India

अंधविश्वास के खिलाफ़ उठी आवाज़ का क़त्ल

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

अब तक इस देश में लोग अपने अंधविश्वासों के संतुष्टि के लिए जानवरों की ही बली चढ़ाते रहे हैं, लेकिन आज लोगों के इसी अंधविश्वास के खिलाफ लड़ने वाले अंधविश्वास निर्मूलन समिति के अध्यक्ष और संस्थापक व प्रसिद्ध समाजसेवी डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की ही पुणे में गोली मारकर हत्या कर दी गई है.

बताया जा रहा है कि वारदात के वक्त दाभोलकर मॉर्निंग वॉक कर रहे थे और जैसे ही ओंकारेश्वर मंदिर के पास पहुंचे बदमाशों ने उन्हें गोली मार दी. ज़ख्मी हालत में उन्हें ससून हॉस्पिटल ले जाया गया. जहां पहुंचने से पहले ही उन्होंने दम तोड़ दिया.

murder of narendra dabholkarडॉ. दाभोलकर अंध श्रद्धा निर्मूलन बिल पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले थे. महाराष्ट्र सरकार जल्द ही इस पर बिल लाने वाली है. हमलावरों की उम्र 25 से 26 साल बताई जा रही है. डॉ. दाभोलकर को 4 गोलियां मारी गईं जिसमें से 2 गोलियां उनके सिर में लगी.

दाभोलकर मराठी साहित्य का एक बड़ा नाम थे और महाराष्ट्र में नरबलि, जादू टोना और काले जादू जैसी बुरी प्रथाओं के खिलाफ चलाए जा रहे आंदोलनों के अगुआ माने जाते थे.

डॉ नरेन्द्र दाभोलकर के प्रयासों के चलते जल्द ही महाराष्ट्र सरकार प्रदेश में जादू टोना विधेयक लाने जा रही थी. दाभोलकर पिछले 16 साल से काले जादू के खिलाफ एक कड़े कानून की मांग कर रहे थे. बाबाओं के खिलाफ इन्होंने कई बार अभियान भी चलाया था. उनके इस प्रयास को कुछ हिंदू राष्ट्रवादी संगठनो का विरोध भी झेलना पड़ा था. बताया जाता है कि हाल ही में कुछ कट्टरपंथी संगठनों ने उन्हें धमकी भी दी थी. दाभोलकर पिछले 16 साल से साधना साप्ताहिक के संपादक भी थे.

इस विधेयक के आने से कई कट्टरपंथी संगठनो  को डर था कि कानून बन जाने से सीधे-सीधे धार्मिक विश्वासों, हवन, पूजा पर भी रोक लग सकती है.

इस मामले में कट्टरपंथी संगठनो का कहना था कि अगर बिल पास हो जाता है तो हिंदू धर्म में किए जाने वाले कर्मकांड गैर जमानती अपराध हो जाएंगे. संभव है कि पूजा और होम हवन भी अपराध में गिने जाने लगें. धार्मिक संगठन और ट्रस्टी इस बिल के दायरे में आ सकते हैं.

यही वजह है कि अभी पिछले 16 जुलाई को ही महाराष्ट्र के सोलापुर में उन्हें विरोध झेलना पड़ा था. बल्कि पुलिस की ओर से उन्हें नोटिस भी जारी किया गया. उनके कार्यक्रम में  सिर्फ 30 श्रोता एवं 50 पुलिस उपस्थित थे. खाली कुर्सियां देखकर डॉ. दाभोलकर ने पुलिस को अंदर आकर बैठने का आवाहन किया था. साथ ही इन्होंने पुलिस को यह भी बताया कि विज्ञान एवं सत्य ढूंढने का काम पुलिस के प्रशिक्षण का एक भाग है.

नरेन्द्र दाभोलकर हत्या के बाद मराठी साहित्य जगत में शोक की लहर है. आज शाम को पुणे में साधना प्रकाशन के ऑफिस में उन के पार्थिव शरीर को आम लोगों के दर्शन के लिए रखा जाएगा. कल उन का अंतिम संस्कार सतारा में किया जाएगा.

डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या हमें यह सोचने पर मजबूर कर रही है कि इस आधुनिक युग में विज्ञान व प्रौद्योगिकी के चरमोत्कर्ष के साथ ही अंधविश्वासों का भी बोलबाला क्यों हो रहा है, बल्कि अंधविश्वासों की फसल विज्ञान व प्रौद्योगिकी के सहारे ही क्यों लहलहा रही है. क्यों देश भर में ज्योतिष और तंत्रमंत्र सिखाने वाले सेंटरों की बाढ़-सी आई हुई है. क्यों लोगों को बेवकुफ बनाकर पैसा कमाने के इस शार्टकट पेशे में नौजवानों की दिलचस्पी तेज़ी से बढ़ती जा रही है. क्यों तंत्र-मंत्र के नाम पर घिनौनी करतूतें करने से भी लोग नहीं कतराते.

आज शायद ही कोई ऐसा मुहल्ला, गली और गांव हो जहां गुरु घंटाल आम जनता को बेवकुफ बनाकर अपना उल्लू सीधा न कर रहें हों. भविष्यवाणी के नाम पर चलने वाले इनके पाखंड का असर पूरे समाज पर है.

शायद आपको यह जानकर हैरत होगी कि आज अंधविश्वास फैलाने में ‘‘मीडिया’’ ही सबसे आगे है, जबकि मीडिया को जनता को जागरूक करने का माध्यम माना जाता है. मीडिया की ही देन है कि प्रतिमाएं दूध पीती हैं. समुद्र का पानी मीठा हो जाता है और निर्मल बाबा जैसे पाखंडी चंद करोड़ रुपये में मीडिया का वक्त खरीदकर अपनी दुकान सजा कर बैठ जाते हैं.

अगली बार जब आप टीवी पर निर्मल बाबा जैसे किसी पाखंडी को प्रवचन सुनाते हुए देखे तो नरेंद्र दाभोलकर की कमी महसूस कर लीजिएगा. नरेंद्र जैसे लोगों का न होने ही ऐसे पाखंडियों के लिए ‘वरदान’ बन गया है.

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