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आप लिखना ज़रूर! क्या पता आपके लिखने का असर हो जाए…

Fahmina Hussain for BeyondHeadlines

आज पूरे दिन जंतर-मंतर की फ़िज़ाओं में ‘राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’ और ‘बाबरी मस्जिद वहीं बनेगी’ जैसे नारों की गुंज गुंजती रही. बाबा साहेब अम्बेडकर की पुण्य तिथी के मौक़े से दलितों के अधिकारों पर लगातार भाषणों का दौर भी चलता रहा. लेकिन उसी जंतर-मंतर की सड़कों पर इनसे दूर केरल भवन के पास बालू माफियों के खिलाफ अनिश्चितकालीन धरने पर बैठी जजीरा को इस बात की फिक्र है कि आज उसकी पेट की भूख पूरी रात सोने नहीं देगी. वहीं यह फिक्र भी उसे सता रही है कि दिल्ली की इस सर्द मौसम में आज उसकी पूरी रात कैसे कटेगी?

जंतर-मंतर की सड़कों पर जजीरा को बैठे आज पूरे 60 दिन हो चुके हैं. जजीरा का पूरा दिन तो मीडिया व तमाशा देखने वालों के बीच कट जाता है, लेकिन शाम होते ही यह डर सताने लगती है कि आज की रात कैसे कटेगी? इसी बीच कल रात दिल्ली के चोरों ने उसका गैस सिलेंडर व सर्दी में ओढ़ने के लिए रखी दो कम्बलों (इन कम्बलों की क़ीमत जजीरा के मुताबिक दो हज़ार रूपये है) को चुरा कर ले गए. इस संबंध में उसने पास के पुलिस थाने में शिकायत भी दर्ज कराई है. उसे इस बात की भी उम्मीद है कि पुलिस चोर को ज़रूर ढ़ूंढ निकालेगी. क्योंकि पुलिस ने उसे आश्वासन दिया है कि वो सीसीटीवी फूटेज के माध्यम से चोर का पता लगाने की पूरी कोशिश करेगी.

जजीरा बताती है कि इससे पहले भी कुछ चोर उसके कैम्प में चोरी करने की कोशिश कर चुके हैं. बल्कि एक रात तो एक चोर शराब पीकर उसके कैम्प में घूस आया था. तब जजीरा ने उसका डटकर मुकाबला भी किया. उसके मारपीट के बाद वो भाग निकला.

स्पष्ट रहे कि केरल में कन्नूर जिले के मदायी गांव की रहने वाली 31 साल की जजीरा वी अपने ज़िले के पझयानगड़ी के तट पर बालू खनन रोकने के लिए पिछले 60 दिनों से जंतर-मंतर पर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठी हुई है. वो तब तक इस धरने पर बैठी रहेगी, जब तक केंद्र सरकार खनन रोकने के लिए कड़े क़दम नहीं उठाती.

जजीरा दिल्ली आने से पहले स्थानीय स्तर पर भी कई कोशिशें कर चुकी है. पहले एक स्थानीय पुलिस स्टेशन के पास धरने पर बैठी. पर जब बात नहीं बनी तो जजीरा ने बालू माफियाओं व स्थानीय पुलिस प्रशासन की आपसी मिलीभगत के खिलाफ केरल सचिवालय पर धरना दिया. तब केरल के मुख्यमंत्री ओमेन चांडी ने उनसे एक बार मिलकर कार्रवाई करने का आश्वासन दिया. लेकिन यह सिर्फ ज़बानी आश्वासन था, लिखित तौर पर कुछ नहीं मिला. यहां तक स्थानीय मीडिया ने भी इसका साथ नहीं दिया. वो बताती है कि ‘गर्भवती होने के बावजूद बालू माफ़िया ने मेरी पिटाई की. जब मैंने स्थानीय अखबारों में इस बाबत खबर देनी चाही तो सबने मुझे पागल क़रार दिया और कहा कि मैं प्रचार की भूखी हूं.’

आगे वो बताती है कि दिल्ली के मीडिया ने मेरा भरपूर साथ दिया है, लेकिन शायद यहां की मीडिया में कोई ताक़त बाकी नहीं रह गई है. तभी तो हर दिन कोई न कोई पत्रकार आकर हमसे बात करके जाता है, शायद लिखता भी होगा. लेकिन अभी तक हुआ कुछ भी नहीं. यहां भी सिर्फ ज़बानी आश्वासन ही मिल रहे हैं. वो यह भी बताती है कि यह लड़ाई वो सिर्फ अपने गांव की उस सुंदरता को बचाने के लिए लड़ रही है, जिसे देखते-देखते वो बड़ी हुई है. बच्ची थी तो अपने गांव के इसी बीच के किनारे वो खेलती थी. फिर बड़ी हुई तो घर की खिड़की से इसे निहारती थी, लेकिन अब उसका कहना है कि जब बीच ही खत्म हो जाएगा तो हम कैसे रहेंगे? हमारे बच्चे कहां खेलेंगे? हम किसे निहारते हुए अपना समय काटेंगे?

आखिर में जजीरा कहती है कि आप मेरी बातों को लिखना ज़रूर… क्या पता आपके लिखने का असर हो जाए और मैं अपने खूबसूरत से गांव को बालू माफियाओं से बचा सकूं.

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