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नेताओं की स्टडी टूर… या मस्ती टूर…?

Irshad Ali for BeyondHeadlines

सीखना जीवन के सतत विकास की प्रक्रिया का हिस्सा है. लेकिन सवाल यह है कि क्या सीखा जाए? कब सीखा जाए? और किसके लिए सीखा जाए?. इसका महत्व तब और बढ़ जाता है जब यह राजनीतिक दलों के नेताओं से संबंधित हो, और इसके लिए जनता के पैसे का इस्तेमाल होता हो.

अभी कुछ दिनों पहले कर्नाटक में 16 विधायकों ने राहुल गांधी के दबाव में आकर अपना दक्षिण अमेरिकी देशों का दौरा रद्द किया तो अब सपा के 16 विधायक विदेशी दौरे पर घूमने निकल चुके हैं.

यहां गंभीर सवाल यह है कि आखिर इनकी अर्न्तरात्माओं ने विदेशी दौरों पर मस्ती करने की इजाज़त कैसे दे दी? क्योंकि दोनों ही राज्यों में हालात बद से बदत्तर हैं. एक तरफ कर्नाटक में हालात सूखे के कारण बदहाल है. किसान आत्म-हत्या करने पर मजबूर हैं. मौतों का आंकड़ा 200 की गिनती पार कर चुका है. तो वहीं उत्तर-प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर में भी दंगा पीड़ित खुले आसमान के नीचे गुजर-बसर करने को मजबूर हैं.

लेकिन इन नेताओं को अपनी जिम्मेदारी का कोई एहसास नहीं हैं. आखिर क्या वजह है कि जिस जनता ने अपनी सेवा के लिए इन्हें चुनकर भेजा, उसका ख्याल इन्हें बिल्कुल भी नहीं आता  है?

कहा जाता है कि स्टडी टूर के लिए नेता विदेश जाते हैं.  ठीक है,  मान लिया,  ये लोग वास्तव में ही स्टडी के लिए वहां जाते हैं. लेकिन सीखकर क्या आते हैं? अगर वाक़ई कुछ सीखकर आते हैं तो इनकी कार्यशैली में कोई बदलाव क्यों नहीं आता है? क्यों  ये लोग अपनी कोई स्टडी रिपोर्ट, दस्तावेज सार्वजनिक नहीं करते है? जिससे पता चले कि हमारे नेताओं की ज्ञान में वृद्धि हुई है और जिस जनता के पैसे से स्टडी टूर पर गये थे अब उस जनता को भी ज्ञान अर्जन का लाभ मिलेगा. लेकिन वास्तविकता यही है कि नेताओं में कुछ सीखने, नया करने की इच्छा है ही नहीं, वरना अब तक देश काफी तरक्की कर चुका होता.

स्टडी टूर के लिए तो विदेशों से लोग भारत आते रहे हैं. इसका स्पष्ट उदाहरण है कि कई देशों के विशेषज्ञ पिछले साल कुम्भ के मेले के प्रबंधन की केस स्टडी करने भारत पहुंचे. वर्तमान में दिल्ली के विधानसभा चुनावों में ‘आप’ की जीत के लिए अहम भूमिका के रुप में मानी जा रहे फेसबुक और सोशल साईटस पर प्रचार के तरीके की केस स्टडी  करने के लिए फेसबुक ने एक योजना बनायी है. इतिहास इस बात का गवाह है कि इंडिया में केस स्टडी के लिए इतना कुछ है कि प्राचीन काल से लेकर आजतक विदेशी यहां आते रहे हैं. जबकि उत्तर प्रदेश के 17 विधायक कह रहे है कि वे विदेशों में ‘लोकतंत्र में बदलाव’ से संबंधी स्टडी टूर पर जा रहे हैं.

सवाल यह है विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में बहुत बड़ा बदलाव चल रहा है तो फिर ये विधायक भारत में रहते हुए क्यों कुछ नहीं सीख सकते? दरअसल सीखने की प्रक्रिया में दिमाग लगाना होता है मगर ये विलासी लोग दिमाग खर्च ही नहीं करना चाहते हैं तभी तो एक तरफ मुज़फ़्फ़रनगर के दंगा पीड़ित शरणार्थी ठंडी रातों में मरने को मजबूर है तो दूसरी तरफ सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह अपने बेटे अखिलेश यादव के साथ सैफई में आइटम नंबर डांस का लुफ्त उठा रहे हैं. क्या यही है नेताओं के लिए लोकतंत्र की परिभाषा कि उन्हें जनता के पैसे पर मस्ती करने के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया जाए?

अगर सीखना ही है तो नेता लोग सबसे पहले ईमानदारी, मितव्यता, वचनबद्धता, प्रतिबद्धता, कार्यों में पारदर्शिता, अनुशासनप्रियता, निर्णय निर्माण करना और जन भावनाओं का सम्मान करना सीखे. जो चीज हमारे आस-पास ही है उसे विदेशों में ढूंढने से क्या लाभ?

हमारे देश के अधिकांश नेताओं की काबिलियत क्या है?  इसके बारे में चर्चा करने की ज़रुरत ही नहीं है क्योंकि इसका पता तो व्यक्ति की कार्यशैली से ही चल जाता है और देश तो इनकी कार्यशैली से पहले से ही परिचित है. अगर वर्तमान भारतीय नेताओं से पूछा जाए कि उन्हें नेता क्यों बनना चाहिए? और नेता में क्या गुण होने चाहिए? तो शायद 10-15 फीसदी नेता भी संतोषजनक जबाव दे पाये. सवाल यह है जो नेता देश में होने वाले बदलावों और बदलावों की ज़रुरतों को गंभीरता से नहीं लेते हैं,  वे नेता स्टडी टूर से क्या सीखेंगे? और यहां आकर क्या काम करेंगे? वास्तव में स्टडी टूर तो बहाना है. मुख्य मक़सद तो मौज-मस्ती करके वही पुराने ढर्रे पर लौट आना है. नेताओ को अब समझने, सुधरने और अपने नज़रिये को बदलने की ज़रुरत है. जनता के पैसे को स्टडी टूर के नाम पर मस्ती करने, बर्बाद करने से बचाने की ज़रुरत है. वरना इसका ख़ामियाजा भुतना पड़ेगा.

(लेखक इन दिनों प्रशासनिक सेवा की तैयारी कर रहे हैं. उनसे  trustirshadali@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.)

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