता के रिश्तेदार बताए जा रहे हैं.

इसी तरह 3.5.2007 व 28.3.2007 अलीगंज विस्तार ब्रांच से 24 डीडी (415266-415289 नं. तक) 50-50 हजार की स्टेट बैंक आफ इंडिया स्टॉफ एसोसिएशन कोआपरेटिव लि. के फेवर में बनाये गये. जो एचडीएफसी बैंक कटक से 3.5.2007 को भुनाए गए.

इस संदिग्ध लेनदेन के बारे में भारत सरकार की संस्था एफआईयू नई दिल्ली को नहीं सूचित किया गया था. बैंक के तमाम खाता धारकों के दस्तावेज अधूरे थे. वहीं बैंक में केवाईसी गाइड लाइन का पालन भी नहीं किया जाता था.

यहीं नहीं नई दिल्ली, लुधियाना और जालंधर में अरबों की मनीलांड्रिंग की गयी. जो डीडी या पे-आर्डर जारी किये जा रहे थे, उनके खाता धारकों के फर्जी होने की पूरी संभावना थी. यहीं नहीं मर्केंटाइल बैंक की नादान महल ब्रांच ने 51.25 लाख के 391 संदिग्ध डीडी जारी किये थे. इसके बाद इसी ब्रांच से 53.47 लाख के 398 डीडी, 55.17 लाख के 479 डीडी जारी किये गये थे. जो क्रमशः 15 अप्रैल 2003, 12 दिसंबर 2008, 18 मार्च 2009 के थे.

भारत इंटरप्राइजेज, योगेश ट्रेडिंग कंपनी, कालका इंटरप्राइजेज, एसपी इंटरप्राइजेज, मां कालका इंटरप्राइजेज, शालीमार इंटरप्राइजेज, एबी इंटरप्राइजेज, शिवा ट्रेडिंग कंपनी, डीएन कार्मशियल सर्विसेज, बी.ई.ई. ईएसएस इंटरप्राइजेज, केदार इंटरप्राइजेज, हिमगिरि इंटरप्राइजेज, वीनस इंटरप्राइजेज, आरके ट्रेडिंग, कृष्णा इंटरप्राइजेज, नीलकण्ठ पॉलीमर, श्रीगोविन्द इंटरप्राइजेज, गुरू इंटरप्राइजेज, डीएस इंटरप्राइजेज, पीआरपी ट्रेडिंग कंपनी, कीर्ति कारपोरेशन, परास इनविस्टीमेंट, बंसल ट्रेडिंग कंपनी, साथल ट्रेडिंग कंपनी, आरएस फाइनेंस कंपनी, आनन्द ट्रेडिंग कंपनी जैसी तमाम संस्थाओं को मनीलांड्रिंग के जरिए पैसा पहुंचाया गया. विस्तृत जांच में यह कंपनियां निश्चित तौर पर फर्जी साबित होंगी.

खाता संख्या 4559, 4843, 4855, 4883, 4911, 4910, 4761, (तेलीबाग ब्रांच) 8710, 8711, 8715, 8763, 8769,8771, 8731, 8737, 8739, 8740, 8741, (कैंट ब्रांच) 2432, 2445,2407, (नादान महल ब्रांच) 2460, 2459, 2457, 2442, 2438, (एलडीए कालोनी ब्रांच) इन खातों से भारी मात्रा में नकद धनराशि का लेनदेन हुआ. वहीं इन खातों में ब्रांच मैनेजर के हस्ताक्षर भी नहीं है और केवाईसी फाम्र्स का पालन भी नही किया गया. यहीं नहीं अखिलेश दास के भाई आरके अग्रवाल को 485 लाख का लोन नियमों के विपरीत दिया गया.

यहीं नहीं बैंक में जमा नोएडा अथॉरिटी का करीब 64 करोड़ रुपया अखिलेश दास की कंपनी मेसर्स विराज कंस्ट्रक्शन, लाल सिंह, बाबू बनारसी दास एजूकेशनल सोसाइटी, ओशो एसोसिएट्स, एसजेएस कंस्ट्रक्शन प्रा.लि., संकल्प एडवाइजरी सर्विसेज प्रा.लि. के खाते में गया.

यह सनसनीखेज खुलासा खुद आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में किया है. विराज कंस्ट्रक्शन में डायरेक्टर अखिलेश दास गुप्ता व उनकी पत्नी अलका दास गुप्ता थे. इस घोटाले में नोएडा अथॉरिटी के बड़े अफसर भी शामिल है. क्योंकि अथॉरिटी ने अपनी 31.3.2007 की बैलेंस सीट में इंडियन मर्केंटाइल कोआपरेटिव बैंक में जमा 64 करोड़ रुपया धोखाधड़ी के तहत दिखाया ही नहीं. जिस पर खुद आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि यह अपराध धारा 120बी, 166, 167, 409, 465, 468 और 418 आईपीसी धारा के तहत बनता है.

यहीं नहीं बैंक ने करोड़ की फर्जी बैंक गारंटियां भी जारी की हैं. जिसमें राष्ट्रपति की बैंक गारंटी भी शामिल है. आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि बैंक ने मकानों के बावत 610.29 लाख का ऋण भी दिया है. मनीलांड्रिंग के जरिए इंडियन मर्केंटाइल कोआपरेटिव बैंक के चेयरमैन रहे अखिलेश दास व अलका दास गुप्ता ने अरबों का संदिग्ध लेनदेन फर्जी नामों के जरिए किया. अरबों की मनीलांड्रिग के बावजूद ईडी ने जांच क्यों नहीं की. यह एक बड़ा सवाल है.

                                                         —लूट की दास्तान आगे भी जारी रहेगी…

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