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क्या काशी को सिकोड़ना चाहते हैं मोदी?

Chanchal  Ji for BeyondHeadlines

वह  (मोदी) काशी क्यों आया? संवैधानिक रूप से यह बेहूदा सवाल है. वह देश के किसी भी कोने में आ जा सकता है… लड़ सकता है… लेकिन इसका एक दूसरा रुख है जो इसकी नियति में है. यह काशी को सिकोड़ना चाहता है और साबित करना चाहता है कि काशी केवल कट्टरपंथियों की नगरी है और प्रतीक है ‘हिंदुत्व’ की…

चुनाव में इस तरह एक ध्रुवीकरण होगा और विभिन्न मतावलंबियों के बीच चौड़ी खाई बन जायगी और वह अपने मक़सद में सफल हो जायगा. लेकिन उसे यह नहीं मालूम कि काशी हिंदुत्व का असल दावेदार है. उसके हिंदुत्व में असल हिंदुत्व है, थोपा हुआ ज़हर से भरा विभाजनकारी आत्मघाती प्रवृत्ति नहीं है, जो तुम्हारे गिरोह का अलिखित संविधान है. काशी का हिंदुत्व समझने के लिए पहले काशी को जियो… वह काशी का ही जग प्रसिद्द स्वामी करपात्री जी हैं, जिन्होंने तुम्हारे गिरोह को ‘हिटलर की नाजायज औलाद’ कहा है.

अपराधियों! इस काशी का दिल तो देखो… काशी का बुद्ध कहता है ‘आप्पो भव’ प्रकाश स्वयं बनो. अनुदान और पुरुषार्थ में काशी ने पुरुषार्थ को चुना है. वहां न जाति है न मज़हब है, न लिंग भेद है. यह बाबा विश्वनाथ की नगरी है. यहां अविरल गति से गंगा बहती है. नजीर बनारसी कहते हैं- हम वजू भी करते हैं तो गंगा के पानी से. ‘यह कबीर की नगरी है चेलो! वह दोनों के कट्टरपंथ को तोड़ कर काशी को गढ़ता है. यहां तुलसी दास जैसे राम भक्त भी धर्म की असल परिभाषा दे जाते हैं –‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई’

आजादी की लड़ाई में बापू ने इसे उठा लिया-“वैष्णव  जन तो तेने कहिये जे पीर पराई जाने रे” यह काशी अपने आनबान पर खड़ा है. उसके लिए झुनझुना दिखा रहे हो कि ‘जीतेंगे तो काशी को विद्या की राजधानी बना देंगे’? वो तो पहले से ही है तुम क्या बनाओगे? योग से बड़ा कोइ बल नहीं, और तत्वज्ञान से बड़ा कोइ ज्ञान नहीं. दोनों काशी के घात से उठे हैं. यह पतंजलि और पाणिनी की नगरी है. इसे तुम क्या बनाओगे?

एक बात गांठ बांध लो – तुम इस नगरी को कुछ दे नहीं सकते, क्योंकि यह याचक नगरी नहीं है, तुम इसे लूट भी नहीं सकते… इसकी वजह तुम्हें जानने के लिए वारेन हेस्टिंगज से मिलना पड़ेगा कि किस तरह वह साड़ी पहन कर रात में काशी से भागा था. एक शब्द उस्ताद बिस्मिल्ला के खिलाफ बोल दो, चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान, उसे नागवार गुजरेगा. ख़याल रखना इसे फैजाबाद बनाने की कोशिश मत करना ‘कल्याण ‘ बन जाओगे.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, चित्रकार व समाजवादी आंदोलन के कर्णधार हैं. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे चंचल जी रेल मंत्रालय के सलाहकार भी रहे हैं.)

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