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मुसलमान कैसे होने चाहिए?

किसी नागरिक का चरित्र कैसा होना चाहिए, भारतीय लोकतंत्र में ये शर्त या सवाल सिर्फ़ मुसलमानों के सामने ही रखा जा रहा है.

घोषित तौर पर हिंदू हित के लिए काम करने वाले संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता बता रहे हैं कि हिंदुस्तान में कैसे मुसलमान स्वीकार्य हैं. और सिर्फ़ ये ही नहीं, वे ये भी बता रहे हैं कि कैसे मुसलमान स्वीकार्य नहीं हैं. यानी यदि आप उनके बनाए सांचे में फिट नहीं बैठ रहे हैं तो आपकी ज़रूरत नहीं है.

हिंदूवादियों के अपने एजेंडे हैं जिन पर वो काम कर रहे हैं और करते रहेंगे. लेकिन चिंता की बात ये है कि सरकार भी अपनी तमाम शक्तियों के साथ इनके एजेंडे में शामिल हो गई है.

कई निर्वाचित नेता धार्मिक कट्टरपंथ को बढ़ावा देने वाले बयान दे रहे हैं. देश की 14.2 प्रतिशत आबादी को देशद्रोही घोषित कर रहे हैं. कोई क़ानून उन्हें ज़हर फैलाने से नहीं रोक रहा. न ही उन्हें किसी क़ानून का डर है. ये धर्मनिर्पेक्ष भारत की धीरे-धीरे आत्मा निकालने जैसा है.

देश की दूसरी सबसे बड़ी आबादी से उसकी धार्मिक आज़ादी का अधिकार छीना जा रहा है और कोई चू तक नहीं हो रही. क्या ये मुसलमानों का शांत आत्मसमर्पण नहीं है? मुसलमानों का धार्मिक चरित्र कैसा होना चाहिए ये कोई और कैसे तय कर सकता है?

क्या कभी किसी मुसलमान नेता ने ये कहा कि हिंदू कैसे होने चाहिए. उन्हें कैसे हिंदू स्वीकार हैं और कैसे हिंदू अस्वीकार हैं? जब इस देश के मुसलमानों ने हिंदुओं का चरित्र कैसा हो ये शर्त नहीं रखी तो फिर धर्म निर्पेक्ष भारत के किस क़ानून ने हिंदुओं के ये अधिकार दिया कि वो मुसलमान कैसे हो ये शर्त रखे?

ये धर्म आधारित राजनीति का चरमोत्कर्ष है. धर्म के नाम पर लोगों को दो खेमों में बांट दो. बिना कुछ किए वोट हासिल करो. सरकार बनाओ. सार्वजनिक संसाधन को लूटने का अधिकार अपने कोर्पोरेट मित्रों को दो. और भाषण पेलते रहो.

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में शासन करने का सबसे सरल फ़ार्मूला…

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