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चक्रव्यूह में फंसे मजदूर प्रकाश झा के ख़िलाफ़ सत्याग्रह के लिए तैयार

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

फ़िल्म निर्माता प्रकाश झा की ‘सत्याग्रह’ जल्द ही बड़े पर्दे पर रिलीज़ होगी. जैसा की नाम से ही ज़ाहिर है फ़िल्म में सत्य, अहिंसा, त्याग और तपस्या जैसे भाव प्रदर्शित किए जाएंगे. खैर ये तो हुई बड़े पर्दे की बात… लेकिन जब प्रकाश झा की सत्याग्रह पर्दे पर लोगों को एक आदर्श समाज और व्यवस्था की उम्मीद दिखा रही होगी ठीक उसी वक्त उनके ‘चक्रव्यूह’ में फंसे किसान एक वास्तविक सत्याग्रह कर रहे होंगे.

और यह सत्याग्रह स्वंय प्रकाश झा और उनके भाई प्रभात झा के ख़िलाफ़ होगा. फ़िल्मी सत्याग्रह का रोमांच तो शायद आप तक पहुँच जाए लेकिन असली सत्याग्रह की वजह, दर्द और वेदना शायद ही आप तक पहुंच पाए.

प्रकाश झा के ख़िलाफ़ सत्याग्रह की तैयारी कर रहे सत्याग्रहियों का नारा है, “बहुत हो चुका अब न सहेंगे… अपना हक़ अब लेकर रहेंगे…”

प्रकाश झा के घर के कैम्पस में बना एक झोंपड़ी

प्रकाश झा के घर के कैम्पस में बना एक झोंपड़ी…

दरअसल, मामला यह है कि प्रकाश झा के गांव में उनके यहां काम करने वाले लगभग 60 मजदूरों (जो भूदाता भी हैं) को पिछले तीन महीने से पगार नहीं दी गई है. पगार न मिलने की स्थिति में इन मजदूरों ने आगामी 30 अगस्त से ‘सत्याग्रह’ करने की तैयारी की है.

यह सत्याग्रह गाँधी के पहले सत्याग्रह की भूमि चम्पारण में होगा. मजदूरों का कहना है कि गांधीवाद क्या होता है, यह चम्पारण की जनता से अधिक कोई और नहीं जान सकता.

जब हमने इस सिलसिले में प्रकाश झा के बड़े भाई प्रभात झा से बात की तो उन्होंने इस बात से इंकार कर दिया और हमसे पूछने लगे कि आपको यह सारी बातें बताई किसने? यही नहीं उल्टे कहने लगे कि कोई मजदूर हमारे यहां काम ही नहीं करता है. प्रभात झा ने कहा कि जिन लोगों की बात आप कर रहे हैं वे असल में भूधारी हैं, और हमने अपना 3.5 करोड़ की इंडस्ट्री लगाकर अपना पूरा कारोबार उनके हवाले कर दिया है.

प्रभात झा यहीं नहीं रुके. उन्होंने इस आशय में ख़बर प्रकाशित करने पर BeyondHeadlines पर मानहानी का मुक़दमा करने की चेतावनी भी दे डाली. (स्पष्ट रहे कि BeyondHeadlines ने सबसे पहले उनके गांव पहुंच कर वहां के भूदाताओं व उनके गांव के हालात पर स्टोरी लिखी थी. जिसके बाद देश के कई प्रमुख मीडिया संस्थानों ने इस विषय पर कहानी प्रकाशित की थी.)

प्रकाश झा के प्रस्तावित चीनी मिल का दफ्तर

प्रकाश झा के प्रस्तावित चीनी मिल का दफ्तर

यही नहीं उसी दिन BeyondHeadlines को पवन कुमार तिवारी नाम के एक व्यक्ति ने फोन किया और स्वयं को भूदाता बताते हुए कहा कि यहाँ कोई समस्या नहीं है. उसने यह भी बताया कि सभी मजदूरों को समय पर पैसा मिल रहा है. पवन ने कहा,  “आपको शायद किसी ने गलत सूचना दी है. ऐसे में बेहतर होगा कि आप मुद्दे पर कुछ भी न लिखे, क्योंकि आपके लिखने से हम गरीबों का नुक़सान होगा. हमारी रोजी-रोटी खत्म हो जाएगी.”

लेकिन जब हमने तहक़ीक़ात की तो पता चला है कि पवन कुमार एक एडवोकेट हैं और प्रभात झा के मैनेजर व कानूनी सलाहकार की हैसियत से कार्य करते हैं. बहरहाल, अब हमने उन्हें फोन करके बातचीत की तो उन्होंने हमें तमाम बातों से अवगत कराया और स्वीकार किया कि भूधारी मजदूरों को दो महीने से सैलरी नहीं दी जा सकी है, क्योंकि सावन की वजह से अभी तालाब की मछलियां बिक नहीं पाईं हैं. उन्होंने कहा कि मछलियां बिकने के बाद ही मजदूरों को सैलरी दी जाएगी.

प्रकाश झा के मौर्य चीनी मिल का शिलान्यास पट

प्रकाश झा के मौर्य चीनी मिल का शिलान्यास पट

प्रभात झा के कानूनी सलाहकार पवन कुमार तिवारी ने बताया कि 181 लोगों ने प्रकाश झा के मौर्या चीनी के लिए अपने ज़मीन दी है. (जबकि BeyondHeadlines के पास पवन कुमार तिवारी द्वारा लिखा गया पत्र मौजूद है, जिसमें उन्होंने खुद लिखा है कि 270 लोगों ने अपनी ज़मीन चीनी मील के पक्ष में रजिस्ट्री कर दी है).

जब चीनी मिल नहीं खुल सकी तो हम भूदाताओं ने ‘भाई जी’ (सारे भूदाता प्रकाश व प्रभात झा को  ‘भाई जी’ ही कहकर बुलाते हैं.) से कहा कि वो हमारे रोज़गार के लिए कुछ व्यवस्था करें, जिससे हमारा घर-परिवार चल सके. तो ‘भाई जी’ ने बैंक से लगभग साढ़े तीन करोड़ रूपये कर्ज लेकर गुरूवलिया में मछली पालन का काम शुरू किया, साथ ही 3500 केला के पेड़ भी लगाए गए. उनके घर पर भी मछली पालन के लिए एक तालाब खोदा गया. इसके अलावा शनिचरी में मछली पालन का कार्य शुरू किया गया.

उन्होंने बताया, “110 लोगों को ‘भाई जी’ की तरफ से हर महीने 500 रूपये का मानदेय दिया जाता है. बाकी 60 लोग 5 हज़ार से अधिक की सैलरी पर बहाल किए गए. फिलहाल 26 लोग गुरूवलिया, 8-10 लोग उनके घर पर और लगभग 16 लोग शनिचरी में काम करते हैं. यहां किसी को कोई समस्या नहीं है. लीज पर हम लोग ही मालिक हैं. साथ ही हमारा प्रगतिशील भूदाता संघ भी है, जिसके सर्वे-सर्वा हम खुद हैं. हम हर महीने मछली व केला बेचकर जो पैसा आता है, उससे सबको पगार देते हैं. बाकी जो बच जाता है उसे ‘भाई जी’ को दे देते हैं ताकि बैंक से जो लोन लिया गया है उसे चुकाया जा सके. बस इस बार सावन की वजह थोड़ी समस्या हुई है, जिसकी वजह से पिछले दो महीनों हम तमाम लोगों को सैलरी नहीं मिल पाई है. लेकिन जैसे ही मछली बेची जाएगी, सैलरी दे दी जाएगी.”

प्रकाश झा के प्रस्तावित मौर्य चीनी मिल की ज़मीन पर केले की खेती

प्रकाश झा के प्रस्तावित मौर्य चीनी मिल की ज़मीन पर केले की खेती

आगे उन्होंने यह भी बताया कि 18 लोगों ने ‘भाई जी’ के साथ धोख़ा किया है. वही लोग ‘भाई जी’ के खिलाफ भूदाता संघ बनाकर परेशान कर रहे हैं. दरअसल, इन लोगों अपनी जो ज़मीन लिखी है, वो ज़मीन है ही नहीं. ऐसा करने वालों को प्रभात झा ने लीगल नोटिस भेजा है.

लेकिन जब हमने भूदाता संघ के हरगुण त्रिपाठी से बात की तो उनका कहना है कि यह सारी बातें झूठ हैं और हमें कोई लीगल नोटिस नहीं मिला है. न ही कोई फर्जीवाड़ा हुआ है. त्रिपाठी आरोप लगाते हैं, “फर्जीवाड़ा तो उनके ‘भाई जी’ कर रहे हैं. जब उन्होंने चीनी मिल के नाम पर ज़मीन ली तो अब तक मिल क्यों नहीं खोला गया.”

दरअसल प्रकाश झा ने जब चीनी मिल के लिए जगह ली थी तब उन्होंने लोगों को नौकरी देने का वादा किया था. मिल तो खुली नहीं बल्कि मछलियां पलने लगी. भूदाता अब मछली पालन में मजदूर बनकर रह गए हैं. और उस पर भी उन्हें अपनी सैलरी नहीं मिल पा रही है. ऐसे में कई मजदूरों के घरों में चूल्हा तक बुझ गया है. उनके बच्चों को खाने के लाले पड़ गए हैं.

प्रकाश झा के प्रस्तावित मौर्य चीनी मिल की ज़मीन पर मछली पालन

प्रकाश झा के प्रस्तावित मौर्य चीनी मिल की ज़मीन पर मछली पालन

यानि पहले तो प्रकाश झा ने लोगों को मील लगाने का झांसा देकर ज़मीन ली. ज़मीन देने के बाद किसान अब उनकी ही घर पर मजदूर बन गए हैं और समस्या यह है कि अब उन्हें अपनी मजूरी भी नहीं मिल पा रही है.

लेकिन अब लगता है मजदूरों की भूख ने जबाव दे दिया है. वे आंदोलन पर उतारू हैं. कुछ मजदूरों का कहना है कि भूखों मरने से अच्छा है कि हम आंदोलन करके क्रांतिकारी की मौत मरे.

चीनी मिल का सब्जबाग दिखाकर ठगी के आरोप में भूदाता संघ ने एक जनहित याचिका भी पटना हाई कोर्ट में दायर की थी जिसे अदालत ने फिलहाल निरस्त कर दिया है.

वरिष्ठ वकील अमरेन्द्र कुमार सिंह इसका कारण बताते हुए कहते हैं कि चुंकि यह जनहित याचिका उन लोगों की तरफ से डाली गई थी जिन्होंने अपनी ज़मीन दी है. इसी बात को देखते हुए माननीय उच्च न्यायलय ने  फिलहाल इसे निरस्त कर दिया है. इसलिए अब हम इन कमियों को ध्यान में रखते हुए दुबारा इसे दायर करेंगे. दूसरी तरफ निचली अदालतों में भी ‘भाई जी’ के विरूद्ध मुक़दमें की तैयारी चल रही है.

इस पूरे मामले का एक बेहद दुखद पहलू भी है. 34 वर्षीय ओम प्रकाश के 55 वर्षीय पिता किशोरी प्रसाद भाई जी के ही तालाब में काम करते थे. उनके पिता ने अपनी लाखों की कीमत वाली ज़मीन सिर्फ 22 हज़ार कट्ठा के हिसाब से भाई जी को बेच दी थी.  किशोरी प्रसाद से वादा किया गया था कि मिल खुलने पर उनके दोनों बेटों को पक्की नौकरी दे दी जाएगी. इसी वादे के झांसे में आकर किशोरी प्रसाद ने अपनी 6 कट्ठा ज़मीन भाई जी को बेच दी और खुद अपने ही खेतों में मजदूर बन गए.

बीती 11 जनवरी 2013 को काम करने के दौरान वो तालाब में गिर पड़े. उन्हें  कोई बचाने नहीं आया और उनकी मौत हो गई.

‘भाई जी’ ने अपने मजदूरों का जीवन बीमा करा रखा है, हालांकि बीमे के कागज़ किसी भी मजदूर को नहीं दिए गए हैं.

ओम प्रकाश बताते हैं कि पिता के मौत के बाद इंश्योरेंस कम्पनी वाले मेरे घर पूछताछ के लिए आए थे. पूरी इंक्वायरी  भी की. पोस्ट-मार्टम रिपोर्ट भी ले गए. लेकिन मिला कुछ नहीं. हमने इस सिलसिले में ‘भाई जी’ से मुलाकात की. उन्होंने आश्वासन दिया कि हम आपको पैसा मिलेगा, लेकिन आज तक कोई पैसा उनकी तरफ से नहीं मिला.

आगे उन्होंने बताया कि उनकी मां को लकवे की शिकार है, उनके इलाज पर हर महीने दो-ढ़ाई हज़ार रूपये खर्च आते हैं. और ‘भाई जी’ ने मदद की बात कही, लेकिन यह भी एक झूठा आश्वासन ही निकला. जब भी हम फोन करते हैं, तो वो कोई न कोई बहाना करके बात को टाल देते हैं. अपना दुखड़ा सुनाना शुरू कर देते हैं. यही नहीं, सिक्यूरिटी कम्पनी के ट्रेनिंग के नाम उनके भाई से काम लिया गया, लेकिन आज तक न नौकरी मिली और न ही कोई पैसा. वे भर्राई आवाज़ में कहते हैं कि शुगर मिल के नाम हम लोग ठग लिए गए.

प्रकाश झा के चक्रव्यूह में फँसे कई और लोगों के पास भी सुनाने के लिए ऐसे ही दुखड़े हैं. लेकिन न उन्हें सुनने वाले कोई है और न ही उनकी सुध लेने वाला.

हाँ ये अलग बात है कि 30 अगस्त को जब चमकीले पर्दे पर अमिताभ बच्चन सत्य, अहिंसा और त्याग की बातें करेंगे तो न जाने कितनों के आँसू गालों का चुंबन ले लेंगे.

लेकिन ज़मीन पर सत्याग्रह करने वाले इन लोगों की सुध लेने वाला कोई नहीं. उल्टे जब BeyondHeadlines ने इन पर कहानी करने की कोशिश की तो प्रभात झा की ओर से मानहानि का मुक़दमे की धमकी दी गई है. हम बस यही सोच रहे हैं कि प्रभात झा के मान की हानि तो हो सकती है, लेकिन जो लोग भूखे हैं, जिन मजदूरों का पसीना सूख कर हवा हो गया और मजदूरी नहीं मिली, जो बाप बेटों को सुखी देखने की आस में ही डूब कर मर गया, जिन माओं की आँखों के सपने छीन लिए गए क्या उनकी हानि का हिसाब कोई रख पाएगा?

आप सत्याग्रह देखिए, ताली बजाइये, फेसबुक-ट्विटर पर फ़िल्म के बारे में टिप्पणियाँ लिखिए, और अगर आपकी आत्मा तक उन ग़रीबों की आवाज़ पहुंच जाए तो ज़रा उनके लिए भी एक दो पल निकालियों और सोचिए की हालात ऐसे क्यों हैं, और क्या हालात और बेहतर हो सकते हैं?

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