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दंगों में विधायक संगीत सोम का रोल का दंगे का सच…

BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : पिछले दो महीने से अधिक समय से मुज़फ्फरनगर, शामली व आस-पास के जिलों में सांप्रदायिक हिंसा की वजह से लाखों की संख्या में मुस्लिम परिवार के लोग विस्थापित होकर राहत कैंपों में रहने को मजबूर हैं. प्रदेश सरकार पिछले दो महीने में सांप्रदायिक हिंसा के जिम्मेवारों के खिलाफ़ जहां कार्यवाई करने में असफल रही है, तो वहीं पीडि़तों को मुआवज़ा, पुर्नवास जैसे मूलभूत सवालों को हल करने में नाकाम साबित हुई हैं. प्रदेश सरकार की नीतियां साफ कर रही हैं कि वह पीडि़तों को इंसाफ से वंचित रखना चाहती है.

रिहाई मंच ने कहा कि अखिलेश सरकार के श्रम मंत्री शाहिद मंजूर ने मुज़फ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा पीडि़तों पुर्नवास के सवाल पर गैर-जिम्मेदाराना बयान देकर जले पर नमक छिड़कतें हुए सपा का नमक अदा करते हुए कहा कि हलफ़नामा इस बात के लिए प्रदेश सरकार ले रही है कि मुआवज़ा पाने वाला असली है या नक़ली. इससे यह बात साफ हो जाती है कि अखिलेश सरकार के इशारे पर मुस्लिम मंत्री मुआवजे के सवाल पर गंदा सियासी खेल-खेल रहे हैं. इसका खामियाजा शाहिद मंजूर समेत सपा के मुस्लिम विधायकों और मंत्रियों को आगामी लोकसभा चुनावों में भुगतना पड़ेगा.

मंच ने कहा कि मलियाना से लेकर हाशिमपुरा तक दंगों के सवाल पर बने आयोगों की रपटों पर मुलायम सिंह राजनीतिक पैंतरेबाजी और षडयंत्र करते रहे हैं. वैसी ही कोशिशें मुज़फ्फरनगर दंगे पर बने सहाय आयोग पर ही शुरु हो गई है. दंगा पीडितों के जिन्दगी और इंसाफ से जुड़े सहाय आायोग के कार्यकाल को बार-बार बढ़ाना यह साफ़ करता है कि अखिलेश की नियत दंगा पीडि़तों के इंसाफ पर साफ नहीं है.

मंच ने कहा कि सहाय आयोग का हश्र मलियाना, हाशिमपुरा जैसा बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. क्योंकि इसके पहले भी निमेष कमीशन की रपट पर सरकार की राजनीतिक पैंतरेबाजी को ध्वस्त करते हुए रिहाई मंच ने विधानसभा के सामने अवाम की जनांदोलन के ताक़त के बल पर 121 दिनों तक सड़क पर संघर्ष किया था और सरकार को मजबूर करने का काम किया था.

अखिलेश सरकार के कारनामों का कुछ सच…

1-      प्रदेश सरकार द्वारा जिस तरीके से सांप्रदायिक हिंसा पीडितों को 5-5 लाख रुपया पुर्नवास के लिए देने की घोषणा करते हुए अपना गांव छोड़ने के लिए कहा गया, यह पूरी नीति पीडि़तों को समाज से जेहनी और सामाजिक रुप से विभाजित करने की है. इसके तहत 90 करोड़ रुपए की राशि जनपद मुज़फ्फरनगर के ग्राम कुटबा, कुटबी, फुगाना, काकड़ा, मोहम्मदपुर रायंसिंह और मुडभर के दंगा पीडितों को व जनपद शामली के ग्राम लाख, बहावड़ी और लिसाड़ के पीडि़तों को दिया जाना था. सरकार द्वारा इस तथ्य की अनदेखी की गई कि दंगे के कारण 162 गांव से विस्थापन हुआ, जबकि यह योजना केवल 9 गांवों के पीडितों के लिए बनी. इस तरह 153 गांवों के पीडितों के साथ सरकार ने विभेद करके पीडितों का अनऔचित्य पूर्ण वर्गीकरण कर दिया.

2-      ग्राम लिसाड़ में 112 व्यक्तियों के मकानों के जलने का सर्वे जिला अधिकारियों ने किया. किसी एक पीडित के भवन का मूल्य अधिकारियों द्वारा यदि 10 लाख रुपया आंका गया है तो उसे केवल पांच लाख रुपया पुनर्वास के नाम पर देकर शपथ पत्र पर दस्तखत करने के लिए मजबूर करना राज्य सरकार का मनमानापन और पीडि़त के साथ दोबारा सांप्रदायिक हिंसा करने जैसा है. जिसमें राज्य सरकार यह शर्त लगाकर कि वह कभी भी किसी भी परिस्थिति में दोबारा गांव नहीं लौटेगा और न ही अपनी चल व अचल संपत्ती के नुक़सान का मुआवजा लेने के लिए कोई दावा प्रस्तुत करेगा. यह शर्तें पीडि़तों के मूल अधिकार पर राज्य सरकार द्वारा किया गया कुठाराघात है. इसमें यह उल्लेख किया जाना महत्वपूर्ण है कि उक्त 112 मकान जलने वाले व्यक्तियों की सूची में बहुत लोग ऐसे भी हैं जिनके नाम ग्राम लिसाड़ के उन 291 व्यक्तियों की सूची में शामिल नहीं किए गए हैं, जिन्हें 5-5 लाख रुपए देने की घोषणा की गई है. इंसाफ के लिए लखनऊ आए अताउल्ला पुत्र सुबराती जिनमें से एक हैं. ऐसे अनेक मामले हैं. मोहम्मदपुर राय सिंह निवासी नूर हसन का नाम केवल इस आधार पर लिस्ट में शामिल नहीं किया गया क्योंकि उसका एक मकान कांधला जिला शामली में भी है, जिसमें उसका सबसे छोटा पुत्र रहता है और कांधला में ही पढ़ता. जबकि नूर हसन का पूरा परिवार मोहम्मदपुर रायसिंह में ही निवास करता था, क्या यह औचित्यपूर्ण है कि यदि किसी पीडि़त की सम्पत्ती किसी दूसरे शहर में हो तो उसे इस आधार पर दंगा पीडि़त नहीं माना जाएगा और वह क्या मुआवजा पाने का पात्र नहीं होगा?

दंगों में विधायक संगीत सोम का रोल का दंगे का सच…

  1. विधायक संगीत सोम पर से एनएसए का हटाया जाना और इस मामले में सही तथ्यों का राज्य सरकार द्वारा एडवाइजरी बोर्ड के सामने न रखना- दिनांक 29 अगस्त 2013 को शिवम नामक व्यक्ति के फेसबुक एकाउंट पर ‘देखो भाई कवाल में क्या हो गया’ शीर्षक से एक फिल्म लोड की गई जिसमें दो युवकों की लाश को दिखाया गया है, इन दोनों लाशों को कवाल के सचिन व गौरव की लाशें बताया गया. भाजपा विधायक संगीत सोम ने इसे सबसे पहले शेयर किया और उसके बाद 229 व्यक्तियों ने भी इसे शेयर किया. इस फिल्म को मोबाइल फोनों, सीडी, डीवीडी जैसे माध्यमों से भी वितरित किया गया जिससे जनपद बागपत मुज़फ्फरनगर, शामली, मेरठ, सहारनपुर और बिजनौर में भी हिंदू युवकों में सांप्रदायिक भावना भड़की और उनके द्वारा हिंसा की वारदातें की जाने लगीं.
  2. संगीत सोम ने 31 अगस्त को नंगला मंदौड़ की पंचायत में भड़काऊ भाषण दिया, इस संबन्ध में थाना सिकैड़ा में मुक़दमा अपराध संख्या 173 सन 2013 मुक़दमा दर्ज हुआ. संगीत सोम ने 7 सिंतबर 2013 को पुनः नंगला मंदौड़ की पंचायत में भाषण दिया. उक्त फिल्म और भड़काऊ भाषण से पहले ही हिंदू जनमानस सांप्रदायिक हो चुका था, जो 7 सितंबर 2013 की सुबह से ही लाख से अधिक की तादाद में घातक हथियारों के साथ नंगला मंदौड़ की पंचायत में पहुंचा और रास्ते में इन लोगों ने आते समय कई हिंसक वारदातें की जिसमें कई घायल हुए जिनमें अफसाना और अंसार नामक ड्राइवर की मृत्यु हो गई. अफसाना पर घातक हमला सुबह 10 बजे थाना शाहपुर क्षेत्र में हुआ, और लगभग 1 बजे दोपहर में नंगला मंदौड़ के महापंचायत के पास ही अंसार की हत्या हुई. पुलिस द्वारा भड़काऊ भाषण देने के मामले में मुक़दमा अपराध संख्या 178 सन 2013 दर्ज कराया.
  3. पुलिस की छानबीन में उक्त फिल्म अफ़गानिस्तान में बनाई गई पाया गया. पुलिस द्वारा यह घोषणा की गई कि इस फिल्म में लाशों को सचिन और गौरव की बताया गया और इस दुष्प्रचार को देखकर जनभावनाएं भड़की लिहाजा पुलिस द्वारा थाना कोतवाली नगर मुज़फ्फरनगर में मुक़दमा अपराध संख्या-1118 सन 2013 दर्ज कराया, जिसमें शिवम और संगीत सोम को मुख्य अभियुक्त बनाया गया.

वरुण गांधी की तरह संगीत सोम को भी बचाया अखिलेश सरकार ने…

  1. राज्य सरकार ने भड़काऊ भाषण के मामले में सुरेश राणा विधायक भाजपा व संगीत सिंह सोम विधायक भाजपा के विरुद्ध रासुका के तहत कार्यवाई की. यह कार्यवाई उक्त मुक़दमा अपराध संख्या 173 सन 2013 और मुक़दमा अपराध संख्या 178 सन 2013 अन्तर्गत थाना सिकैड़ा के आधार की गई जो कि गवाही के एतबार से न्यायालय में आरोप साबित होने पर ही अभियुक्त सजा के पात्र होते हैं. परन्तु इस मामले में पुलिस के समक्ष एलआईयू और पुलिस कर्मियों ने अपने बयान विवेचक को सही दर्ज नहीं कराए और मुकर गए. जबकि मुक़दमा अपराध संख्या-1118 सन 2013 के तहत रासुका की कार्यवाई ही नहीं गई जो कि एक बड़ा साइबर क्राइम था, जिसमें अभियोजन पक्ष अहम सबूतों के आधार पर अभियुक्तों को सजा दिलाने में सफल हो जाता. संगीत सोम के इस अपराध को विस्तार से एडवाइजरी बोर्ड के सम्मुख राज्य सरकार ने प्रस्तुत नहीं किया बल्कि तथ्यों को छुपाया.
  2. फेसबुक कम्पनी संयुक्त राज्य अमेरिका की कंपनी है जो कि इस मामले में अहम गवाह है. इसलिए विवेचक के आग्रह पर माननीय सीजीएम मुज़फ्फरनगर द्वारा एक पत्र संयुक्त राज्य अमेरिका के न्याय विभाग को लिखा गया कि वह भारतीय अधिकारियों को फेसबुक कंपनी से साक्ष्य एकत्र करने में मदद करें. यह पत्र राज्य सरकार उत्तर प्रदेश की जानकारी में लाकर, गृह मंत्रालय भारत सरकार के द्वारा न्याय विभाग अमेरीका सरकार को भेजा गया, परन्तु इन तथ्यों को न तो एडवाइजरी बोर्ड के सामने रखा गया और न ही संगीत सोम की ज़मानत प्रार्थना पत्र पर विचार करने वाले सेशन जज मुज़फ्फरनगर के सम्मुख प्रस्तुत किया गया. फलतः सेशन जज द्वारा यह लिखते हुए ज़मानत दे गई कि अभियोजन साक्ष्य प्रस्तुत करने में असफल है और एडवाजरी बोर्ड द्वारा भी एनएसए में निरुद्धी का कोई पर्याप्त आधार नहीं पाया. जबकि इन दोनों फोरम पर राज्य सरकार यह कह सकती थी कि विवेचना चल रही है और साक्ष्य संकलन हेतु आग्रह पत्र संयुक्त राज्य अमेरिका की एजेंसी को भेजा गया है.

पुलिस अधिकारियों का अत्याचार…

  1. पिछले दो माह के दौरान मुज़फ्फरनगर व समीपवर्ती जनपदों के अनेक मामले ऐसे हैं जिनमें सांप्रदायिक हिंसा में मुसलमानों की हत्याएं हुई हैं, परन्तु पुलिस अधिकारियों द्वारा उन्हें जानबूझकर हत्या का मामला नहीं माना गया. जाट चौधरियों और महिलाओं द्वारा अनेक ग्रामों में प्रदर्शन हथियारों के साथ किए गए और पुलिस को धमकी दी गई कि वह जाट लोगों को गिरफ्तार करने के लिए गावों में घुसने की हिम्मत न करे. अनेक मुस्लिम पीडि़तों को दबाव में लेकर अभियुक्तगण अपने पक्ष में शपक्ष पत्र बनावा रहे हैं. अनेक प्रभावशाली अभियुक्त ऐसे हैं जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार नहीं किया है और उनके विरुद्ध विवेचना भी धीमी गति से चल रही है. ऐसे हालत में पीडि़त लोग स्वतंत्र रूप से गवाही देने की स्थिति में नहीं हैं. अतः आवश्यक है कि सभी मामलों की विवेचना सीबीआई से करायी जाय और मुक़दमों का परीक्षण राज्य से बाहर दिल्ली राज्य में कराया जाय.

अभियुक्तों को बचा रहे हैं सरकार के मंत्री…

  1. सांप्रदायिक हिंसा के दौरान ऐसी कई घटनाएं सामने आईं, जिनमें जाट समुदाय से आने वाले अभियुक्तों को बचाने के लिए सरकार के मंत्री और विधायकों की भूमिका सामने आई. उदाहरण के लिए एक प्रकरण जिला बागपत के काठा गांव का हैं, जहां चांद नाम के एक व्यक्ति की हत्या में शामिल जाट अभियुक्तों को बचाने के लिए सरकार के मंत्री वीरेन्द्र सिंह ने विवेचक को फोन किया. विवेचना कर रहे पुलिस अधिकारी ने धमकी भरे इस फोन की पूरी डिटेल नंबर सहित जीडी में दर्ज कर दी. इससे समझा जा सकता है कि मुस्लिम समुदाय के लोगों की सांप्रदायिक हिंसा के दौरान की गई हत्याओं को दबाने के किस तरह से विधायक व मंत्री तक संलिप्त हैं. इसी तरह बलात्कार की घटनाओं को भी बड़े स्तर पर दबाने का प्रयास किया गया. पचास से अधिक मृतक और लापता लोगों के मामलों को सांप्रदायिक हिंसा का मामला न मानना भी दर्शाता है कि सरकार पीडि़तों को इंसाफ देने से पीछे हट रही है.

गंभीर सवालों को अनदेखा कर रही है सरकार…

  1. सांप्रदायिक हिंसा के साजिशकर्ता हुकुम सिंह, भाजपा विधायक संगीत सोम एवं राकेश टिकैत, नरेश टिकैत, बाबा हरिकिशन जैसे लोगों के खिलाफ सुबूत होने के बावजूद कार्यवाई न करना साफ करता है कि सरकार पीडि़तों को इंसाफ से वंचित कर रही है. जिस तरह पिछले दिनों जाट महापंचायत की वीडियो दिखाए जाने के सवाल पर सरकार ने रिहाई मंच द्वारा आयोजित जनसुनवाई को रोकने का प्रयास किया उसने साफ कर दिया कि सरकार दंगाईयों के चेहरे सामने नहीं लाने देना चाहती है. गौरतलब बात यह है कि सांप्रदायिकता फैलाने वाली जाट महापंचायतों में सपा के नेता भी शामिल थे.
  2. पिछले दिनों रिहाई मंच द्वारा जारी कुटबा-कुटबी गांव के दंगाइयों की बातचीत के मोबाइल रिकार्ड इस बात को साफ कर रहे हैं कि किस तरह दंगाइयों ने ठंडे दिमाग से मुस्लिम समुदाय के लोगों की हत्या, बलात्कार, घरों में आगलगी की और सरकार की मशीनरी उसमें संलिप्त थी. मोबाइल बातचीत के रिकार्ड में एक महिला कह रही है कि उसने अंकल से बात करके 10 मिनट पीएसी को रोकवा दिया है. इतनी बड़ी साजिश पर रिहाई मंच ने यह आशंका जाहिर की थी कि इसी गांव के रहने वाले मुंबई एटीएस प्रमुख केपी रघुवंशी भी हैं, जिनके घर के दो लोग भी मुस्लिम समुदाय पर हमला करने के मामले में नामजद अभियुक्त हैं पर यूपी सरकार ने इतने गंभीर सवाल को अनदेखा कर दिया.

 

सांप्रदायिक ध्रुवीकरण…

  1. कवाल प्रकरण- दिनांक 27 अगस्त 2013 को कवाल में मोटर साइकिल टकराने की घटना को लेकर शहनवाज़ का सचिन व गौरव के साथ विवाद हो गया था, जिससे भड़क कर सचिन व गौरव ने अपने आपराधिक पृष्ठभूमि के परिजनों को लेकर शाहनवाज़ को उसके घर में से खींचकर उसकी हत्या कर दी और जब इन लोगों को ऐसा करते देखा तो क्षेत्र के लोगों ने शाहनवाज़ की चीख-पुकार पर उसे बचाने का प्रयत्न किया परन्तु सचिन, गौरव व उनके साथी हत्या करके भागने का प्रयास करने लगे, जिस पर आक्रोशित भीड़ ने सचिन गौरव व उसके साथियों को भागने से रोका, इसी बीच सचिन व गौरव भीड़ के आक्रोश का शिकार हो गए और उनकी मृत्यु हो गई. यह एक ऐसी घटना थी जो सांप्रदायिक राजनीति करने वाले भाजपाइयों और किसान राजनीति में सत्ता न पा सकने वाले टिकैत बंधुओं को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के ज़रिए वोट हासिल करने की और उन्हें सत्ता तक पहुंचने की कुंजी महसूस हुई. सांप्रदायिक हिन्दुत्वादी व भाजपाइयों ने जाटों को भड़काने के लिए कहा कि बहू-बेटी सुरक्षित नहीं हैं और शहनवाज़ द्वारा हिन्दुओं की बहू-बेटियों के साथ छेड़-छाड़ की गई हैं जो हिन्दुओं के सम्मान पर ठेस है. इसलिए सभी हिन्दुओं को एकजुट होकर न्याय हासिल करना चाहिए.
  2. प्रश्न यह है कि क्या न्याय हासिल करने के लिए न्यायपालिका में पीडि़त को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करके मुक़दमा लड़ना होता है? इस प्रकार साइकिल टकराने की घटना के स्थान पर महिला से छेड़-छाड़ की अफवाह फैलाई गई और इसी के आधार पर सचिन व गौरव के क्रिया करम करके लौट रही भीड़़ को भड़काया गया, जिससे कवाल में लूट-पाट व आगजनी की घटनाएं हुई.

राहत कैंपों में लोगों को मार रही है सरकार…

राहत कैंपों में लागातार सदमें और बीमारियों से मौतों को सिलसिला जारी है. अब तक 20 से अधिक मौतें हो चुकी हैं, जिसमें ज्यादातर सदमें के कारण… पिछले दिनों कांधला राहत कैंप में सूप की एक महिला की मौत इस वजह से हो गई कि सही वक्त पर सरकारी एम्बूलेंस नहीं आई और महिला की मौत हो गई. ऐसी ढेरों कहानियां हैं. बार-बार फोन करने के बाद भी एम्बूलेस वाले ने बहाने बाजी की. जबकि प्रदेश सरकार कहती है कि वह आधे घंटे में एंबुलेंस की सुविधा उपलब्ध कराएगी.

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