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हमें सोचना होगा कि बम शक्ति बढ़ाते हैं या हमें ख़तरे में डालते हैं — गौहर रज़ा

BeyondHeadlines News Desk

पटना : ‘अगर भारत-पाकिस्तान के बीच जंग होती है और वह जंग एटमी हो जाती है तो कोई नहीं बचेगा. न हिन्दुस्तान-पाकिस्तान की आवाम और न ही बांग्लादेश और दक्षिण एशियाई देश नागरिक. और अब तो न्यूट्राॅन बम आ गये हैं, जो इंसान के द्वारा बनाई गई सबसे डरावनी और घिनौनी चीज़ है. हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम दुनिया और देश में पैदा किए जाने वाले हर एक बम का विरोध करें, क्योंकि बम का होना ही इंसानियत के विरूद्ध है और यह हमें सदैव ख़तरनाक स्थिति में रखता है. अमेरिका 300 बम छोड़ने के लिए तैयार रखे हैं और एक बटन उसे किसी भी सेकेंड छोड़ सकता है. लेकिन वह आज सबसे असुरक्षित है. इसलिए ज़रूर सोचना चाहिए कि बम शक्ति बढ़ाते हैं या हमें ख़तरे में डालते हैं.’

उक्त बातें हिरोशिमा दिवस पर एप्सो और बिहार इप्टा द्वारा आयोजित सेमिनार में ‘भारतीय उपमहाद्वीप में परमाणु युद्ध का ख़तरा’ विषय पर अपनी बात रखते हुए मशहूर शायर, वैज्ञानिक और फिल्मकार गौहर रज़ा ने कहीं.

रज़ा ने कहा कि हमें बार-बार हिरोशिमा और नागासाकी को याद करना चाहिए. वहां एक छोटे से परमाणु बम से बर्बाद हुए दो शहरों की दशा की कल्पना करना चाहिए और यह ज़रूर सोचना चाहिए कि यदि आज यह हमारे शहर में होगा तो क्या होगा?

अपने संबोधन की शुरूआत करते हुए गौहर रज़ा ने कहा कि कल्पना करें कि आप इस सभाकक्ष में बैठे हैं और आपके पास यह सूचना आती है कि एक मिसाईल पटना की ओर आ रही है जो एटम बम से लैस है. सोचिये क्या होगा? सब कुछ ख़त्म. कुछ करने, कुछ सुनने की बात करने के लिए हम यहां अपनी उम्मीद पाले हैं. सब ख़त्म हो जाएगा.

वर्तमान में भारतीय उप-महाद्वीप के परिदृश्यों की चर्चा करते हुए गौहर रज़ा ने कहा कि पोखरन के समय देश के चरमपंथी ने हिन्दू बम की संज्ञा दी थी और पाकिस्तान जवाबी बम को वहां के चरमपंथियों ने इस्लामिक बम कहा था. और मज़ेदार बात यह है कि दोनों एक ही तकनीक से बने बम थें. इससे यह समझना चाहिए कि बम बनने से वे लोग ही खुश होते हैं जो फासिस्ट हैं और कट्टर हैं. किसी का भला नहीं चाहते हैं. आज मुल्क में और सीमा पार से बम की राजनीति हो रही है और एक दूसरे का कमज़ोर आंकने की अंधी दौड़ चल रही है. राजनीति लाख दावा करे, लेकिन बम सुरक्षित नहीं बनाते हमारे ऊपर ख़तरे को बढ़ाते हैं. मेरा यह मानना है कि देश में डिफेंस मिनिस्ट्री का नाम बदल कर आॅफेंस मिनिस्ट्री कर देना चाहिए. यह सिर्फ़ खर्चा बढ़ाते हैं और हमें असुरक्षित बनाते हैं.

सोवियत संघ के विघटन पर चर्चा करते हुए रज़ा ने कहा कि यदि बमों में ताक़त होती तो सोवियत संघ कभी नहीं टूटता. तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान में टीवी देखने की सज़ा मौत मुकर्रर की थी, लेकिन पूरी दुनिया ओसामा बिन लादेन को टीवी के कारण ही जानती है. इसलिए यह समझना ज़रूरी है कि तकनीक की दिशा और उपयोग इस देश के राजनेता और राजनीति तय करती है. इसलिए अलग आप नागरिक हैं, वैज्ञानिक हैं तो राजनीति को समझना होगा और इसी तरह से एक्ट करना होगा.

युद्ध के ख़िलाफ़ के आम जन की एकजुटता का आह्वान करते हुए गौहर रज़ा ने कहा कि हम तो फैक्ट्री के धुएं से परेशान होते हैं और इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते हैं, लेकिन बम के ख़िलाफ़ कुछ नहीं बोलते. वह दिन याद कीजिए जब यह बम किसी सिरफ़िरे के हाथ में होगी तो क्या होगा? इसलिए जीवन को बचाने के लिए हमें एक-एक बम के ख़िलाफ़, युद्ध के ख़िलाफ़ खड़ा होगा. एकजुट होना होगा.

व्याख्यान की शुरूआत में विधायक शकील अहमद खाँ ने कहा कि चारो ओर हिंसा, गुस्से, तकलीफ़ देने, एक-दूसरे को असम्मानित करने, दण्डित करने का समय है. ऐसे समय में चुप्पी ख़तरनाक है. आज हिरोशिमा दिवस के दिन हमें यह सोचने समझने का समय है कि हम किसके साथ हैं?

व्याख्यान की अध्यक्षता करते हुए ऐप्सों के उपाध्यक्ष व वरीय चिकित्सक डॉ. सत्यजीत ने कहा कि एटमी हथियारों का घातक परिणाम देखने के बाद भी हम चेते नहीं है और आज भी इसकी होड़ जारी है. हमें फिर संकल्प लेना चाहिए कि हम युद्ध नहीं होने देंगे.

ऐप्सो और इप्टा द्वारा आयोजित इस सेमिनार में राजद के प्रदेश अध्यक्ष रामचन्द्र पूर्वे, इंटक के अध्यक्ष चन्द्र प्रकाश सिंह, संस्कृतिकर्मी फणीश सिंह, साहित्यकार ब्रजकुमार पाण्डेय, कवि अरूण कमल, प्राध्यापक तरूण कुमार, डॉ. शकील, तनवीर अख्तर, फ़ीरोज़ अशरफ खाँ, सीताराम सिंह, अरशद अजमल, रूपेश, निवेदिता सहित बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी, कलाकार, साहित्यकार और सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित थें.

कार्यक्रम की शुरूआत में इप्टा के कलाकारों ने मख्दमू मोहिद्दीन की नज़्म ‘जाने वाले सिपाही से पूछो’ और सलिल चौधरी के गीत ‘दिशाएं’ का गायन संगीतकार सीताराम सिंह के निर्देशन में किया. ऋतु, रश्मी कुमारी, आर्या एवं कुमार शाश्वी ने गीतों का गायन किया.

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