By Afshan Khan
ज़िन्दगी में कई बार ऐसा होता है कि हमारा इंसानियत पर से भरोसा उठ जाता है. लेकिन इसी ज़िन्दगी में हम ऐसे लोगों से भी मिलते हैं जिन्हें देखकर लगता है कि अच्छे और सच्चे लोग अभी भी ज़िंदा हैं.
मेरी ज़िन्दगी का वह एक दिन मैं चाह कर भी नहीं भुला सकती. उस दिन मैंने ऐसे इंसान के बारे में बहुत कुछ जाना, जिन्हें आज हक़ के साथ मैं ‘मेरे बाबा’ कहती हूं. मैं बाबा को रोज़ जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रॉक्टर ऑफिस के बाहर देखती थी. लेकिन रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में बिजी होने की वजह से कुछ ख़ास नहीं जान पाई.
उस दिन मैं अपने भाई और सहेली के साथ जामिया की लॉ फैकल्टी के पास कुछ बच्चों को पढ़ाने गई थी. तभी मैंने देखा कि बच्चे बाबा के पीछे भाग रहे थे. पास जाकर देखा तो बाबा बच्चों को कुछ खिलौने बांट रहे थे.
मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था. मैंने बच्चों से बात करने की कोशिश की लेकिन कुछ ख़ास पता नहीं चल पाया.
हमने बच्चों की मदद से बाबा का पीछा किया तो देखा बाबा एक झोंपड़ी के पास जाकर रुके और एक औरत से चाय बनाने के लिए कहा. चाय मिलने पर बाबा ने पैसे देने के लिए जब हाथ आगे बढ़ाया तो आंटी ने मना कर दिया. अब बाबा ने खुद्दारी का सबूत देते हुए आंटी को अपने बैग से निकाल कर चमचमाती हुई अंगूठियां दी और कहा –‘रख ले मोटी, अब इसे पहन कर खूब घूमना’… उनकी इस बात पर हम सब हंसने लगे.
मैंने आस-पास के लोगों से और आंटी से जानने की कोशिश की तो पता चला कि बाबा जामिया में कई सालों से घूम रहे हैं. इन्हें किसी के सामने हाथ फैलाना बिल्कुल पसंद नहीं है. इसलिए लोग अपनी मर्ज़ी से जो भी पैसे देते हैं, उनसे यह बहुत सारा सामान खरीद कर लाते हैं और बच्चों, यहां तक की हर तरह के लोगों में बांट देते हैं.
यह सारी बातें जानकार मैं फ्लैशबैक में जाकर हर दिन याद करने लगी तो याद आया कि बाबा कैसे नज़रें झुका लेते हैं. जब इन्हें कुछ दिया जाता है जैसे कि वो बहुत मजबूर हैं वरना कभी न लेते…
बाबा से मैं बार बार पूछती रही, -‘बाबा आप कहां रहते हैं? आपके बच्चे? कोई तो होगा.’
बाबा को जब मुझपे तरस आया तब बाबा ने अपने आप में बड़बड़ाते हुए कहा,-‘मेरे पोता-पोती को वो ले गया. मेरे पास बहुत ज़मीन थी. सब हड़प कर गया.’
मेरी आंखों में ज़बरदस्ती मैंने बहुत देर से जिन आंसुओं को रोका था वो मेरी बात ना मानते हुए बाहर आ गए. क्यों हुआ ऐसा… बाबा किसकी बात कर रहे हैं… क्या उनके बेटे ने ही ऐसा किया या कोई और… मैं बस इन्हीं ख्यालों में खोई रही.
मुझे और मेरी सहेली को रोते हुए देखकर बाबा ने अपने बैग से दो कड़े निकाले और हम दोनों को मुस्कुराते हुए देने लगे. मैंने मना किया तो ज़िद्द करने लगे, -‘पहन लो अच्छा है…’ बाबा ने कहा.
उस दिन के बाद मैंने हर रोज़ बाबा को कभी बिल्लियों और कुत्तों को खाना खिलाते हुए देखा है तो कभी कबूतरों को दाना डालते हुए. एक दिन बाबा ने मुझे पेन का पैकेट दिया. मेरे मना करने पर कहने लगे, -‘रख लो, बहुत अच्छी कंपनी का है.’ मैंने बाबा से पूछा, -‘आपको किसी चीज़ की ज़रुरत है? प्लीज़ बताइए ना.’ बाबा ने ग़ौर से सुनकर जवाब दिया,-‘ये मेरे कबूतर हैं. इनको बाजरा खिलाना.’
बाबा की मासूमियत देखकर हर दिन मैं यही सोचती हूं कि कितने खूबसूरत लोग हैं दुनिया में, जिनके अच्छे काम उन्हें खूबसूरत बनाते हैं और हां, इंसानियत अभी ज़िंदा है, बल्कि ‘मेरे बाबा’ जैसे लोगों की वजह से फल फूल रही है. (Courtesy: YuvaAdda.com)
(लेखिका जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पॉलिटिकल साईंस डिपार्टमेंट की छात्रा हैं.)