अमानवीय हालात में और क्रूर हो गया है सपा सरकार का रुख, दंगा पीड़तों को राहत कैंपों से ज़बरदस्ती खदेड़ा…
Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines
राहत कैंपों से मासूमों की मौत की ख़बरों के बाद मीडिया के कैमरों का रुख मुज़फ़्फ़रनगर की ओर हुआ तो सपा सरकार की घिग्घी बंध गई. न किसी मंत्री के पास कोई जवाब और न किसी अफ़सर के पास कोई हिसाब. समाजवाद के मुखिया ने मुँह खोला तो ऐसे शब्द निकले की सुनने वाले दंगा पीड़ितों की पीड़ा और बढ़ जाए.
नेताजी के शब्द वाणों से घायल हुए दंगा पीड़ितों के ज़ख़्मों पर नमक छिड़का प्रदेश के गृह सचिव के बयान ने. लेकिन जब नेताजी ने दंगा पीड़ितों को राजनीतिक कार्यकर्ता और सबसे बड़े अधिकारी ने मौतों को लापरवाही बता दिया हो तो उन्हें सही ठहराने के लिए प्रशासन भला क्या न करे.
लिहाज़ा प्रशासन के बुलडोज़रों को दंगा पीड़तों के कैंपों में भेज दिया गया. राहत शिविर उजाड़ने के लिए. बेशर्म बयानबाज़ी के बाद ये अमानवीय व्यवहार, आख़िर क्यों?
मुज़फ़्फ़रनगर की नाकाबिले बर्दाश्त हक़ीकत यह है कि बढ़ती ठंड के साथ-साथ कैम्पों में रह रहे दंगा पीड़ितों पर अखिलेश सरकार का ज़ुल्म भी बढ़ता जा रहा है. मुलायम सिंह यादव बचकाने बयान के बाद अब प्रशासन दंगा पीड़तों के सिर से टपकती टेंट की छत को छीनने पर भी आमादा है.
शुक्रवार को लोई कैम्प से दस परिवारों के घरों को पूरी तरह से उजाड़ दिया गया. हालांकि स्थानीय अखबारों के खबर के मुताबिक आज सौ परिवार को कैम्प से उखाड़ फेंकने की तैयारी थी, लेकिन लोगों के विरोध के कारण सरकार का बुलडोजर सिर्फ दस तम्बुओं पर ही चल पाया. इसके पहले भी लोई कैम्प से नौ परिवारों को शिफ्ट किया जा चुका है.
वहीं मुज़फ्फरनगर के सबसे करीब तावली कैम्प को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है. इसके साथ-साथ मदरसों को भी सख़्त हिदायत दे दी गई है कि अपने यहां चल रहे कैम्पों को जल्द से जल्द खत्म करें. बसी कलां में लोग पहले एक मदरसे में रह रहे थे. लेकिन अब लोगों ने मदरसों में रहना बंद कर दिया है. मदरसे से कुछ दूर पास ही खाली ज़मीन में तकरीबन सौ परिवार तंबू लगाकर अपना गुज़र-बसर कर रहे हैं.
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक मुज़फ्फरनगर के जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने दावा किया था कि वे दंगा पीड़ितों को पक्के राहत शिविरों में शिफ़्ट करना चाहते हैं. लेकिन आज प्रशासन के रुख से तो यही लगा कि वे किसी भी तरह दंगा पीड़तों से निजात चाहते हैं.
मुजफ्फरनगर के राहत शिविर बेशर्म सरकार के गले की हड्डी बन गए हैं. हालात यह हो गए हैं कि मोटी चमड़ी के नेता भी जवाब नहीं दे पा रहे हैं और बदहवासी में ऊल जलूल बयान दे रहे हैं.
बसी कलां के मदरसे को खाली कराना इसी बदहवासी का सबूत भर है. जब हमने दंगा पीड़तों से पूछा कि उन्होंने मदरसा क्यों छोड़ा? तो इसके जवाब 45 वर्षीय नसीब बताते हैं कि ‘दरअसल हमारा नसीब ही खराब है. पहले प्लानिंग के तहत दंगा किया गया. हमारे अपनों को हमारे आंखों के सामने खत्म कर दिया गया. अब जिन्हें मुवाअज़ा मिला है, उनसे यह हस्ताक्षर करा लिया गया है कि वो दुबारा वापस अपने गांव नहीं जा सकते. अब मदरसे पर हम कब तक बोझ बने रहे? गांव हम वापस जा नहीं सकते. इसलिए हम लोगों ने यहीं अपनी प्लॉट ले ली हैं. अब जब तक घर बन नहीं जाता है, तब तक तो हमें इन्हीं तम्बुओं में ही रहना हमारी मजबूरी है.’
हालांकि यहां के लोगों में पुलिस का दहशत आंखों से साफ झलक रही थी. ज़्यादातर तंबुओं से बच्चे व बच्चियां गायब थी. वजह पूछने पर कैम्प के बुजुर्गों का कहना था कि अब किसी पर भरोसा नहीं रह गया है. पुलिस कभी भी हमारे साथ कुछ भी कर सकती है. इसलिए हमारी बच्चियां रात को पास के रिश्तेदारों व स्थानीय लोगों के घरों में चली जाती हैं.
उधर लोई कैम्प से जिन दस परिवारों के तम्बुओं को बुलडोजर के सहारे गिरा दिया गया. उनमें से कुछ परिवार तो अभी वहीं दूसरे परिवारों को तम्बुओं में रह रहे हैं, तो कुछ पास के नीमखेड़ी कैम्प जाकर अपना तंबु फिर से लगा दिया है. इस पूरे मसले पर मुज़फ्फरनगर के सामाजिक कार्यकर्ता शानदार गुफरान बताते हैं कि स्थानीय प्रशासन पर क्षेत्रीय समाजवादी पार्टी की सरकार का कैम्पों को बंद करने को लेकर भारी दबाव है.
जितने समय यह कैम्प चलते रहेंगे, समाजवादी पार्टी को उत्तर प्रदेश की सत्ता के शिखर पर पहुंचाने वाला मुसलमान वोटर उनसे लगातार दूर होता चला जाएगा. कैम्पों की हालत बहुत बदहाल है. लगभग 35 बच्चे ठंड के चलते काल का ग्रास बन चुके हैं. जिससे कैम्पों में रहने वाले लोगों में समाजवादी पार्टी के प्रति आक्रोश बढ़ता जा रहा है. और साथ में मुलायम सिंह यादव द्वारा हाल में कैम्पों में रहने वाले लोगों को लेकर दिए गए राजनीति बयान ने आग में घी का काम किया है.
कहानी यहीं खत्म नहीं होती. सच्चाई यह है कि मुलायम सिंह के तल्ख बयान के बाद प्रशासन ने राहत कैम्पों पर सख्ती बरतनी शुरू कर दी है. एक स्थानीय अखबार के खबर के मुताबिक सांझक में कब्रिस्तान की ज़मीन पर तंबू लगातार रह रहे 30 शरणार्थी परिवारों के खिलाफ शाहपुर थाने में सरकारी ज़मीन कब्ज़ाने का रिपोर्ट दर्ज कर लिया है.
बेशर्म नेता और मोटी चमड़ी के अफ़सर जिस वक़्त अपने वातानुकूलित कमरों में सुनहरे ख्वाब देख रहे होंगे तब दंगा पीड़ितों की ज़िंदगियाँ बेहद अमानवीय हालात में अपने सिर पर तंबू देखने के लिए तरस रही होंगी.