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हूजूर, असली नाम कब सामने लाओगे?

By Abhishek Upadhyay

दो कौड़ी की कहानी बनाई है मुंबई पुलिस ने. इंद्राणी मुखर्जी को ज़बरदस्ती बलि का बकरा बनाने पर तुली हुई है. या यूं कह लें कि बुरी तरह आमादा है. नतीजा “फिक्स” कर लिया गया है. पहले से ही…

पुलिस कमिश्नर मारिया साहब खुद खार पुलिस स्टेशन पर डटे हुए हैं. मुझे याद नही पड़ता कि इससे पहले किसी पुलिस कमिश्नर को थाने में जाकर इंटरोगेशन करते कब देखा गया? घंटों पूछताछ कर रहे हैं साहब. पता नहीं बीच में कोल्ड ड्रिंक्स या कुछ स्नैक्स वगैरह लेते होंगे या वो भी नहीं.

पता नहीं किन भारी भरकम नामों की बचाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है? अब सवाल है ये? लोकतंत्र में सवाल तो किया ही जा सकता है.

पहली नज़र में ही 24 कैरेट का बोगस केस है ये. सिर्फ और सिर्फ “कनफेशन” यानि कबूलनामे पर टिकाया गया. इंद्राणी ने यह क़बूल लिया. उसके पूर्व पति संजीव खन्ना ने वो क़बूल लिया. ड्राइवर श्याम राय तो क़बूल करने के लिए ही पैदा हुआ था. उसके बाप ने उसका नाम क़ुबूल राय क्यों नहीं रखा, इसी बात पर हैरान हूं मैं.

साढ़े तीन साल बाद क्राइम सीन ENACT कराया जा रहा है. शीना वोरा के कंकाल के जितने हिस्से मिले थे, उनसे डीएनए और जेंडर दोनों ही टेस्ट मुमकिन नहीं थे. अब रातों-रात कंकाल का बड़ा हिस्सा बरामद हो गया है. मानो किसी ज्योतिषी ने मुंबई पुलिस की कुंडली बांच कर बता दिया हो.

पीटर मुखर्जी न हुए सरकारी दामाद हुए. राजा हरिश्चंद की औलाद हुए. कभी वे शीना को अपनी बीबी की बहन मान लेते हैं. कभी बेटी. कभी बीबी इंद्राणी पर इस क़दर यकीन करते हैं कि बेटे राहुल मुखर्जी का कहा मानने से इंकार कर देते हैं. कभी बीबी पर इस क़दर अविश्वास हो जाता है कि उसे थाने में देखने तक नहीं जाते. एक सबूत नही है पुलिस के पास इस बात का कि इंद्राणी ने शीना को मारा.

गोया आप क़बूलनामे को सबूत मानने की गुस्ताखी न कीजिएगा. हमारे देश की पुलिस इतनी हुनरमंद है कि बिल क्लिंटन की पत्नी हिलेरी क्लिंटन का नाम भी किसी आरोपी के कुबूलनामे में डलवा सकती है. उनका गाजियाबाद के रीजनल पासपोर्ट आफिस से तैयार अमेरिकी पासपोर्ट भी बरामद करवा सकती है.

महाराष्ट्र के नासिक के पास ही पड़ता है मालेगांव. 2006 में बम धमाके हुए थे वहां. 37 लोग मरे थे. 125 घायल हुए थे. इसी तरह का इंवेस्टीगेशन शुरू हुआ था. कुबूलनामा दर कुबूलनामा… अख़बारों और चैनलों की हेडलाइंस भी इसी तरह थीं. 8 सितंबर को धमाके हुए. 10 सितंबर को ही चैनलों पर पुलिस के हवाले से चलना शुरू हो गया. साइकिल बरामद… साइकिल का मालिक भी बरामद… इसी साइकिल पर बम प्लांट किए गए… धड़ाधड़ कुबूलनामे गिरने शुरू हुए… अक्टूबर आते आते अख़बारों के पन्नों पर सारी तस्वीर साफ थी. सिमी कार्यकर्ता… नूरूल होदा… महाराष्ट्र एटीएस शताब्दी ट्रेन की रफ्तार से आगे बढ़ रही थी. अगला नाम शब्बीर बैटरीवाला. ये तो गजब आदमी निकला. साला, लश्कर-ए-तैयबा का खूंखार आपरेटिव… पाकिस्तान से रिश्ते… मकोका… ये… वो… केस साल्व… सब साले गिरफ्तार…

बाद में मालूम हुआ कि इनमें से एक भी आरोपी केस में शामिल नहीं थे. पूरे पांच साल बाद 2011 में जाकर सब बाहर आए. ये तो सिर्फ एक एक्जांपिल है.

कोर्ट दर कोर्ट कंफेशन की दुरभि संधि में सजाकर परोसे गए मामलों की भरमार है. ये एक हाइप्रोफाइल केस है. तो हम इतनी चर्चा भी कर रहे हैं. वरना तो कोई झांकने भी नहीं जाता.

दरअसल कंफेशन पुलिस का एक गेम है. बेहद ही ख़तरनाक और खूंरेजी गेम. यहां जितने भी पुलिस की थ्योरी पर धर्म की मानिंद यकीन करने वाले लोग हैं, इन सभी को महज़ 2 घंटे के लिए अगर पुलिस कस्टडी में भेज दिया, ये सब के सब तोते की तरह क़बूल लेंगे कि इंद्राणी मुखर्जी ने जब शीना का गला दबाया तो उस वक्त शीना के पैर हमने ही दबोच रखे थे, ताकि वो हिल डुल न सके. ग़लती हो गई साहब. रुपए का लालच था. उसी में आ गए.

माना कि इंद्राणी मुखर्जी एक ग्लैमरस महिला है. उसकी अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं. वो तीन शादी करे. पांच करे. या 15 कर ले… न मैं इसे सही ठहरा रहा हूं. और न ही गलत. उसका जाति मामला है ये. अधिकतर वही हाय-तौबा कर रहे हैं जो इसलिए ईमानदार हैं कि कभी बेईमानी का मौका नहीं मिला. और खुदा न खास्ता कभी मिल भी गया तो समाज में इज्ज़त जाने के डर ने ईमानदार रहने पर मजबूर कर दिया.

एक स्वनाम धन्य बड़े पत्रकार जिन्हें इंद्राणी मुखर्जी ने ठोकर मार कर INX मीडिया से बाहर फेंक दिया था. एक नई थ्योरी लेकर आ गए. बड़े पत्रकार साहब का खुलासा. शीना इंद्राणी के सौतेले बाप की पैदाइश है. उपेंद्र बोरा… इंद्राणी का सौतेला बाप है. कुछ ही देर में उनकी इस थ्योरी की धज्जियां उड़ गईं. 24 कैरेट का एक और झूठ…

सगे पिता को सौतेला पिता बताया गया. उसे अपनी ही बेटी का रेपिस्ट करार दिया गया. उफ ! ये वही पत्रकार साहब हैं, जिनकी रंगीनियों के किस्से पूरे मीडिया जगत में मशहूर हैं. जिसने भी इनके पुराने अख़बार में काम किया हो, उससे पूछ लीजिए. अब ये भी उतर आए इंद्राणी के चरित्र का सर्टिफिकेट देने के लिए…

पुलिस कमिश्नर साहब, ये सभी जानते हैं कि असली खेल तो पैसों का है. INX MEDIA की पचास फीसदी की हिस्सेदारी… पीटर और इंद्राणी मुखर्जी के नाम. 700 से 750 करोड़ का मलाईदार इंवेस्टमेंट. इसमें से कितना वाक़ई इंवेस्ट हुआ और कितना परिवार के पास सेफ़ हाथों में सौंप दिया गया

मुद्दा तो यही है न. सवाल ये है कि अब इस मुद्दे को “साल्व” करने के लिए “सॉफ्ट टारगेट” कौन है? सॉफ्ट टारगेट जिसका गला दबोच लो और वो आह भी न कर पाए. और अगर न दबोचो तो अपने हक़ का हिस्सा लेने की खातिर दूसरे हिस्सेदारों की नाक में दम कर दे. इतना दम तो है ही न उस महिला में. सो उसको उठा लिया और क़बूलनामे के फंदे से दबोच दिया उसका गला. हूजूर, असली नाम कब सामने लाओगे? आकाओं से इस क़दर घबराए हुए हो?

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