BeyondHeadlines Staff Reporter
लखनऊ : सूचना के अधिकार (आरटीआई) के ज़रिए इस तथ्य का पर्दाफ़ाश हुआ है कि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के थानों पर ठाकुर-ब्राह्मणों का क़ब्ज़ा है. यहां एक भी मुसलमान थानेदार नहीं है.
आरटीआई से हासिल दस्तावेज़ बताते हैं कि, लखनऊ के 43 थानों में एक भी मुसलमान थानेदार नहीं तैनात किया गया है. जबकि यूपी में मुसलमानों का आबादी 19 फ़ीसद है. वहीं 38 फ़ीसदी आबादी ओबीसी यानी कि अन्य पिछड़ा वर्ग की है, लेकिन थानों में उनका प्रतिनिधित्व मात्र 11.5 प्रतिशत तक ही सीमित है. वहीं 21 फ़ीसदी आबादी वाले अनुसूचित जाति की नुमाइंदगी लखनऊ के थानों में मात्र 11.5 प्रतिशत पर ही सिमट कर रह गई है.
ये महत्वपूर्ण जानकारी आरटीआई के तहत मानवाधिकार कार्यकर्ता ने हासिल की है, जिसे लखनऊ के अपर पुलिस अधीक्षक विधानसभा और जनसूचना अधिकारी ने उपलब्ध कराया है.
आरटीआई से हासिल महत्वपूर्ण दस्तावेज़ बताते हैं कि, लखनऊ के 43 थानों में से 18 में ब्राह्मण, 12 में क्षत्रिय, 02 में कायस्थ, 01 में वैश्य, 02 में कुर्मी, 01 में मोराई, 01 में काछी, 01 में ओबीसी, 01 में धोबी, 01 में जाटव, 01 में खटिक और 02 में अनुसूचित जाति के थानेदार तैनात हैं.
इस पूरे मामले में मानवाधिकार कार्यकर्ता संजय शर्मा का कहना है कि, सरकारों से उम्मीद तो यह की जाती है कि वे जाति-वर्ग-धर्म से ऊपर उठकर काम करेंगी पर सूबे के पुलिस थानों में बसपा की सरकारों में अनुसूचित जाति का दबदबा क़ायम रहता है, सपा में यादवों का तो बीजेपी में ब्राह्मण ठाकुरों का दबदबा क़ायम होने की परंपरा सी क़ायम हो गई है, जो लोकतंत्र के लिए घातक है.
संजय का कहना है कि, वे अपनी संस्था ‘तहरीर’ की ओर से सीएम योगी को पत्र लिखकर मांग करेंगे कि सरकारी पदों पर बिना किसी भेदभाव के समाज के सभी वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व दिया जाए.