Edit/Op-Ed

इनका पिछड़े रह जाना समाज के लिए सबसे ख़तरनाक होगा

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

दिसंबर की सर्दियों के साथ ही दंगा प्रभावित मुज़फ्फ़रनगर के राहत कैंपों में रह रहे मासूम बच्चों और बेबस बुज़ुर्गों की मौत की ख़बरें भी आईं. अक्सर सुर्खियाँ बताती हैं कि ये लोग ठंड से मरे. लेकिन हक़ीक़त यह है कि ये लोग ग़रीबी और बेबसी से मरे.

प्रशासन के लाख दावों के बावजूद आज भी करीब 10 हज़ार लोग राहत कैंपों में रहने के लिए मजबूर हैं. ये लोग बेहद अमानवीय हालात में रह रहे हैं. अपनी ताक़त की अकड़ में मग़रूर लोग अक्सर कहते हैं कि हम तुम्हारी पूरी क़ौम को पाषाण युग में पहुँचा देंगे. और मुज़फ़्फ़रनगर जाकर लगता है कि एक पूरी क़ौम पाषाण युग में पहुँच गई है.

मासूमों की कब्रें, बेबस माओं के सूखे चेहरे, बुज़ुर्गों की डूबी आँखें और हाथ पर हाथ धरे बैठे पिताओं की बेबसी सवाल करती है कि आख़िर उनका ग़ुनाह क्या था? दुनिया के कितने ही देशों में, शहरों में, स्थानों पर लोग शून्य डिग्री सेल्सियस तापमान से नीचे रहते हैं और मुज़फ्फ़रनगर में दंगा पीड़ित ठंड से मर रहे हैं.

क्या वजह है कि चाँद पर पहुँचने की तैयारियों में जुटे मुल्क के बाशिंदे ठंड से मर रहे हैं? राहत कैंपों में जाकर लग रहा है कि सरकार दंगा पीड़ितों को अपना नागरिक ही नहीं मानती है, वरना ऐसा नहीं होता कि छह लोगों के परिवार को एक कंबल दिया जाता. बाज़ार में उपलब्ध सबसे घटिया क्वालिटी के कंबल सरकार दंगा पीड़ितों को बाँट रही है.

दंगा पीड़ितों और उनके सवालों पर आप जितनी भी ग़ौर व फिक़्र करेंगे इसी नतीज़े पर पहुँचेगे कि ये लोग मर रहे हैं क्योंकि ये ग़रीब हैं. ये लोग हिंदू या मुसलमान नहीं हैं बल्कि सदियों से पिसते आ रहे ग़रीब ही हैं.

दूसरा पहलू यह भी है कि राहत कैंपों में मासूमों की मौत की ख़बरें आने के बाद हमारी संवेदना जागी है और बड़ी तादाद में लोग कंबल चादर लेकर मुज़फ्फ़रनगर पहुँच रहे हैं. 32 बच्चों की मौत की ख़बर पढ़कर जागी हमारी यह संवेदना भी कुछ महीने बीतने के बाद फिर सो जाएगी. और इस बीच सवाल यही रह जाएगा कि दंगा पीड़ितों की ज़िंदगी कहाँ तक पहुँची?

दंगा पीड़ितों का एक और सियाह सच यह भी है कि उनके बच्चे पिछले चार महीनों से स्कूल कॉलेज नहीं गए हैं. पढ़ाई पूरी तरह छूट गई है. उनके वर्तमान से ज़्यादा उनका भविष्य ख़तरे में हैं. समाज, सरकार और प्रशासन के सामने सबसे बड़ी चुनौती उनके भविष्य को बचाने की ही है.

प्रशासन के दावे फ़ाइलों से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं. सरकार पहले ही दंगा पीड़ितों को राजनीतिक कार्यकर्ता बताकर अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ चुकी है. अब जो करना है समाज को ही करना है क्योंकि इन लोगों का पिछड़े रह जाना समाज के लिए ही सबसे ख़तरनाक होगा.

इस लिहाज़ से मौज़ूदा वक़्त में सबसे बड़ी ज़रूरत इन दंगा पीड़ितों के बच्चों की पढ़ाई को ज़ारी रखने की है. सबसे खास ध्यान उन बच्चों पर दिया जाना चाहिए जिन्हें तीन महीने बाद बोर्ड की परिक्षाएं देनी है. पिछले चार महीनों से इन बच्चों के हाथों में किताबें नहीं आई हैं. ज़रूरत है सामाजिक संगठनों के सामने आकर इनकी पढ़ाई की ज़िम्मेदारी लेने की. क्योंकि ये बच्चे ही भविष्य की उम्मीद हैं. पढ़कर ही ये बच्चे अपने परिवारों को ग़रीबी के कुचक्र से निकाल सकते हैं.

हम आपको बताते चलें कि हमारी संस्था INSAAN International Foundation और BeyondHeadlines मुज़फ्फ़रनगर के दंगा पीड़ित बच्चों की शिक्षा के लिए अभियान चलाना चाहती है. सबसे पहले दसवीं एवं बारहवीं की बोर्ड परिक्षाएं देने वालों बच्चों की तैयारी करवाने की ज़रूरत है. दंगा पीड़ित बच्चे चार महीने से स्कूल नहीं गए हैं और इनकी पढ़ाई पूरी तरह छूट गई है. आपसे मदद का अनुरोध है… आप मदद कर सकते हैं:- 1. दसवीं एवं बारहवीं की किताबें दान करके, 2. ज़मीनी स्तर पर बच्चों को कोचिंग देकर और 3. अपनी ओर से किसी शिक्षक को भेजकर….

हमारी टीम कैम्पों में जाकर ऐसे बच्चों के विषय में सर्वे कर रही है और जल्द ही इस विषय में आपसे जानकारी साझा करूंगा. इसके लिए आप हमसे आप afroz.alam.sahil@gmail.com या 09891322178 पर संपर्क कर सकते हैं.

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