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आपके मुंह पर “हैरीसन” का मज़बूत ताला क्यों?

Abhishek Upadhyay

तीस्ता सीतलवाड़ पर अजीब चुप्पी छाई हुई है. उन पर अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसायटी दंगे में अपने परिवार के तीन सदस्यों को खोने वाले फिरोज़ सईद ख़ान पठान ने धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज कराई है. फिरोज़ खुद गुजरात दंगों के पीड़ित हैं. तीस्ता पर भरोसा तोड़ने, धोखाधड़ी व आपराधिक षडयंत्र के आरोप लगे हैं.

फिरोज़ का आरोप है कि तीस्ता ने गुलबर्ग सोसायटी में म्यूज़ियम बनाने और दंगा पीड़ितों की मदद के नाम पर विदेशों से करोड़ों का चंदा उठाया और उसे साल 2007 से 2011 के बीच निजी कामों में खर्च कर लिया. ये ठीक है कि इस आरोप से तीस्ता सीतलवाड़ के कामों को खारिज नहीं किया जा सकता. मैं भी मानता हूं कि गुजरात दंगा पीड़ितों के मामलों को उठाने में तीस्ता ने बेहद अहम रोल निभाया है. पर इसका मतलब ये तो नहीं हुआ कि वे इस नाते हर तरह की “स्क्रूटनी” से मुक्त हो जाती हैं.

देश भर में फैला पूरा का पूरा एक कुनबा है, तथाकथित सेक्युलर ब्रिगेड और तथाकथित वामपंथियों का जो इस मामले पर अपने मुंह पर “हैरीसन” का मज़बूत ताला लगाकर सो गया है. गोया फिरोज़ सईद ख़ान पठान ने एक सेक्युलर शख्स पर आरोप लगाकर “कुफ्र” कर दिया हो. गोया सेक्युलर लोग सिर्फ इसलिए ही हर तरह के आरोपों से बरी हो जाते हैं, कि वे सेक्युलर होते हैं. उनसे कोई गलती हो ही नहीं सकती. उन पर कोई आरोप लग ही नहीं सकता है.

अगर लगा दिया तो सुप्रीम कोर्ट की तरह अदालत की अवमानना का केस चला दिया जाएगा. अधिक देर नहीं है जब ये तथाकथित सेक्युलर और वामपंथी ब्रिगेड फिरोज़ सईद ख़ान को नरेंद्र मोदी का आदमी घोषित कर देगी. तीस्ता पर दंगा पीड़ितों और उनके मददगार खेमे की ओर से आया ये कोई पहला आरोप नहीं है. इससे पहले तीस्ता के ही सहयोगी रहे रईस ख़ान पठान भी उन पर खासे गंभीर आरोप लगा चुके हैं.

मैंने रईस और तीस्ता दोनो को साथ-साथ काम करते देखा है. उन इलाकों में काम करते देखा है, जो दंगों से सबसे अधिक प्रभावित रहे हैं. अगर सिर्फ इसलिए रईस खान के आरोपों पर आंख मूंद ली जाए कि उन्होंने एक सेक्युलर शख्सियत पर आरोप लगाने की जुर्रत की, तो फिर तो तीस्ता की सफाई पर भी आंखे मूंदनी पड़ेंगी, क्योंकि तीस्ता के लिए ग्राउंड पर काम करने वाले तो रईस पठान ही थे.

इस कथित सेक्युलर, वाम ब्रिगेड की सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि ये अपने कथित सरोकारों को लेकर कयामत की हद तक “सेलेक्टिव” होते हैं. आप आसाराम, नारायण साई पर बगैर किसी एफआईआर के बलात्कार के आरोप की खबर चला दें, इनकी आत्मा रसियन वोदका में डुबकी लगाकर गहरी नींद में सो रही होगी. उन्हें आप जमकर बलात्कारी बोलिए, इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

आप जस्टिस गांगुली के मामले में एफआईआर छोड़िए, सिर्फ एक निजी ब्लॉग में एक इंटर्न की दास्तां लिख दिए जाने के आधार पर, खबर चला दें, ये क्यूबा के फिदेल कास्त्रो से लेकर नार्थ कोरिया के किम संग द्वितीय की प्रशस्ति के गीत गाते रहेंगे. आप तरूण तेजपाल को एफआईआर होने से बहुत बहुत पहले ही एक महिला पत्रकार के आरोप के आधार पर अय्याशी का शहंशाह घोषित कर दें, ये सात्र और सिमोन का हवाला देकर नारीवाद का जयघोष करते रहेंगे.

मगर खुदा न खास्ता आपने किसी वामपंथी पर बलात्कार के आरोपों की खबर चला दी, जबकि उस मामले में एफआईआर हो चुकी हो/ जबकि उस मामले में खुद आरोपी के एनजीओ की ओर से शुरू हुई जांच हो/ जबकि महिला आयोग का निर्देश हो/ जबकि पीड़िता का बयान हो/ जबकि पीड़िता के हक में खुद वामपंथी नारीवादी कार्यकर्ताओं का हस्तक्षेप हो और क्या क्या न हो… तो इनके मुताबिक उस दिन वामपंथ का सदियों पुराना किला ध्वस्त हो जाएगा.

मानवाधिकार की उस दिन सरे राह हत्या हो जाएगी. सेक्युलरिज्म को उस दिन बधिया बनाकर छोड़ दिया जाएगा. पीड़ित लड़की समेत उसके हक़ में आवाज़ उठाने वाले सारे के सारे “कम्युनल” होंगे. साम्यवाद के दुश्मन होंगे. और तो और दिल्ली मे बैठे बैठे मास्को, हवाना और बीजिंग की ज़मीन से इस कम्युनल ब्रिगेड पर सीधी कार्यवाही का टेंडर उठा दिया जाएगा. मेरे कई अज़ीज़ दोस्त हैं, जो वामपंथ को जीते हैं. उनका वामपंथ उन्हें खुले दिमाग से अपने सिद्धातों के लिए जीने को प्रेरित करता है, और वे जीते भी हैं. वे अक्सर कहते हैं कि वामपंथ का सबसे बड़ा नुक़सान अगर किसी ने किया है तो वामपंथ की दुकान खोले इन्हीं वामपंथियों ने किया है… बार-बार लगता है… ठीक ही तो कहते हैं वो…

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