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इमरान मसूद: इंशा अल्लाह आईपीएस बनकर ही देश की सेवा करूंगा…

अफ़रोज़ आलम साहिल, BeyondHeadlines

कामयाबी और पावर सिर्फ़ लगातार कोशिशों से हासिल की जा सकती है. सैय्यद इमरान मसूद की भी यही कहानी है. लगातार पांच प्रयासों के बाद इमरान इस बार सिविल सर्विस परीक्षा में 190 रैंक के साथ कामयाब हुए हैं.

इमरान कहते हैं कि, एक के बाद एक इम्तिहान में नाकाम होता रहा, लेकिन इन नाकामियों से निराश नहीं हुआ, बल्कि लगातार अपनी ग़लतियों से सीखता रहा, फिर दोगुनी एनर्जी के साथ तैयारी में लग जाता. मुझ में हमेशा ये कांफिडेंस रहा कि एक न एक दिन मैं ज़रूर कामयाब होऊंगा.

उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर में जन्मे इमरान मसूद के पिता सैय्यद अरशद हुसैन करियर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साईंस में लेखाधिकारी हैं. वहीं अम्मी तबस्सुम हुसैन लखनऊ के करामत हुसैन गर्ल्स इंटर कॉलेज में टीचर हैं. इनका परिवार लखनऊ के नख़्ख़ास इलाक़े में रहता है. इमरान सिर्फ़ दो भाई हैं. छोटा भाई आईडीबीआई बैंक में असिस्टेंट मैनेजर हैं.

इमरान ने दिल्ली के एयरफोर्स बाल भारती स्कूल से दसवीं की पढ़ाई की है. वहीं बारहवीं की पढ़ाई अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से की है. फिर इमरान ने वापस लखनऊ का रूख किया. लखनऊ यूनिवर्सिटी से बीए और फिर बीए एलएलबी की डिग्री हासिल की.

इमरान बताते हैं कि, मेरे तीन खलेरे भाई पहले से ही सिविल सर्विस में हैं. इनमें से तो एक आईएएस भी हैं. मैं हमेशा अपने इन भाईयों से प्रेरणा हासिल करता रहा. साथ ही ये बात भी ज़ेहन में थी कि जब तक हम खुद एम्पावर नहीं होंगे, दूसरों को एम्पावर कैसे कर सकते हैं. सिविल सर्विस ही एक ऐसा प्लेटफॉर्म है, जहां से आपकी बात सुनी जाएगी.

इमरान ने अपनी तैयारी 2014 में लखनऊ से ही शुरू की. यहां एक कोचिंग भी ज्वाईन की, लेकिन उसे 3-4 महीनों में ही छोड़ दिया. क्योंकि उन्हें कोचिंग करना बेहतर नहीं लगा. 2016 में वो दिल्ली के हमदर्द स्टडी सर्किल आएं और अगले साल जामिया मिल्लिया इस्लामिया आकर अपनी तैयारी की और कामयाब हुए.

इमरान ने बतौर सब्जेक्ट लॉ लिया था. वो बताते हैं कि, लॉ सब्जेक्ट में मेरी दिलचस्पी थी, लेकिन मुझे वकालत नहीं करना था. बल्कि मैं इसे सिविल सर्विस के लिए पढ़ना चाहता था. बीए एलएलबी भी मैंने यही सोचकर किया था. लॉ एक ऐसा सब्जेक्ट है, जो इंसान को हमेशा काम आता है. कोई आपको दबा नहीं सकता. कोई आपके अधिकारों का हनन नहीं कर सकता. और इससे मुझे बाक़ी के पेपर्स में काफ़ी मदद मिली. इंटरव्यू में भी ये बहुत काम आया. और उम्मीद है कि आगे और भी काम आएगा.

सिविल सर्विस की तैयारी करने वालों से इमरान कहते हैं कि, सिर्फ़ पढ़ने से कुछ नहीं होगा. आपको लिखना भी आना चाहिए. पढ़ने के साथ-साथ लिखने की प्रैक्टिस बहुत ज़रूरी है. और आमतौर पर तैयारी करने वाले यही ग़लती करते हैं. पढ़ते तो खूब हैं, लेकिन लिखने के मामले में पीछे रह जाते हैं. इसीलिए मैं लिखने की हमेशा प्रैक्टिस करता रहा. जामिया में भी हमें यही सिखाया गया. यहां मेन्स के लिए लगातार मॉक टेस्ट लिए गए.

दूसरी ये बात भी ज़रूरी है कि तैयारी के दौरान हमारा फ्रेंड सर्किल कैसा है. ये बहुत मायने रखता है. मैं खुशक़िस्मत रहा कि मुझे दिल्ली में एक अच्छा सर्किल मिला. हम सब आपस में काफ़ी डिस्कशन करते थे. इसका हमें बहुत फ़ायदा मिला.

इमरान का रूझान हमेशा से आईपीएस की तरफ़ रहा है. हालांकि उन्होंने बाक़ी लोगों की तरह पहली च्वाईस में आईएएस ही भरा था. लेकिन वो कहते हैं कि अब आईपीएस बनकर ही देश की सेवा करना चाहता हूं. और इंशा अल्लाह मेरे रैंक पर मुझे आईपीएस मिल जाएगा.

इमरान बताते हैं कि पुलिस हमेशा से एक फोर्स माना जाता रहा है, लेकिन मेरे लिए पुलिस एक सर्विस है. हमें इसे सर्विस में बदलना है. लोगों का माईंडसेट चेंज करना है. मैं पुलिस को क्रिमिनल्स के लिए टफ़ से टफ़ और लोगों के लिए फ्रेंडली बनाना चाहता हूं.

हालांकि वो यह भी बताते हैं कि, ये एक दिन का काम नहीं है कि मैंने ज्वाईन किया और रातों-रात सब बदल दिया. इसमें सरकार का सहयोग बहुत ज़रूरी है. और हां, पब्लिक को भी जागरूक होना पड़ेगा. पुलिस रिफॉर्म की मांग पब्लिक को ही करनी चाहिए. जब पब्लिक जागरूक होगी तो सरकार भी इस दिशा में सोचेगी.

अपने परिवार के साथ सैय्यद इमरान मसूद…

अपनी क़ौम के नौजवानों से इमरान कहते हैं कि, अपनी क़ौम में एक दिक्कत है कि अपने नौजवानों की हौसला-अफ़ज़ाई के बजाए टांग खींचने वाले लोग बहुत मिलेंगे. आप उनकी बिल्कुल भी मत सुनिए. मुझे भी कई लोगों ने कहा था कि तुम नहीं कर पाओगे. यहां मुसलमानों के साथ भेदभाव होता है. लेकिन मैंने हर नाकामी के बाद यही सोचा कि मेरी तैयारियों में कहीं न कहीं कोई कमी थी, तभी नहीं हो पाया. और हर बार मैंने दोगुनी और पॉजिटिव एनर्जी के साथ तैयारी की.

वो आगे कहते हैं कि, मैं अपने क़ौम के नौजवानों से कहना चाहूंगा कि दूसरों की सुनने के बजाए खुद की सलाहियत बढ़ाएं. खुद की कमियों को दूर करें. और आप अब थोड़ा बड़ा सोचें. खुद को कमज़ोर न समझें. अगर आपने मेहनत की है और आप में क़ाबलियत है तो आपको कोई नहीं रोक सकता. और हां, कामयाबी आपकी उपलब्धियों से तय नहीं की जाती है, बल्कि उन रूकावटों से मापी जाती है, जिन रूकावटों का सामना करके आपने ये कामयाबी हासिल की है. 

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