BeyondHeadlines News Desk
नई दिल्ली: पिछले दो साल में आतंकी हमलों के कारण भारत-पाकिस्तान सीमा यानी एलओसी पर शहीद हुए भारतीय सेना के सैनिकों की संख्या 25 है.
ये जानकारी लोकसभा में सांसद के.एन. रामचन्द्रन द्वारा पूछे सवाल के जवाब में रक्षा मंत्रालय में राज्यमंत्री डॉ. सुभाष भामरे ने लिखित तौर पर दिया है.
इस जानकारी के मुताबिक़ साल 2017 में सामरिक कार्रवाईयों के दौरान सेना के 13 जवान शहीद हुए, वहीं साल 2018 में शहीद होने वाले सैनिकों की संख्या 12 रही.
सांसद के.एन. रामचन्द्रन ने ये भी सवाल पूछा था कि आतंकवादियों को कब तक निकाल कर बाहर किया जाएगा? इसके जवाब में डॉ. सुभाष भामरे ने बताया कि सभी अग्रणी चौकियों को आतंकवादी हमलों का सामना करने के लिए पर्याप्त रूप से सुदृढ़ बनाया गया है. रक्षा क्षेत्र में आधुनिक प्रौद्योगिकियों के उपयोग सहित निरंतर सुधार किए जा रहे हैं, ताकि इन्हें और अधिक सुदृढ़ और अनुकूल बनाया जा सके. सेना आतंकवादी घटनाओं और सुरक्षा उल्लंघनों जो विभिन्न घटनाओं में संलग्न पाए जाते हैं, का भी गहन अध्ययन करती है.
ये महज़ इत्तेफ़ाक़ है कि मंत्री डॉ. सुभाष भामरे ने ये जवाब 13 फरवरी, 2019 को दिया और अगले ही दिन अब तक की सबसे बड़ी आतंकी घटना आतंकियों ने पुलवामा में अंजाम दे दिया, जिसमें हमारे 44 जवान एक साथ शहीद हो गए.
बता दें कि जम्मू-कश्मीर के ख़ुफ़िया विभाग का मानना है कि कश्मीर के पुलवामा में अर्धसैनिक बलों पर हुए वीभत्स हमले को टाला जा सकता था. यही नहीं, एक शीर्ष सुरक्षा अधिकारी ने बीबीसी को बताया है कि पूरे देश की सुरक्षा एजेंसियों को 12 फ़रवरी को अलर्ट किया गया था कि जैश-ए-मोहम्मद सैन्य बलों पर बड़ा हमला कर सकता है. लेकिन शायद इस पर सरकार की ओर से कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया गया.
बीबीसी ने अपनी एक रिपोर्ट में ये भी लिखा है कि बीबीसी को विश्वसनीय सूत्रों से जानकारी मिली है कि हमले के तुरंत बाद पुलिस महानिदेशक दिलबाग सिंह ने नई दिल्ली में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को भी यही बात बताई है.
बीबीसी अपनी एक रिपोर्ट में लिखता है, पहचान गुप्त रखे जाने की शर्त पर एक सुरक्षा अधिकारी ने बताया कि अगर स्टेट इंटेलिजेंस की इनपुट को नई दिल्ली के साथ पहले से ही शेयर किया गया था तो 14 फ़रवरी को पुलवामा में हुआ हमला साफ़ तौर पर सुरक्षा में एक बड़ी चूक है.