Abdul Hafiz Gandhi for BeyondHeadlines
सवाल उठता है कि क्या केवल कानून बनाने से भ्रष्टाचार कम हो जाएगा या उसे रोकने के लिए कुछ अन्य व्यवस्था भी करने होंगे? सही बात तो यह है कि भ्रष्टाचार को कम करने के लिए कानून भी बनाने पड़ेंगे और अन्य व्यवस्था भी करने होंगे. अगर हम कानून कि बात करें तो लोकपाल और लोकायुक्त जैसे कानून पास करने के साथ हमें कुछ और भी नियमों की ज़रूरत पड़ेगी.
जहां तक लोकपाल का सवाल है तो और मज़बूती देने के लिए संविधैनिक रूप देना होगा और उसके दायरे में सरकारी कर्मचारियों के साथ-साथ एनजीओ, सिविल सोसाइटी, मीडिया और कारपोरेट जगत को भी लाना होगा. लेकिन लोकपाल को संसद के लिए जवाबदेह होना होगा और अपनी पूरी प्रक्रिया पारदर्शी रखनी होगी. यही नहीं, एक ऐसा भी कानून बनाना होगा जो अनिवार्य करे कि सांसद, विधायक, ग्राम प्रधान, मेयर, पार्षद, सरकारी कर्मचारी, वकील, शिक्षक, डाक्टर, पत्रकार और कॉर्पोरेट कंपनियों में काम करने वाले अपने साल भर की कमाई की जानकारी सरकार को दें.
जैसा कि हमें पता है कि काफी समय से चुनाव सुधार की बातें हो रही हैं. भ्रष्टाचार पर काबू पाने के लिए इसमें सुधार का होना आवश्यक है. चुनाव में इतना पैसा खर्च किया जाता है और बाद में चुने गए प्रतिनिधि इस पैसे को निकालने के लिए भ्रष्टाचार का सहारा लेते हैं. कुछ दल ऐसे हैं जो चुनाव का टिकट पैसा लेकर देती हैं. इस प्रथा पर प्रतिबंध लगना चाहिए.
इंद्रजीत गुप्त समिति ने अपनी सिफारिशों में कहा था कि चुनाव खर्च सरकार को उठाना चाहिए. इस दिशा में अगर क़दम उठाए जाएं तो राजनीतिक दलों के पास जो काले धन आते हैं, पर रोक लगेगी. राजनीतिक दलों के अकाउंट्स को भी अब सूचना के अधिकार के तहत कर दिए जाने चाहिए ताकि गलत तरीके से आया हुआ धन आसानी से पकड़ में आ सके.
मीडिया और कॉर्पोरेट कंपनियों द्वारा की गई अनियमितताएं तभी रुक सकती हैं जब मीडिया और कॉर्पोरेट को भी सूचना के अधिकार के तहत लाया जाए. यह बहुत ज़रूरी है, नहीं तो मीडिया और कॉर्पोरेट में भ्रष्टाचार बढ़ता ही जाएगा.
मेरा मानना है कि स्कूल और कॉलेज में भी सूचना को विषय के रूप में पढ़ाना चाहिए ताकि जनता को अधिकतम जानकारी मिल पाए. सूचना के अधिकार की जागरूकता से आने वाले समय में भ्रष्टाचार से लड़ने में काफी मदद मिलेगी.
इसके साथ ज्यूडिशियल रिफार्म करने की भी बहुत ज़रूरत है. भ्रष्टाचार के मामले सालों कोर्ट में पड़े रहते हैं जिससे भ्रष्टाचारियों को ताक़त मिलती है. भ्रष्टाचार से संबंधित केसों का फैसला फास्ट ट्रैक कोर्ट से करने की व्यवस्था करने होंगे. पुलिस प्रशासन में भी सुधार किया जाना चाहिए. क्योंकि लोगों का विश्वास पुलिस पर से दिन प्रतिदिन उठता जा रहा है. हर कोई पुलिस को संदेह की दृष्टि से देखता है. पुलिस प्रशासन में सुधार समय की मांग है.
जिन नियमों और सुधार की बात ऊपर है उनके साथ कुछ बुनियादी बदलाव भी आवश्यक हैं. जैसे ज़मीन और खेत-खलिहानों के रिकार्डस को डिटीलाईज करना होगा. अगर यह हो जाता है तो कोई भी कहीं बैठ कर इंटरनेट की मदद से रिकार्डस को देख सकता है और ज़रूरत पड़ने पर कंप्यूटर से प्रिंट-आउट किया जा सकता है. इस डिटीलाईजेशन से तहसीलों में हो रहे भ्रष्टाचार से मुक्ति मिलेगी. हमारे देश की तहसीलों में गरीब किसानों का काम रिश्वत दिए बिना नहीं होता.
इसी तरह 20,000 हजार से ऊपर कोई भी खरीद को बैंकों के ऑनलाइन पेमेन्ट द्वारा अनिवार्य करना होगा. इससे काफी हद तक काले धन से ख़रीद-फरोख्त रुक जाएगी और टैक्स कलेक्शन में मदद मिलेगी.
सरकारी योजनाओं का लाभ गरीबों को नहीं मिल पा रहे हैं. इन सभी परियोजनाओं में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए पैसा सीधे गरीबों के अकाउन्ट्स में जाना चाहिए. चाहे सस्ते राशन की बात हो, वृद्धा और विधवा पेंशन हो, इन्दिरा आवास योजना या रोज़गार गारंटी योजना हो, पैसा सीधे गरीबों के अकाउन्ट्स में जाना चाहिए.
भारत सरकार ने अभी इस बारे में कोशिश की है कि कुछ सरकारी योजनाओं को आधार कार्ड के साथ जोड़ रहे हैं. इससे गरीबों के लिए दिया गया पैसा गरीबों तक जाएगा. अक्सर होता यह है कि गरीबों का पैसा अमीरों की जेब में चला जाता है. उदाहरण के लिए भारत सरकार रसोई गैस पर सब्सिडी देती है. इस सब्सिडी जितना लाभ अमीर लोग उठाते हैं उतना लाभ गरीबों को मिल ही नहीं पाता. गरीब तो आज भी केरोसिन और लकड़ी के चूल्हे जला कर अपना खाना पकाते हैं. क्या बेहतर हो कि रसोई गैस सब्सिडी का पैसा गरीब के अकाउन्ट्स में सीधा पहुंचा दिया जाए.
पेट्रोलियम पर दी जाने वाली सब्सिडी का लाभ भी किसान कम ही उठाते हैं, इसका फायदा रंग और पेन्ट्स बनाने वाली फैक्टरीज़ अधिक उठाती हैं. अगर किसानों को सीधे यह सब्सिडी की राशि उनके अकाउन्ट्स में डाल दिया जाए तो बेहतर रहेगा. सब्सिडी का लाभ सीधे किसान और गरीब की जेब तक पहुँचाने से सब्सिडी के दुरुपयोग पर रोक लगेगी.
इसके साथ सरकारें जो सामान खरीदती हैं उसकी खरीद-बिक्री में पारदर्शिता होनी चाहिए. हमारे देश के सुरक्षा-बजट खर्च में पारदर्शिता होनी चाहिए. समय-समय पर सेना के लिए खरीदे गए हथियारों और अन्य चीजों पर सवाल उठते रहते हैं. इस यह ज़रूरी है कि यहां भी पूरी तरह से पारदर्शिता बरती जाए.
इसके अलावा जब तक हम टिकट चेकर को पैसे देकर रेल कोच में सुविधाएं खरीदते रहेंगे और बच्चों को कहेंगे कि ‘कह दो पापा घर पर नहीं हैं’ उस समय तक भ्रष्टाचार पर रोक लगाना मुश्किल लगता है. यहाँ पर मोरल एजुकेशन के महत्व का अनुमान होता है. मेरा मानना है कि टेक्नोलॉजी, इंटरनेट, रिकार्ड्स का डिटीलाईजेशन, ऊपर स्थित कानून बनाने और कुछ नियमों में परिवर्तन करके बहुत हद तक भ्रष्टाचार पर काबू पाया जा सकता है.
और यह भी सच है कि भ्रष्टाचार को पूरी तरह समाप्त तो केवल मोरल एजुकेशन से ही किया जा सकता है. बाकी चीजें तो उसे कम कर सकती हैं, पर मिटा नहीं सकती.
(लेखक जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में शोध छात्र और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष हैं. उनसे abdulhafizgandhi@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है).
