Category: #2Gether4India

  • ‘ज़रूरत इस बात की है कि संविधान में यक़ीन रखने वाले लोग एकजूट हों…’

    ‘ज़रूरत इस बात की है कि संविधान में यक़ीन रखने वाले लोग एकजूट हों…’

    दिल्ली से अपने घर सहारनपुर लौट रही थी. ट्रेन में मेरी सीट के ठीक सामने एक मराठी परिवार पहले से मौजूद था. वो लोग मुम्बई से मनाली ठंड का मज़ा लेने जा रहे थे. वहीं दूसरी तरफ़ एक सिख परिवार अमृतसर के सफ़र पर था.

    अभी दिल्ली से ट्रेन चली ही थी कि थोड़ी देर की ख़ामोशी के बाद हमारी बातचीत शुरू हुई. हम सब एक दूसरे से रूबरू हुए. इनकी संस्कृति और इनके इलाक़े की भूगोल जानने में मेरी दिलचस्पी थी. बात उनके पकवानों तक पहुंच चुकी थी. मैं उनकी बातों को बेहद ग़ौर से सुन रही थी.

    लेकिन इसी दौरान उन्होंने मुझसे मेरे हिजाब के बारे में सवाल किया कि मुस्लिम लड़कियां हिजाब क्यों पहनती हैं? क्या हिजाब और बुर्का पहनना ज़रूरी होता है?

    मैंने उन्हें बताया कि हमारे मज़हब इस्लाम में मर्द और औरत दोनों के लिए कुछ सीमाएं तय की गई हैं. औरतों के लिए कहा गया है कि जब वो घर से निकलें तो अपने सरों और सीनों को ढाक लें. इसी तरह मर्दों को भी हुक्म दिया गया कि अपनी निगाहों को नीचा रखें…

    वो मेरी बातों को बहुत ग़ौर से सुन रहे थे. आगे बात करते हुए मैंने उन्हें बताया कि जैसा आज का दौर है, हम किसी और पर कोई पाबंदी नहीं लगा सकते हैं कि वो हमें न देखे. इसलिए हम खुद अपना बचाव करते हैं. अपना फ़र्ज़ अदा करते हैं. वैसे ये हिजाब मेरी पहचान है कि मैं एक मुस्लिम लड़की हूं. मैं अपने ख़ुदा के आदेशों को मानती हूं. और ऐसा नहीं है कि ये हिजाब मेरी कामयाबी में कोई रुकावट बन रहा है, बल्कि ये मुझे कॉन्फिडेंट फ़ील कराता है.

    मैंने अपनी दोस्त तूबा हयात ख़ान का उदाहरण देते हुए बताया कि मेरी ये दोस्त  हिजाब के साथ बहुत से पब्लिक स्पीकिंग कॉम्पटीशन, डिबेट कॉम्पटीशन, यूथ पार्लियामेंट में राष्ट्रीय स्तर पर अपने मुल्क भारत का नाम रौशन कर चुकी है. तूबा की तरह मेरे पास कई सारी हिजाबी लड़कियों की कहानियां थीं. मैं उन कहानियों को सुना रही थी और वो लोग बड़े ग़ौर से सुन भी रहे थे…

    मुझे नहीं पता कि उन्हें मेरी बात किस हद तक समझ में आई. लेकिन सामने बैठे सिख परिवार को मेरा नाम और उसका मतलब काफ़ी पसंद आया. इस परिवार के मुखिया  हरप्रीत अंकल ने तो यहां तक कह दिया कि हमारी फ़ैमिली में आगे जब कोई बच्चा पैदा होगा तो हम उसका नाम यही रखेंगे…

    मेरे लिए तो खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं रहा. जहां एक ख़ास विचारधारा से संबंध रखने वाले कुछ लोग रंगों, फलों और जानवरों को सांप्रदायिक पहचान दे रहे हैं, वहीं एक परिवार अपने आने वाली बच्ची को मुस्लिम नाम देने की बात कर रहा है…

    इन सब बातों के दरम्यान कब हमारे चार घंटे ख़त्म हो गए और मेरी मंज़िल आ गई, मुझे पता ही नहीं चला. 

    अब मैं अपने घर पर हूं. लेकिन बार-बार मेरे ज़ेहन में ये ख़्याल दौड़ रहा है कि जिस गणतंत्र, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, समाजवादी भारत की नींव 26 जनवरी 1950 को हमारे पूर्वजों द्वारा रखी गई थी वो अभी भी ज़िन्दा है. हां, चंद मुट्ठी भर लोग इसे तोड़ने की कोशिश में ज़रूर लगे हैं. वो भारत से विभिन्नता में एकता को ख़त्म कर देना चाहते हैं. वो पूरे मुल्क को एक रंग में रंग देना चाहते हैं.

    लेकिन ज़रूरत है कि हम अपने देश में विभिन्नता में एकता को बनाए रखें. बस ज़रूरत इस बात की है कि अच्छी सोच-समझ और संविधान की प्रस्तावना ‘भारत के हम लोग’ में यक़ीन रखने वाले लोग एकजूट हों. यक़ीन रखिए, जिस दिन हम अच्छी सोच-समझ के लोग एकजूट हो गए, ये देश को हिन्दुत्व के रंग में रंगने की बात करने वाले लोग टिक नहीं पाएंगे.

  • जब जामिया के एक विद्यार्थी ने गांधी जी से पूछा —“हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए विद्यार्थी क्या कर सकते हैं?”

    जब जामिया के एक विद्यार्थी ने गांधी जी से पूछा —“हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए विद्यार्थी क्या कर सकते हैं?”

    By Afroz Alam Sahil

    20 अप्रैल, 1946 को गांधी जी बालिकाश्रम गए थे. प्यारेलाल के मुताबिक़ “गांधी जी बालिकाश्रम से सीधे अपने निवास-स्थान वापस जाने वाले थे. लेकिन जामिया मिल्लिया के कुछ विद्यार्थी और शिक्षकों ने वहां आकर उनसे अपने संस्था में सुविधानुसार कभी आने का अनुरोध किया. गांधी जी ने कहा —कभी का मतलब अभी ही होना चाहिए. इतनी दूर आकर आपकी संस्था में गए बिना मैं वापस नहीं जा सकता.” जामिया मिल्लिया में गांधी जी का जो सहज स्वागत हुआ, उससे प्रभावित होकर उन्होंने कहा— बिना किसी पूर्व सूचना के आकर मैंने यहां के परिवार के सदस्य होने का अपना दावा सही साबित किया है.

    इसके बाद गांधी जी ने लोगों से प्रश्न पूछने के लिए कहा.

    एक विद्यार्थी ने पूछा —“हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए विद्यार्थी क्या कर सकते हैं?”

    गांधी का जवाब था — “रास्ता सरल है. अगर सबके सब हिन्दू भी विवेकशून्य हो जाएं और आपको भला-बुरा कहें तो भी आप उन्हें अपना भाई मानना बंद न करें और यही सलाह हिन्दुओं के लिए भी है. क्या यह असंभव है? नहीं, यह सर्वथा संभव है. और जो काम एक व्यक्ति कर सकता है वह समूह के लिए भी संभव है.

    आज सारा वातावरण दूषित है. समाचार-पत्र सभी तरह की ऊंट-पटांग अफ़वाहें फैला रहे हैं और लोग बिना सोचे-समझे उन पर विश्वास कर रहे हैं. इससे लोगों में घबराहट पैदा होती है और हिन्दू तथा मुसलमान दोनों अपनी इंसानियत भूलकर आपस में जंगली जानवर की तरह व्यवहार करने लगते हैं. दूसरा पक्ष क्या कर रहा है, क्या नहीं, इसका ख़्याल किए बिना मनुष्य सभ्य आचरण करे, इसी में उसकी शोभा है. सभ्य व्यवहार के बदले सभ्य व्यवहार करना तो सौदेबाज़ी हुई. ऐसा तो चोर-डाकू भी करते हैं. इसमें कोई ख़ूबी नहीं है. इन्सानियत लाभ और हानि का हिसाब लगाकर कुछ नहीं करती. उसका तकाज़ा तो यह है कि मनुष्य को अपनी ओर से सभ्य व्यवहार करना चाहिए.

    यदि सारे हिन्दू मेरी बात मान लें या सारे मुसलमान ही मेरी सलाह पर चलने लगें तो भारत में ऐसी शान्ति स्थापित हो जाएगी जिसे छुरा या डंडा कुछ भी भंग नहीं कर सकेगा. जब दूसरा पक्ष बदले की कोई कार्रवाई नहीं करेगा या कोई भड़काने वाला काम नहीं करेगा तब शरारती लोग बेकार की छुरेबाज़ी से जल्दी ही ऊब जाएंगे. एक अज्ञात शक्ति उसकी उठी हुई बांह पकड़ लेगी और उसकी बांह उसकी दुरेच्छा को मानने से इनकार कर देगी. आप सूर्य पर धूल फेंक कर देखें, इससे सूर्य की आभा में कमी नहीं आएगी. ज़रूरत सिर्फ़ आत्मा में श्रद्धा और धीरज बसाने की है. ईश्वर कल्याणकारी है और वह अन्याय को एक सीमा से आगे नहीं बढ़ने देता है.

    इस संस्था के निर्माण में मेरा भी हाथ रहा है. इसलिए आपसे अपने मन की बात कहकर मुझे बड़ी ख़ुशी हो रही है. हिन्दुओं से भी मैं यही कहता रहा हूं. आप भारत और विश्व के लिए ज्वलन्त उदाहरण प्रस्तुत करें, यही मेरी कामना है.”

    (लेखक जामिया के इतिहास पर शोध कर रहे हैं. पिछले दिनों इनकी ‘जामिया और गांधी’ नामक पुस्तक प्रकाशित हुई है.)

  • ‘उस रात पुलिस घूम-घूम कर मुस्लिम लड़कों को पकड़ रही थी, जबकि बजरंग दल के लोग अराजकता मचा रहे थे…’

    ‘उस रात पुलिस घूम-घूम कर मुस्लिम लड़कों को पकड़ रही थी, जबकि बजरंग दल के लोग अराजकता मचा रहे थे…’

    BeyondHeadlines News Desk

    लखनऊ: ‘30 जुलाई की शाम लगभग आठ-साढ़े आठ बजे चंदू नाम का लड़का बाइक से रुचि खंड-1 में जा रहा था. हार्न बजाने को लेकर बजरंग दल के लोगों ने उसको रोका और गाली-गलौज करते हुए पीटा. बाद में चंदू ने पूरा वाक़्या अपने भाइयों चांद बाबू, शारिक़ और आसिफ़ को बताया. दोनों पक्षों के बीच बातचीत हुई और मामला शान्त हो गया. लेकिन थोड़ी देर बाद भगवा कपड़ा पहने 20-25 लोग असलहे लहराते हुए गांव में घुसे. पथराव किया और मुस्लिम समुदाय के लोगों पर हमला बोला.’

    ये बातें लखनऊ के आशियाना थाना क्षेत्र के रुचि खंड स्थित सालेह नगर गांव के रहने वाले फुरक़ान की हैं, जो यूपी के सामाजिक व राजनीतिक संस्था रिहाई मंच के एक प्रतिनिधिमंडल से बातचीत बता रहे हैं. बता दें कि यहां पिछले दिनों हार्न बजाने को लेकर हुई कहासुनी की मामूली घटना को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की गई. इसके कारण इलाक़े में जो तनाव फैला, उस तनाव के कारण बुजुर्ग ज़ाकिर अली की हार्ट अटैक से मौत हो गई.   

    मरहूम ज़ाकिर अली की पत्नी शहनाज़ बानो ने बताया कि 30 जुलाई की रात लगभग ग्यारह-साढ़े ग्यारह बजे खाना खाने के बाद उनके बच्चे घर के बाहर टहल रहे थे तभी पुलिस के साथ बजरंग दल और भगवा रक्षा वाहिनी के लोग आ धमके. बच्चों के टहलने पर एतराज जताया और उन्हें ज़बरदस्ती थाने ले जाने की कोशिश करते हुए घर में घुस गए. मोहल्ले से सूफ़ियान, आमिर, वश्से समेत साइकिल रिपेयर का काम करने वाले चार अन्य को पकड़ लिया.

    उन्होंने प्रतिनिधिमंडल को बताया कि 31 जुलाई और 1 अगस्त की रात बजरंग दल और भगवा रक्षा वाहिनी के लोगों ने मोटर साइकिलों पर सवार होकर मोहल्ले में ‘जय श्री राम’ और ‘मुसलमानों भारत छोड़ो’ के नारे लगाए. मुस्लिम घरों के सामने जमा होकर धमकी दी कि भारत में रहना है तो हमारी सुननी पड़ेगी. इससे मोहल्ले में दहशत फैल गई. इस वजह से उनके पति को 1 अगस्त को दिल का दौरा पड़ गया और उनकी मौक़े पर ही मौत हो गई.

    मृतक के पुत्र फिरोज अली बताते हैं कि बजरंग दल और भगवा रक्षा वाहिनी के लोग अभी भी मोहल्ले में आकर नारे लगाते हैं. हम डर के माहौल में जीने को मजबूर हैं.

    वहीं बजरंग दल और भगवा रक्षा वाहिनी के लोगों का कहना है कि मुसलमानों ने देश-विरोधी नारे लगाए और उन पर फायरिंग की.

    लेकिन मोहल्ले के लोग इस आरोप को सरासर झूठ और बेबुनियाद बताते हैं. कहते हैं कि मुस्लिम समुदाय के लोगों को ज़बरदस्ती फंसाया गया है. बता दें कि यहां के हिन्दू निवासी यहां के मुसलमानों के साथ खड़े नज़र आ रहे हैं.

    लगभग 50 साल की संतोष इसी मोहल्ले की मूल निवासी हैं. कहती हैं कि आज तक यहां कभी हिन्दू-मुसलमान जैसा नहीं हुआ. मुसलमानों को बदनाम करने की नीयत से मोहल्ले के लोगों को फंसाया जा रहा है. बजरंग दल और भगवा रक्षा वाहिनी के लोग बवाल चाहते हैं. उन्हें पुलिस का कोई डर नहीं. इसलिए कि पुलिस उनके साथ खड़ी है.

    मोहल्ले के ही 20 वर्षीय अंकुर ने बताया कि मरने वाले ज़ाकिर को वो नाना कहा करते थे. भरी आंखों से घटना के बारे में बताते हुए कहते हैं कि दहशत भरा ऐसा माहौल आज तक नहीं देखा.

    25 वर्षीय न्यूज़ पेपर हॉकर आशीष द्विवेदी बताते हैं कि उस रात पुलिस घूम-घूम कर मुस्लिम लड़कों को पकड़ रही थी. जबकि बजरंग दल के लोग अराजकता मचा रहे थे.

    राज मिस्त्री का काम करने वाले गांव के ही मूल निवासी 50 वर्षीय रामकुमार ने दुखी मन से बताया कि उनके मोहल्ले में आज तक कभी हिन्दू मुसलमान जैसा कुछ नहीं हुआ. पुलिस ने पूरे गांव में दहशत मचा दी.

    प्रतिनिधि मंडल में रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब, शकील कुरैशी, परवेज़ सिद्दीक़ी, गुफरान सिद्दीक़ी, इमरान अंसारी, रॉबिन वर्मा शामिल रहे.

  • ये कैसी बदसूरत नफ़रतों को सींच रहे हो तुम?

    ये कैसी बदसूरत नफ़रतों को सींच रहे हो तुम?

    By Rujuta Shuchita Anand

    ये कैसी बदसूरत नफ़रतों को सींच रहे हो तुम

    पीढ़ी दर पीढ़ी

    क्यों भूल रहे हो

    कि जो तुम्हारा है आज

    कभी किसी और का था

    और कल किसी और का होगा

    कैसे नज़रअंदाज़ किए जा रहे हैं

    इस बात को

    कि ना तो ये जिस्म अमर है

    और ना ही ये बेहूदा क़ायदे-क़ानून

    ग़ौर फ़रमाए तो समझ आता है

    दरअसल

    ये ज़िन्दगी, ये रुतबा, 

    ये अदब, ये प्रतिष्ठा

    ये सब खैरात में मिली है तुम्हें

    उनसे

    जिनसे

    आज

    बे-इन्तहा 

    नफ़रत करते हो तुम

    जब उनकी सौ सांसे रुकी

    तब जाकि तुम्हारी एक सांस बनी थी

    जब उनका लहू ज़मीन की आगोश में सो रहा था

    तब जा के तुम्हारे ज़मीर ने सिर ऊपर उठाया था

    उनकी अनगिनत पीढ़ियों के खाली पेटों ने,

    हाथों में पड़े छालों ने

    तुम्हारे निवालों को थाली में सजाया था

    उनके साएं से मुकरते हो आज भी

    जबकि जिस सड़क पर चलते आए हो अब तक

    उन्होंने अपने पसीने से सींचा था

    तुम्हारे घरों के उजालों में

    उनकी अश्कों का ही तो तेल था

    कैसे भूल रहे हो ये सब

    अब

    जब बारी उनकी है

    तुमसे बराबरी ना करें वो,

    ये ज़िद नहीं

    तुम्हारे भीतर की

    बुज़दिली है…

    बढ़ा लो जितने भी फ़ासले

    चाहे तुम

    सच तो ये है

    कि उनकी बदौलत

    आज यूं

    इतरा रहे हो तुम…

    आगे बढ़ो

    हाथ बढ़ाओ

    जाति, धर्म, ईमान नहीं

    इंसान से नाता बनाओ

    सच तो यही है आख़िर

    मिट्टी से बने हो

    और मिट्टी में ही

    सो जाओगे तुम

    या फिर हवा में 

    कहीं खो जाओगे तुम

    या फिर मिट्टी में 

    मिल जाओगे तुम…

    उस मिट्टी से क्या

    नफ़रत के ही पेड़ 

    उगाओगे…?

    किसी पेड़ की

    छांव में

    घड़ी भर रूको अगर कभी

    तो दो पल के लिए

    इस बात पर भी ग़ौर

    फ़रमाओ तुम…

  • Hate Mongers Spreading Fake News About this Girl and This is What She has to Say

    Hate Mongers Spreading Fake News About this Girl and This is What She has to Say

    BeyondHeadlines Correspondent 

    New Delhi: Recently a photograph and video of a girl carrying a placard went viral.

    This photograph and video was taken by BeyondHeadlines and was shared by the same on its Facebook page.

    The girl had come at Jantar Mantar on 26 June to protest against the lynching and brutal killing of Tabrez.

    Now, many people have started manipulating her identity according to their own selfish agenda. These hate mongers went to the extent of sharing a fake photograph and profile of the girl claiming that she is a Muslim and her name is Sabiha Khan.

    But the truth is that her name is Swati, not Sabiha and she is a student in Delhi. BeyondHeadlines contacted her to know if she is aware of the circulation of this fake image. Disappointingly yet courageously Swati condemn all these fake news herself and she has a message for all of her fellow citizens in this country.

    Reproduced below is Swati’s reaction for BH readers.

    Yes I stood up for Tabrez and many like him whether they were Muslims, Hindus, Sikhs, Christians or anyone else. I and many like me stand for humanity for which this country is known for. I spoke against hate and I feel only Love can conquer it.

    That night when we protested against the mob lynching of Tabrez, I went like any other disappointed citizen tired of explaining both my Hindu and Muslim friends that these crimes are there to divide us and the day we stop getting divided at any cost, the crimes will stop. I have been standing against all the atrocities that happen in our country in the name of religion or caste like that of Pehlu Khan, Akhlaq, Ankit Saxena, Najeeb, Dr. Payal Tadvi, etc. I have been part of many protests.

    I feel that I carry a responsibility as an Indian and also a part of Hindu family to defend my own Hindu community that we do not wish to harm any life. I wish to give this message to our Muslim community that THEY ARE US.

    Many people online did what-aboutery in this case but I wish they understood that people like me are not selective, its the politicians who sometimes are selective because they desire votes, not people like us. I feel bad as well because some of my own college mates harassed me online for propagating our constitutional duty as citizens of India.

    A-51A of the Indian Constitution says that it is our Fundamental duty to abide by the Constitution and respect its ideals, to promote harmony and the spirit of common brotherhood amongst religious, linguistic and regional or sectional diversities.

    I just did my fundamental duty as a law abiding citizen of India and I hope our parliamentarians and their supporters understand that respecting and abiding by the constitution is the biggest national duty one can do as a civilian. I hope we all stay strong and together no matter what happens. This country stands on love and it will stand tall forever.

    India has a VIBGYOR colour, no colour can dominate the other. We are a country with colourful problems and colourful solutions. Therefore, I reject to be the colourblind citizen of India.

    Thank you.

    Your fellow citizen of India.

  • श्री राम के नाम पर देश में हो रही मॉब लिंचिंग व नफ़रत के ख़िलाफ़ इस नौजवान ने शुरू की मुहिम…

    श्री राम के नाम पर देश में हो रही मॉब लिंचिंग व नफ़रत के ख़िलाफ़ इस नौजवान ने शुरू की मुहिम…

    BeyondHeadlines Correspondent  

    नई दिल्ली: जहां एक तरफ़ देश में एक ख़ास विचारधारा के लोग लगातार नफ़रत फैलाने में लगे हुए हैं, वहीं एक नौजवान लगातार इस नफ़रत के ख़िलाफ़ अपनी एक ख़ास मुहिम #India4All में लगा हुआ है. इस दिलेर व हौसलेमंद नौजवान का नाम है —राहुल कपूर.

    राहुल कपूर एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जो लगातार गरीबों, हाशिए पर खड़े लोगों व दलितों के लिए काम करते रहे. इन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से सामाजिक कार्य में मास्टर्स किया है और गोल्ड मेडलिस्ट रहे हैं. वर्तमान में जामिया मिलिया इस्लामिया में रिसर्च स्कॉलर हैं.

    BeyondHeadlines से ख़ास बातचीत में वो बताते हैं कि मेरा धर्म मुझे दूसरे धर्म के लोगों के ख़िलाफ़ हिंसा करना नहीं सिखाता है. श्री राम के नाम पर दूसरे धर्म के लोगों पर अत्याचार करना और उन्हें मारना ग़लत है. मॉब लिंचिंग के ख़िलाफ़ सख्त से सख्त क़ानून बनना चाहिए.

    वो आगे कहते हैं कि मैं एक ऐसे भारत को देखना चाहता हूं, जहां कम से कम श्री राम के नाम पर तो लोगों को न मारा जाए. और जहां भी लोग ऐसा करें, वहां हमारे हिन्दू भाई खड़े हों कि हम मर्यादा पुरषोत्तम राम और अपने धर्म के नाम पर किसी को मारने नहीं देंगे.

    राहुल कपूर बताते हैं कि वो विभिन्न संगठनों के साथ मिलकर नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर मॉब लिंचिंग के ख़िलाफ़ एक सख्त क़ानून की मांग को लेकर शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन करेंगे. 

    एक लंबी बातचीत में वो बताते हैं कि मेरी मुहिम की शुरूआत 26 जून से हो गई, जब मैं तबरेज़ अंसारी के इंसाफ़ के ख़ातिर एवं देश में बढ़ रही मॉब लिंचिंग के ख़िलाफ़ हो रहे धरना-प्रदर्शन व कैंडल मार्च के लिए जंतर-मंतर गया था. 

    वो आगे कहते हैं, जंतर मंतर के लिए मैं घर से अकेले ही निकला था पर जब वहां पहुंचा तो मुझे स्वाति नाम की एक छात्रा मिलीं जो यह संदेश दे रही थी कि “मैं एक हिन्दू हूं और सभी मुसलमान मेरे भाई बहन हैं.” 

    वो कहते हैं, पिछले दो दिनों में हम दोनों का यह संदेश लाखों लोगों तक पहुंचा है और यह यही दर्शाता है कि अब श्री राम भी यही चाहते हैं कि सारी दुनिया को पता चले कि उनका नाम लेकर की गईं हत्याएं भी हत्याएं ही हैं और ऐसा करने वाले लोगों को कड़ी से कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए. हालांकि वो ये भी बताते हैं कि 

    उन्होंने अपनी मुहिम #India4All सोशल मीडिया पर शुरू करने का ऐलान कर दिया है. साथ ही अपने सभी हिन्दू भाई-बहनों से भी निवेदन किया है कि आप भी अपनी तस्वीर अपने नाम और मॉब लिंचिंग के ख़िलाफ़ एक संदेश के साथ अपने फेसबुक पर अपलोड करें और चाहें तो मुझे भी भेजें. 

    राहुल कपूर कहते हैं कि श्री राम का ही नाम लेके अब हमें तबरेज़ और मॉब लिंचिंग में मारे गए बाक़ी सभी लोगों के लिए आवाज़ उठानी है और मॉब लिंचिंग के ख़िलाफ़ सख्त क़ानून बनवाना है. 

    राहुल का आख़िरी संदेश सारे रेडिकल सोच रखने वाले लोगों के लिए है, जो हिन्दू मुसलमान भाईचारा नहीं चाहते और जिन्होंने उन्हें पिछले दो दिन में बहुत सी गालियां दी हैं. 

    वो कहते हैं, ज़रा एक बार सोचिए कि आपकी सोच में तो सिर्फ़ तोड़ना और नफ़रत है तब आपको अपनी सोच पर इतना गर्व है और आप उसे छोड़ना नहीं चाहते बल्कि मुझ पर थोपना चाहते हैं लेकिन मेरी सोच में तो सिर्फ़ जोड़ना और प्यार है तो मुझे अपनी सोच पर कितना गर्व होगा. आप ग़लत होकर भी अपने आप को बदलना नहीं चाहते तो मैं सही होकर अपने आप को क्यों बदलूं? आप असत्य और हिंसा के मार्ग से हटना नहीं चाहते तो मैं सत्य और अहिंसा के अपने मार्ग से क्यों हटूँ? मेरे साथ तो ऊपर वाला है चाहे फिर आप उसे जिस नाम से भी बुलाते हों वही मुझे निडर होकर अपने सही रास्ते पर चलने की हिम्मत देता है… जय हिंद जय भारत…

    बता दें कि इससे पहले BeyondHeadlines ने भी देश में बढ़ रही नफ़रत के ख़िलाफ़ लोगों से अपील की थी कि कुछ अच्छे व सामाजिक लोग आगे आएं. गांव में, क़स्बों में बाहरी लोगों की आमद व रफ़्त पर पूरी नज़र रखें. कुछ भी ग़लत हो रहा हो या अलग हो रहा हो तो उसकी सूचना तुरंत ज़िला से लेकर राज्य व केन्द्र तक पहुंचाएं. याद रखें कि हिंसा का जवाब हिंसा कभी नहीं हो सकता. जब 10 बुरे लोग मिलकर बुरा काम कर सकते हैं तो 10 अच्छे लोग मिलकर अच्छा काम क्यों नहीं कर सकते. वैसे भी हमारा मानना है कि हमारे देश में अच्छे लोगों की तादाद ज़्यादा है.

    इसी के मद्देनज़र आपका BeyondHeadlines पिछले कई महीनों से #2Gether4India नामक एक अभियान चला रहा है. इस अभियान में अब तक 100 से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया है, लेकिन अब एक बार फिर से इस अभियान को आगे ले जाने की ज़रूरत है. 

    आप भी तमाम निगेटिव बातों को भूलकर याद कीजिए कि आपके दूसरे धर्मों से संबंध रखने वाले जो साथी हैं, उनमें कोई तो अच्छाई होगी. आपकी ज़िन्दगी में कभी तो वो किसी काम आया होगा. बस आप उन्हीं मीठी अच्छी यादों को याद करते हुए अपना एक वीडियो हमें बनाकर भेज दीजिए. वीडियो के अंत में अपना प्यारा सा संदेश देना मत भूलिएगा. आप अपना वीडियो बनाकर editor@beyondheadlines.in पर मेल कर सकते हैं…

  • निज़ामाबाद में शादी में जा रहे युवकों पर सामूहिक हमला, लेकिन हिन्दू-मुस्लिम एकजुटता ने किया अराजक तत्वों के मंसूबों को नाकाम

    निज़ामाबाद में शादी में जा रहे युवकों पर सामूहिक हमला, लेकिन हिन्दू-मुस्लिम एकजुटता ने किया अराजक तत्वों के मंसूबों को नाकाम

    BeyondHeadlines News Desk

    आज़मगढ़ : क़स्बा निज़ामाबाद बाईपास मोड़ पर अयोध्या सिंह हरिऔध की प्रतिमा के पास 25 जून की शाम क़रीब साढ़े सात बजे अराजक तत्वों ने साम्प्रदायिक आधार पर शाबान अहमद पुत्र मेराज अहमद (17), सलीम अहमद पुत्र सेराज अहमद (23), इज़हार अहमद पुत्र अशफाक़ अहमद (37) और एहरार अहमद पुत्र सरफराज़ (42) पर ईंट, लाठी, डंडों से अचानक हमला कर बुरी तरह घायल कर दिया.

    हमले में बुरी तरह घायल शाबान के पिता मेराज अहमद ने बताया कि पास के गांव डोड़ोपुर में उनके चचा शमशाद खान के नाती मो. सऊद की 26 जून को बारात जाने वाली थी. उनके गांव में परंपरा रही है कि मुस्लिम समुदाय में लड़कों की बारात से एक दिन पहले हिन्दू पड़ोसियों व मित्रों की दावत होती है और बारात के बाद दूसरे दिन गांव वालों व मुस्लिम रिश्तेदारों की दावत की जाती है. उसी परंपरा का निर्वाह करते हुए उनके चचा शमशाद खान ने दावत की थी जिसमें शामिल होने और व्यवस्था देखने के शाबान, सलीम और इज़हार पैदल डोड़ोपुर जा रहे थे. 

    वो आगे बताते हैं, घर से क़रीब दो सौ मीटर बाईपास मोड़ पर 8–10 की संख्या में युवकों ने उन्हें कटुआ और साम्प्रदाय सूचक गाली देना शुरू कर दिया, सभी नशे में थे. जब इन लोगों ने कोई जवाब नहीं दिया तो गंदी गालियां देते हुए उनका रास्ता रोक दिया. आपत्ति करने पर ईंट, लाठी और डंडों से तीनों को पीटना शुरू कर दिया. 

    ख़बर सुनकर मेराज के खानदानी चचा एहरार अहमद जब वहां पहुंचे तो वह लोग उन पर भी टूट पड़े. दूसरी तरफ़ से स्वयं मेराज अहमद भी मौक़े पर पहुंचे और कुछ स्थानीय लोगों के साथ मिलकर किसी अनहोनी को टालते हुए घायलों को बचाया. उसमें स्थानीय सभासद कान्ता सोनकर के पुत्र ने अपने सजातीय हमलावरों से घायलों को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इस प्रयास में उनको हल्की चोटें भी आईं.

    मेराज अहमद बताते हैं कि वह और महिलाओं समेत परिवार के अन्य लोग शादी में पहले ही जा चुके थे. डोड़ापुर पास में ही है, जब उन्हें सूचना मिली तो भागते हुए घटनास्थल पर पहुंचे और देखा कि कुछ लोग ज़मीन पर गिर चुके घायलों (उनका भांजा सलीम अहमद, भाई इज़हार अहमद और एहरार अहमद) की पिटाई कर रहे थे और कुछ अन्य जान बचाकर भाग रहे खून से लतपथ उनके बेटे शाबान का पीछा कर रहे थे. 

    उन्होंने बताया कि भांजा सलीम जलालपुर, अम्बेडकर नगर से शादी में शामिल होने आया था. वह सदर अस्पताल में भर्ती है और उसका सीटी स्कैन किया गया है. सर में गंभीर चोट है और पूरे शरीर पर चोट के निशान हैं. 

    एहरार ने बताया कि हमलावर मारते हुए लगातार गाली दे रहे थे. जान मारने की बात कह रहे थे.

    मेराज ने बताया कि आरोपियों में से कुछ के ख़िलाफ़ छेड़खानी और अन्य मामलों में पहले से ही कई मामले दर्ज हैं. अराजक तत्वों ने घटना साम्प्रदायिक बनाने का प्रयास किया, लेकिन घटना के बाद उनके पास-पड़ोस और क़स्बे में हिंदू समुदाय के लोगों ने उनके घर पहुंच अपनी संवेदना व्यक्त की. इस एकजुटता ने आरोपियों के मंसूबों पर पानी फेर दिया. पीड़ित परिवार ने चार आरोपियों के ख़िलाफ़ नामज़द और कुछ अज्ञात के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करवाई. 

    बता दें कि पुलिस ने अब तक चार गिरफ्तारियां की हैं. परिवार और पास–पड़ोस के दोनों समुदायों के लोगों की मांग है कि यथाशीघ्र आरोपियों को गिरफ्तार कर उनके ख़िलाफ़ सख्त कार्यवाही की जाए.

    उत्तर प्रदेश की सामाजिक व राजनीतिक संगठन रिहाई मंच के तीन सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने आज दौरा कर इन पीड़ितों से मुलाक़ात की. इस प्रतिनिधिमंडल में मसीहुद्दीन संजरी, विनोद यादव और अवधेश यादव शामिल थे.

  • “Haji Baba”: A Symbol of Communal Harmony

    “Haji Baba”: A Symbol of Communal Harmony

    Zeeshan Husain for BeyondHeadlines

    As I sit on a partly broken dusty slab put on the side of a dirt road, a flycatcher garbs my attention. It is nose-diving for dinner perhaps. The overhead wire and the electric pole remain standstill. The sun has slowly gone down as if drowning in the green-brown fields of wheat. A gust of cool breeze makes its presence felt when it flutters the loose half sleeves of my shirt. A chimney is billowing black smoke at a distance on the right-hand side. There is a brick kiln perhaps. On my left, several men cross past riding their bicycles at a pace as if a boat is gliding on a motionless sea.

    The gentle breeze over the wheat harvest tries to make an appealing motley of green and golden colours. Summer is knocking at the door. Flies and dust are circumambulating each other, everywhere. Everything is so idle as if even clocks don’t tick here. Suddenly Ajay, my friend, raises his index finger- “someone is coming”. A lady in a red saree, head partly covered, is slowly walking towards ‘Haji Baba’, along with a girl and a young boy. We immediately dash off towards Haji Baba, leaving indolence aside.

    ‘Haji Baba’ is one of the many small, unknown, perhaps even unmanned shrines which are dotted all over India. I am in a village in the poorvanchal area of Uttar Pradesh. Globally known for Hindu rituals and temples the world over, villages of poorvanchal have more beautiful and richer stories to tell than what is globally believed. Haji Baba, as it is popularly called here, is a very small shrine. It took us a while even to locate the extremely inconspicuous structure, just a hundred metres away from the village’s tar road whose sides have deteriorating asphalt.

    In the farm of a Brahmin family, Haji Baba has been resting peacefully under a big tree for ages. Its foliage acting as a canopy for the mud-plastered grave. It is on a small mound, and the grave is covered by a green chadar with incantations in Arabic and prints of crescent moon and stars. People are not bothered too much about what is written there. Neither does anyone know when it was built? It has been for the villagers since time immemorial. What is the jurisdiction of Haji Baba’s blessing? ‘World’, comes the answer after much rumination. Haji Baba is spaceless, timeless, but never evokes awe in the villagers. For them, the shrine is like any other village structure. Apart from the big tree, no one cares about the shrine as such. Thursday evenings are unusual. Two or three families come here. During my visit, I saw a family and talked about their beliefs.

    Rina is an 18 yr old girl and visiting the shrine with her sister-in-law. Rina is in a salwar suit while her bhabhi is wearing a red sari. Face covered, she maintains a coy body language: a sign of a newly married woman who has just joined her in-laws place. I follow them from the tar road to the dirt one. A strip of land which separates two different farms leads to the shrine. One has to take their slippers off before stepping into the field border- a narrow patch of land around a foot in breadth. The path is full of grass and broken at more than one place. One has to balance oneself, and I felt I was walking on a tight rope. On the left is the green wheat crop which flowing to the tunes of evening breeze.  Mustard stubble is on the right and lies unmoved. In-between, some wild shrubs welcome new visitors by tickling their feet and calf.

    Rina and her bhabhi manage well all such insignificant barriers for praying before Haji Baba. From the pink colour plastic bag, comes out two small packets of agarbattis and kachcha halwa. From respective packets, bundles of agarbattis are lit with matchsticks. One matchstick is sufficient to burn two bundles of incense sticks. In no time, a rich aroma fills the atmosphere. Both the bundles are carefully inserted on the mud floor of the shrine towards the side of the head of the grave. They bow their heads down in front of the agarbattis placed in a row. Time stops again. Except for the wisps of smoke from the incense sticks, nothing moves. All become fixed like a statue. A moment of spiritual peace descends on the small inconspicuous dusty grassy place. Flycatcher flits again.

    I feel my heart’s pounding, and the rustle of the dry leaves fallen from the canopy protecting the baba for ages. Unlike the tree, leaves are not eternal. They die and fall. My foot moves a little, leaves rustle and I, again, become motionless. Three heads rise together; a peculiar synchrony is felt. The little kid is asked to offer a piece of halwa to Baba. He places it on the mud floor. Rest will be distributed among others. Bhabhi, being courteous, asks the kid to offer me “Prasad” (tabarruk). I relish a small bite.

    “Aap log kyu aaye hai yahaan?” (why have you people come here?), I ask.

    Aastha hai,” (I have faith) Rina replies.

    Aur yeh aastha kyu hai? (why do you have this faith?)

    Jo maango milta hai,” (We get whatever we wish for), Raveena replies.

    I ask, “Aapne kabhi kuchh maanga hai?” (have you ever wished for something?)

    Raveena answers, “Haan, achchhe number se paas hona.” (yes, that I get passed with good marks)

    I ask, “Aur?” (And…?)

    She replies, “Meri jaan bhi ek baar bachi thi.” (my life was saved once)

    Raveena is smart enough to answer me in Hindi, after knowing my limited understanding of Bhojpuri. We have worn our sleepers again. Just few steps are left before our paths would diverge. I ask what I wanted to know most clearly. Aap log Hindu hai, aur Haji Baba Musalman. Fir bhi aap log aate hai? (You people are Hindus and Haji Baba is a Muslim. Still, you visit this place?)

    Bhabhi replies, breaking her silence, “Arey matha tekne se kya hota hai? Bhagwan to ek hi hai. Dil se maango to…”(what happens in bowing the head? There is only one Lord. If one asks by pure heart then…)

    Sun has set and it is slightly dark. Sky has turned from orange-red to black. The trio has left me and has moved quite ahead. My friend kept waiting for me all along. The flycatcher did not. I start walking towards the home, thoughtlessness takes over rambling. When I got back my senses, I realised why the silence was broken from behind the veil. In present troubled times, ‘great traditions’ has been overshadowed by animosity but ‘little traditions’ of communal harmony is still strong, to borrow concepts from the two anthropologists working on India, Milton Singer and McKim Marriot. Humanity is all about dil, pure heart. Haji Baba gave me this lesson, and I am happy to appreciate it now.

    (Zeeshan Husain is a student of Uttar Pradesh society and politics.)

  • ये पोस्ट उन लोगों व दोस्तों के लिए जिन्हें हमारे देश के पीएम मोदी पसंद नहीं हैं…

    ये पोस्ट उन लोगों व दोस्तों के लिए जिन्हें हमारे देश के पीएम मोदी पसंद नहीं हैं…

    BeyondHeadlines Editorial Desk

    ये पोस्ट ख़ास तौर पर उन लोगों व दोस्तों के लिए जिन्हें हमारे देश के पीएम मोदी पसंद नहीं हैं… जो चिढ़ते हैं उनसे… जिन्हें लगता है कि उनकी पार्टी व विचारधारा के लोग इस देश को तोड़ रहे हैं और ऐसे लोगों के चलते देश का संविधान ख़तरे में है…

    हो सकता है कि आपकी बात में सच्चाई हो. हम आपको ख़ारिज नहीं करना चाहते. ये भी हो सकता है कि आप ये बात अपने आस-पास के माहौल या खुद के तजुर्बे की बुनियाद पर कह रहे हों. ये बात भी सच है कि ‘धर्म’ के नाम पर देश के गांव-क़स्बों में कुछ असामाजिक तत्वों की सक्रियता बढ़ी है. ये लोग कभी धर्म के नाम पर, कभी गाय के नाम पर, कभी खान-पान के नाम पर निर्दोष लोगों के साथ जमकर अत्याचार करते हैं. लेकिन ये बात भी सौ आने सच है कि पीएम मोदी पूरे पांच साल इस देश के प्रधानमंत्री रहने वाले हैं. आप अपने ख्वाबों में उनसे चिढ़ते रहिए, उनके नाम के पर्चे फाड़ते रहिए पर आपके इस चिढ़ने, कहने-लिखने या विरोध करने से यहां का निज़ाम क़तई बदलने वाला नहीं है… पर मतलब ये भी नहीं है कि आप सरकार की ग़लत नीतियों के ख़िलाफ़ बोलना-लिखना या विरोध करना ही छोड़ दें… ये आपका लोकतांत्रिक अधिकार है और आपको खुद को क़ानून के दायरे में रहकर वो हर ज़िम्मेदारी निभानी चाहिए जो लोकतंत्र की मज़बूती व उसके बचाव के लिए ज़रूरी हो… 

    याद रहे जिस तरह से हम लोग साम्प्रदायिकता को स्वाभाविक तौर पर स्वीकार करने लगे हैं, ये हम सबके लिए बेहद ही ख़तरनाक है. धर्म-निरपेक्षता में कमियां हो सकती हैं, मगर आप ही बताईए कि साम्प्रदायिकता में क्या कोई एक भी ख़ूबी हो सकती है? इसलिए सतर्क हो जाईए. कहीं ऐसा न हो कि आप साम्प्रदायिकता को सही ठहराते-ठहराते एक दिन जानवर न बन जाएं…

    इन हालात में ये भी ज़रूरी हो जाता है कि कुछ अच्छे व सामाजिक लोग आगे आएं. गांव में, क़स्बों में बाहरी लोगों की आमद व रफ़्त पर पूरी नज़र रखें… कुछ भी ग़लत हो रहा हो या अलग हो रहा हो तो उसकी सूचना तुरंत ज़िला से लेकर राज्य व केन्द्र तक पहुंचाएं… 

    और हाँ! याद रखें कि हिंसा का जवाब हिंसा कभी नहीं हो सकता… जब 10 बुरे लोग मिलकर बुरा काम कर सकते हैं तो 10 अच्छे लोग मिलकर अच्छा काम क्यों नहीं कर सकते… वैसे भी मेरा मानना है कि हमारे देश में अच्छे लोगों की तादाद ज़्यादा है… 

    इसी के मद्देनज़र आपका BeyondHeadlines पिछले कई महीनों से #2Gether4India नामक एक अभियान चला रहा है. इस अभियान में अब तक 100 से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया है, लेकिन अब एक बार फिर से इस अभियान को आगे ले जाने की ज़रूरत है… आप भी तमाम निगेटिव बातों को भूलकर याद कीजिए कि आपके दूसरे धर्मों से संबंध रखने वाले जो साथी हैं, उनमें कोई तो अच्छाई होगी. आपकी ज़िन्दगी में कभी तो वो किसी काम आया होगा. बस आप उन्हीं मीठी अच्छी यादों को याद करते हुए अपना एक वीडियो हमें बनाकर भेज दीजिए. वीडियो के अंत में अपना प्यारा सा संदेश देना मत भूलिएगा… आप अपना वीडियो बनाकर editor@beyondheadlines.in पर मेल कर सकते हैं…