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जानिए! पुलिस का सच…

Himanshu Kumar

मुज़फ्फर नगर के जाट नेता जिन पर दंगा भड़काने, हत्याओं और बलात्कारों की एफआईआर दर्ज़ हैं, उन्हें मुख्यमंत्री बातचीत के लिए ससम्मान बुलवा रहे हैं. उन्हें सरकारी खर्च पर ठहराया व खिलाया पिलाया जा रहा है. उधर सरकार की ही पुलिस का कहना है कि ये आरोपी हमें मिल ही नहीं रहे हैं.

यही मंज़र मैंने दंतेवाड़ा में देखा था. वहाँ भी सलवा जुडूम के नेता और पुलिस अधिकारी जो बलात्कार, ह्त्या और आगजनी की वारदातों में आरोपी होते थे खुलेआम बंदूकें ले कर घुमते थे. पुलिस अधीक्षक उनकी सुरक्षा में आगे पीछे घुमते रहते थे. और अदालत में यही पुलिस बोल देती थी कि जी ये आरोपी तो हमें मिल ही नहीं रहे.

इस देश में किसे पकड़ना है और किसे जान बूझ कर अनदेखा करना है ये इस देश की व्यवस्था को अच्छी तरह पता है.

कहते हैं न्याय की आँखों पर पट्टी इसलिए बंधी होती है ताकि वो ये न देख सके कि अपराध करने वाला कौन है. बल्कि उसके हाथ में एक तराजू होता है जिसमें वो सबूत और गवाही के आधार पर फैसला करती है.

लेकिन याद रखिये अगर आप लोगों को बराबर नहीं मानेंगे और उनसे उनकी ज़ात या जन्म के मज़हब की बिना पर भेदभाव करेंगे तो उससे आप ही को समस्या आयेंगी.

भारत नाम की परिकल्पना सिर्फ बराबरी और इन्साफ की बुनियाद पर ही बच सकती है. नाइंसाफी और ज़ुल्म इस मुल्क के टुकड़े भी कर सकती है.

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