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आंदोलन का पैसाः पाई-पाई के हिसाब में लाखों इधर-उधर?

Dilnawaz Pasha

नई दिल्ली.  अप्रैल 2011 में जंतर-मंतर पर जनलोकपाल के लिए शुरु हुए जिस भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन ने एक बेहतर भारत की उम्मीद दी थी और अगस्त में रामलीला मैदान इस उम्मीद को और मजबूत किया था, अब एक साल बाद वहीं आंदोलन भ्रष्टाचार के आरोपों के घेरे में हैं। आंदोलन पर सवाल भी वही लोग उठा रहे हैं जिन्होंने कभी दिन-रात आंदोलन के लिए काम किया था।

इंडिया अगेंस्ट करप्शन के बैनर तले शुरु हुए आंदोलन ने पिछले एक साल में कई रूप बदल लिए हैं। व्यवस्था परिवर्तन के लिए शुरु हुआ यह आंदोलन अब राजनीतिक रूप ले चुका है। कभी अरविंद केजरीवाल को अपना उत्तराधिकारी बताने वाले अन्ना हजारे अब उनसे अपना रास्ता अलग कर चुके हैं। अपने साथ साये की तरह रहने वाले निजी सचिव सुरेश पठारे को भी अन्ना हजारे ने खुद से अलग कर दिया है।

अगस्त 2011 में जब अन्ना हजारे रामलीला मैदान में अनशन पर बैठे तब लोगों ने सिर्फ वहां पहुंचकर ही उनकी आवाज बुलंद नहीं की थी बल्कि आंदोलन के लिए भारी भरकम चंदा भी दिया था। लोगों ने अपनी हैसियत से अन्ना के आंदोलन में चंदा दिया। कोई अपनी जेब के सारे पैसे दान में देकर पैदल घर गया, किसी छात्र ने अपनी महीने की पॉकेट मनी आंदोलन में दे दी तो कुछ ने अपनी महीने भर की सैलरी को भ्रष्टाचार मुक्त भारत के लिए भेंट कर दिया। कई अमीरों ने भी अपना दिल आंदोलन के लिए खोल दिया।

नवंबर 2011 में जारी की गई आंदोलन की ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया था- ‘यह सुखद है कि 23138 लोगों ने एक हजार रुपये से कम का दान किया। साधन विहीन जीवन जीने वाले लोगों ने अपनी मेहनत की कमाई में से एक, दो और पांच रुपये आंदोलन के लिए दान करके हमारा दिल जीत लिया।’

लेकिन पारदर्शिता और ईमानदारी की बात करने वाले अरविंद केजरीवाल और उनके बाकी साथी लोगों की इस मेहनत की कमाई का सही-सही लेखा जोखा नहीं दे पाए। हाल ही में मीडिया में आई रिपोर्टों में कहा गया है कि अरविंद केजरीवाल ने आंदोलन के बचे पैसे (करीब 2 करोड़ रुपये) को अन्ना को वापस देने की पेशकश की थी। लेकिन हकीकत यह है कि अन्ना के आंदोलन की जेब अब बिलकुल खाली है और आंदोलन के पास कभी दो करोड़ रुपये की बचत थी ही नहीं।

अरविंद केजरीवाल की एनजीओ पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन ने 31 मार्च 2012 तक की ऑडिट रिपोर्ट पेश की है। दैनिक भास्कर डॉट कॉम ने जब इस रिपोर्ट और नवंबर 2011 में सितंबर 2011 तक के खर्चों की रिपोर्ट का अध्ययन किया तो कई गड़बड़ियां सामने आईं।

आगे जानिए क्या है आंदोलन की रिपोर्ट में, कहां से आया पैसा और कहां और कैसे हुआ खर्च और क्यों उठ रहे हैं अरविंद केजरीवाल पर सवाल।

यहां से मिला दान

नवंबर 2011 में 1अप्रैल 2011 से 30 सितंबर 2011 तक की ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक 30 सितंबर 2011 तक आंदोलन को कुल 2 करोड़ 51 लाख 99 हजार और 78 रुपए बतौर चंदे के रूप में मिले। इस दौरान ट्रस्ट को कई ज्ञात और अज्ञात स्त्रोतों से पैसा मिला। इस ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक 33 लाख 80 हजार और 463 रुपए ऐसे लोगों ने चैक या बैंक डिपॉजिट के जरिए दान किए जिनके बारे में ट्रस्ट को जानकारी नहीं थी। ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया था कि यह पैसा वापस कर दिया जाएगा। इस ऑडिट रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि कुछ लोगों ने पर्ची लेकर दान दिया लेकिन जब उनसे बाद में कॉल करके अतिरिक्त जानकारी मांगी गई तो उन्होंने जानकारी नहीं दी। इस कारण ट्रस्ट ने ऐसे लोगों से मिले 8 लाख 75 हजार और 234 रुपये लौटाने के फैसला लिया।

रिपोर्ट के मुताबिक कुल 27505 लोगों के दान को रिकॉर्ड किया गया। हालांकि यह भी कहा गया कि वास्तविक दानकर्ताओं की संख्या ज्यादा भी हो सकती है क्योंकि कुछ गांवो और मुहल्लों, स्कूलों में समूहों ने दान किया जिसे बाद में गांव या स्कूल के नाम से लिखवा दिया गया।

सबसे ज्यादा दान रामलीला मैदान के अनशन के दौरान मिला। यहां कुल 25023 लोगों ने व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से दान किया। इनमें से 23138 लोगों ने एक हजार रुपये से कम का दान किया जबकि 400 लोगों ने दस हजार से अधिक रुपये दान किए।

आंदोलन को सबसे अधिक 25 लाख रुपये जिंदल स्टील की ओर से सीताराम जिंदल ने दान किए। शांति भूषण ने भी 4 लाख रुपये आंदोलन को दान किए। नीरज दिलीप भागव ने तीन लाख रुपये का दान दिया। यही नहीं दिल्ली के मजरी गांव के ग्रामीणों ने 2 लाख 1 हजार रुपये दान किए। रामलीला मैदान के अनशन के दौरान 10 हजार रुपये से कम चंदा देने वाले लोगों ने कुल 92 लाख 49 हजार और 9 रुपये दान दिए।

30 सितंबर 2011 तक पीसीआरएफ के खाते में आए कुल 2 करोड़ 52 लाख 14 हजार और 478 रुपये (जिनमें चंदे में मिले 2 करोड़ 51 लाख 99 हजार 78 रुपये भी शामिल है) में से कुल 1 करोड़ 57 लाख 49 हजार और 58 रुपये आंदोलन के विभिन्न कार्यों पर खर्च हो गए। यानि 30 सितंबर तक आंदोलन के पास 94 लाख 65  हजार और 419 रुपये का अतिरिक्त फंड था। अज्ञात स्त्रोतों से मिले पैसे को लौटाने समेत उस वक्त आंदोलन को कुल 24 लाख 91 हजार 805 रुपये चुकाने थे। इस तरह करीब 70 लाख रुपये 1 अक्टूबर 2011 तक आंदोलन के पास थे।

क्या कहती है 31 मार्च 2012 तक की ऑडिट रिपोर्ट 

1 अप्रैल 2011 से 31 मार्च 2012 तक की ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक इसस दौरान आंदोलन को 3 करोड़ 17 लाख 87 हजार रुपये चंदे के रूप में मिले। जबकि अन्य स्त्रोतों से 1 लाख 70 हजार 599 रुपये की आय हुई। इस दौरान प्रबंधन और अन्य संबंधित खर्चों पर कुल 3 करोड़ 2 लाख 58 हजार और 139 रुपये खर्च कर दिए गए। यानि इंडिया अगेंस्ट करप्शन के कोर्पस फंड में 1 अप्रैल 2012 को 15 लाख 76 हजार 81 रुपये स्थानांत्रित किए गए। बैलैंसशीट के मुताबिक पीसीआरएफ के खाते में 1 अप्रैल 2012 को कुल 74 लाख 35 हजार 154 रुपये का कैश और बैलेंस था।

इस दौरान अन्ना एसएमएस कार्ड के जरिए कुल 15 लाख 9 हजार 415 रुपये, जनलोकपाल बुकलैट की बिक्री से 96155 रुपये, अरविंद केजरीवाल द्वारा लिखी गई स्वराज किताब की बिक्री से 4 लाख 37 हजार 136 रुपये, अन्य डोनेशन से 25 हजार 900 रुपये और सामान्य डोनेशन से 3 करोड़ 9 लाख 96 हजार 494 रुपये आंदोलन को प्राप्त हुए। यही नहीं 71 हजार 900 रुपये अन्य दान के रूप में मिले। इस तरह इस एक साल के अंतराल में आंदोलन को कुल 3 करोड़ 17 लाख 87 हजार रुपये का दान मिला। यही नहीं अन्य स्त्रोंतों से आंदोलन को 1 लाख 70 हजार 599 रुपये की आय हुई।

खर्चे का लेखा जोखा

1 अप्रैल 2011 से 30 सितंबर 2011 तक की ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन के दौरान नजागरुकता कार्यक्रमों पर 45,50,334 रुपये, पब्लिक बैठकों पर 52,27,495 रुपये, टीम अन्ना के सदस्यों की यात्राओं पर 9 लाख 83 हजार 980 रुपये, प्रैस कांफ्रेंसों पर 4 लाख 62 हजार 264 रुपये, एनजीओ के कर्मचारियों की सैलरी पर 9 लाख 29 हजार रुपये, प्रिटिंग और स्टेशनरी पर 2 लाख 81 हजार 318 रुपये, किताबों की छपाई पर 26 लाख 55 हजार 978 रुपये खर्च किए गए। (समस्त खर्चों के लिए सूची देखें।)

31 मार्च 2012 तक के खर्चों का लेखा जोखा

31मार्च 2012 तक की ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक जनजागरूकता अभियानों पर 1 करोड़ 17 लाख 36 हजार और 448 रुपये खर्च किए गए। यही नहीं जागरूकता कार्यक्रमों पर 1 करोड़ 3 लाख 57 हजार 810 रुपये खर्च किए गए। इस दौरान टीम अन्ना के सदस्यों की यात्राओं पर कुल 22 लाख 35 हजार 198 रुपये खर्च हुए। संचार पर 8 लाख 46 हजार 460 रुपये और कर्मचारियों की सैलरी पर 19 लाख 78 हजार 825 रुपये खर्च किए गए। वहीं दफ्तर के किराए के लिए 3 लाख 28 हजार 987 रुपये चुकाए गए।

यहां हुआ घोटाला?

भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन के दौरान अरविंद केजरीवाल की कोई भी बात पारदर्शिता और जिम्मेदारी शब्द के बिना पूरी नहीं हुई। अरविंद केजरीवाल पारदर्शी और जिम्मेदार व्यवस्था की मांग करते हुए हर बार यह जोर देकर कहते रहे कि वो आंदोलन के लेखे-जोखे में पूरी पारदर्शिता बरतेंगे। लेकिन जब पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन द्वारा जारी की गई दो ऑडिट रिपोर्टों को गौर से देखा गया तो उनकी पारदर्शिता सवालों के घेरे में खड़ी नजर आई।

उदाहरण के तौर पर 1 अप्रैल 2011 से 30 सितंबर 2011 तक का केजरीवाल के दफ्तर का चाय और बिस्कुट पर होने वाला खर्च 21927 रुपये थे। लेकिन अगले 6 महीने में 89,070 रुपये चाय-बिस्कुट पर खर्च हुए। यानि चाय के खर्चे में ही करीब 4 गुना बढ़ोत्तरी हो गई। यही नहीं 30 सितंबर तक संचार माध्यमों पर कुल 268986 रुपये खर्च किए गए थे लेकिन अगले 6 महीने में 5,77,474 रुपये खर्च किए गए। यानि इस खर्च में भी दोगुनी बढ़ोत्तरी हुई।

सबसे तेजी से आंदोलन का कानूनी खर्चा बढ़ा। सितंबर तक कानूनी फीस के रूप में मात्र 14 हजार 936 रुपये चुकाए गए थे लेकिन 31 मार्च 2012 आते-आते यह फीस 2 लाख 90 हजार 742 रुपये तक पहुंच गई। ऑडिट रिपोर्ट बनाने की हड़बड़ी कई खर्चों में साफ नजर आई।

उदाहरण के तौर पर 31 मार्च 2012 तक की ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक प्रिंटिंग और स्टेशनरी पर कुल 1 लाख 53 हजार 965 रुपये खर्च किए गए लेकिन 30 सितंबर 2011 तक की रिपोर्ट इस खर्च को 2 लाख 81 हजार 318 रुपये बताती है। जाहिर है कि दोनों में से कोई न कोई खर्चा जरूर गलत लिखा गया है वरना ऐसा नहीं हो सकता कि 30 सितंबर तक जिस मद में करीब तीन लाख रुपये खर्च हो चुके हैं उस मद में अंतिम रिपोर्ट में खर्च आधा आए। या तो ऑडिट रिपोर्ट गलत बनाई गई है या फिर खर्चा का हिसाब-किताब सही नहीं रखा गया है।

आंदोलन के फंड के हिसाब-किताब की गड़बड़ी का सबसे बड़ा उदाहरण प्रकाशन पर हुए खर्च में दिखता है। 30 सितंबर तक की रिपोर्ट के मुताबिक प्रिटिंग पर कुल 26 लाख 55 हजार 978 रुपये खर्च हुए लेकिन 31 मार्च तक की रिपोर्ट इस खर्च को 16 लाख 69 हजार 656 रुपये बताती है। यानि एक बार फिर पहले अधिक करके दिखाए गए खर्चे को कम करके दिखाया गया है। हालांकि इतना फर्क जरूर है कि सितंबर की रिपोर्ट में इस खर्च को प्रिंटिंग खर्च बताया गया है जबकि 31 मार्च तक की रिपोर्ट में इसे पब्लिकेशन खर्च बताया गया है।

दोनों रिपोर्टों की तुलना करने में यह भी पता चलता है कि एनजीओ के दफ्तर के किराए के रूप में अप्रैल से सितंबर तक 139850 रुपए चुकाए गए जबकि सितंबर से मार्च तक 189077 रुपये चुकाए गए। यानि दफ्तर के किराया खर्च में भी 50 हजार की बढ़ोत्तरी हो गई।

केजरीवाल पर पहले से ही लगते रहे हैं घोटाले के आरोप….

एक साल पहले ही केजरीवाल के घर के बाहर चंदे की रकम के दुरुपयोग को लेकर धरना प्रदर्शन भी हो चुका है। आईएसी के पूर्व कार्यकर्ता श्रीओम के नेतृत्व में कुछ आईएसी कार्यकर्ताओं ने 15 अक्टूबर 2011 को पीसीआरएफ के दफ्तर के बाहर धरना दिया था। श्रीओम ने अरविंद केजरीवाल की एनजीओ के कर्मचारियों पर आंदोलन के पैसे का निजी इस्तेमाल करने आरोप लगाया था। यही नहीं अन्ना हजारे के पूर्व ब्लॉगर राजू परुलेकर ने भी केजरीवाल पर आंदोलन के पैसे के दुरुपयोग के आरोप लगाए थे। राजू परुलेकर ने ही अन्ना हजारे द्वारा लिखी गई एक चिट्ठी मीडिया को सौंपी थी जिसमें अन्ना हजारे ने अरविंद केजरीवाल और टीम के बाकी सदस्यों से हिसाब मांगा था। हालांकि बाद में इस चिट्ठी और राजू परुलेकर को झूठा बता दिया गया।

सितंबर 2011 में रालेगण सिद्धी में हुए टीम अन्ना की बैठक का मूल मुद्दा भी आंदोलन के लिए आए फंड का इस्तेमाल ही था। इस दौरान जब अन्ना हजारे से फंड के बारे में प्रश्न किए जाने लगे तो उन्होंने संस्था के खातों का आपात ऑडिट करवाकर जारी करने के लिए कहा था। 31 अक्टूबर 2011 को यह ऑडिट दिल्ली की भंवानी शर्मा एंड कंपनी ने पूरा किया और फिर इसे आंदोलन की वेबसाइट पर जारी किया गया।

हालांकि इसके बाद भी टीम अन्ना के प्रमुख सदस्य अरविंद केजरीवाल पर आंदोलन के पैसे के निजी इस्तेमाल के आरोप लगते रहे। पूरी तरह स्वयंसेवकों पर आधारित आंदोलन के लिए काम कर रहे लोगों को सैलरी देना भी सवालों के घेरे में आया।

इन तमाम घटनाक्रमों के बीच 22 अप्रैल 2012 को नोयडा में टीम अन्ना की कोर कमेटी की बैठक हुई। इस बैठक में अन्ना हजारे ने अरविंद केजरीवाल और दिल्ली की टीम के बाकी लोगों से आंदोलन के फंड का हिसाब मांगा तो बैठक का माहौल काफी गर्म हो गया। बैठक में उस वक्त मौजूद टीम अन्ना के पूर्व सदस्य मुफ्ती शमूम काजमी के मुताबिक अरविंद ने अन्ना से साफ कहा था कि वो हर खर्चे का हिसाब नहीं दे सकते।

यही नहीं इसके बाद टीम अन्ना को चंदा देने वाले कई लोगों ने अपना पैसा वापस भी मांगा। ऐसे ही एक व्यक्ति को दिल्ली के जंतर-मंतर पर हुए प्रदर्शन के दौरान अन्ना समर्थकों के गुस्से का शिकार भी होना पड़ा था।

पुराने साथी उठा रहे हैं खर्च पर सवाल

अन्ना हजारे की कोर टीम का हिस्सा रहे पत्रकार शिवेंद्र सिंह चौहान अब आंदोलन के खर्च पर सवाल उठा रहे हैं। शिवेंद्र सिंह कहते हैं, ‘खर्च के ब्यौरे में बताया गया है कि 1 करोड़ 17 लाख रुपये जागरुकता अभियान और 1 करोड़ 3 लाख रुपये जागरूकता कार्यक्रमों पर खर्च किए गए। लेकिन इन दोनों में फर्क क्या है?’ अन्ना हजारे के बेहद करीब रहे शिवेंद्र सिंह चौहान आंदोलन के खर्च में गड़बड़ी के कारण ही आंदोलन से अलग हो गए थे।

अब भंग हो चुकी कोर कमेटी के पूर्व सदस्य मुफ्ती शमूम काजमी कहते हैं, ‘अब ऐसा लगता है जैसे आंदोलन शुरु ही पैसा कमाने के लिए किया गया था। मैंने (और बाकी कई सदस्यों ने) आजतक कभी भी आंदोलन के लिए की गई यात्राओं के लिए टीए-डीए नहीं लिया फिर सदस्यों की यात्राओं पर इतनी रकम कैसे खर्च हो गई?’  काजमी का यह भी कहना है कि अरविंद केजरीवाल खुद पूर्व टैक्स कमीश्नर हैं, वो बेहतर जानते हैं कि पैसे के खर्च को कहां और कैसे दिखाना है। बेचारे अन्ना के नाम पर पैसा उगाकर अब उन्हें ही ठेंगा दिखा दिया गया है। वहीं टीम अन्ना के पूर्व सदस्य स्वामी अग्निवेश ने भी अक्टूबर 2011 में आंदोलन के खर्चों की जांच की मांग की थी। उस वक्त टीम अन्ना ने आंदोलन के खर्चों की जांच रिटायर्ड जज तक से करवाने की बात कही थी। अब जब आंदोलन के खर्च पर सवाल उठ रहे हैं तो क्या टीम अन्ना खर्च की स्वतंत्र जांच करवाएगी?

शक के घेरे में अन्ना के पूर्व सचिव सुरेश पठारे भी

अरविंद केजरीवाल से खुद को अलग करने के बाद अब अन्ना हजारे ने अपने निजी सचिव सुरेश पठारे को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया है। सुरेश पठारे अन्ना के संगठन भ्रष्टाचार विरोधी जनआंदोलन न्यास के कर्मचारी थे और अन्ना के निजी सचिव के रूप में काम करते थे। लेकिन अब केजीरवाल से खुद को अलग करने के बाद अन्ना ने सुरेश से भी इस्तीफा देने के लिए कह दिया है। सुरेश पठारे का कहना है कि वो निजी कारणों से इस्तीफा दे रहे हैं लेकिन अन्ना से जुड़े बेहद करीबी सूत्रों के मुताबिक बीते सोमवार को हुई बैठक में ही अन्ना ने सुरेश साफ-साफ इस्तीफा देने के लिए कह दिया है। सूत्रों के मुताबिक सुरेश पठारे दिल्ली की टीम के काफी नजदीक थे। सुरेश पठारे से जब अरविंद केजरीवाल द्वारा अन्ना हजारे को आंदोलन का पैसे देने की पेशकश के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘पिछले साल अरविंद केजरीवाल ने अन्ना हजारे के सामने आंदोलन के दौरान मिले पैसे को भ्रष्टाचार विरोधी जनआंदोलन न्यास के खाते में डालने की पेशकश की थी लेकिन अन्ना ने यह कह दिया था कि पैसा जनलोकपाल के आंदोलन के लिए आया है और यह उस पर ही खर्च होना चाहिए।’ हालांकि सुरेश पठारे ने यह नहीं बताया कि केजरीवाल ने यह पेशकश कब की थी। एक मराठी अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक अन्ना के कुछ करीबी लोग सुरेश पठारे की जांच की भी मांग कर रहे हैं। इस पर सुरेश पठारे ने कहा कि वो किसी बी तरह की जांच के लिए तैयार हैं और अगर उनके खिलाफ कोई भी सबूत मिलता है या कोई पैसा या संपत्ति बरामद होती है तो वो उन पर सवाल उठाने वाले लोगों को दे दी जाए।

गलत है दो करोड़ रुपये की पेशकश की खबरें

हाल ही में मीडिया में आई रिपोर्टों में कहा गया है कि अरविंद केजरीवाल ने अन्ना हजारे को आंदोलन के नाम पर इकट्ठा हुए दो करोड़ रुपये लौटाने की पेशकश की थी। लेकिन पीसीआरएफ की ऑडिट रिपोर्ट ऐसी रिपोर्टों को गलत साबित करती है। रिपोर्टों में कहा गया था कि जब अरविंद केजरीवाल और टीम के कुछ अन्य साथियों (मनीष सिसौदिया, गोपाल राय, कुमार विश्वास, संजय सिंह आदि) ने राजनीतिक राह पर जाने का मन बनाया तब ही अन्ना ने भी अपना रास्ता अलग करने की बात की थी। इसी दौरान अरविंद केजरीवाल ने उन्हें दो करोड़ रुपये लौटाने की पेशकश की थी। हालांकि 31 मार्च 2012 तक आंदोलन का अधिकतर पैसा खर्च हो चुका था और करीब 15 लाख रुपये ही बचे थे। यदि अरविंद ने पैसा लौटाने की पेशकश की भी होगी तो या तो पिछले साल नवंबर में की होगी या फिर दो करोड़ का तो जिक्र कम से कम नहीं किया होगा।

अन्ना ने खुद मना किया था चंदा इकट्ठा करने

रामलीला मैदान में इंडिया अगेंस्ट करप्शन को भारी-भरकम चंदा मिला था। रामलीला के आंदोलन के बाद अन्ना हजारे जब रालेगण सिद्धी लौटे थे तब उनसे मिलने रोजाना हजारों की तादाद में लोग आ रहे थे। ज्यादातर लोग आंदोलन के लिए चंदा देने की पेशकश कर रहे थे लेकिन अन्ना हजारे सबके सामने हाथ जोड़कर कहते थे कि पहले से ही काफी पैसा आ चुका है, अभी पैसे की जरूरत नहीं है। यही नहीं जब अन्ना को फंड के दुरुपयोग की शिकायतें मिली थी तब उन्होंने टीम को भी फंड इकट्ठा न करने के स्पष्ट निर्देश दिए थे लेकिन इसके बाद भी लोगों से चंदा लिया जाता रहा।

एक-एक पैसा सोच-समझ कर खर्च करते हैं अन्ना हजारे

सितंबर 2011 में मैं अन्ना का साक्षात्कार करने उनके गांव रालेगण सिद्धी गया था। इस दौरान करीब एक सप्ताह वहां रहा। कई बार अन्ना हजारे और लोगों के बीच के संवाद को सुना। एक दिन अन्ना हजारे अपने कमरे में ही दूर-दूर से मिलने आने वाले लोगों से बात कर रहे थे। इसी दौरान उनके निजी सचिव सुरेश पठारे आए और प्लाइबोर्ड की खरीद के बारे में बताया। अन्ना ने सभी डिजाइनों को देखा और दाम पूछे। अन्ना ने मिस्त्री को बुलाकर पूछा कि सस्ता वाला लेने बेहतर रहेगा या नहीं। मिस्त्री से सबसे किफायती दाम पर मिलने वाले बेहतर बोर्ड के बारे में पूछने के बाद अन्ना ने सुरेश पठारे से दुकानदार को फोन लगाने के लिए कहा और मोल भाव किया। अन्ना ने दुकानदार से प्रत्येक वर्ग फिट में दस पैसे कम करने का आग्रह किया। जब अन्ना ने फोन रख दिया तो वहां आए एक व्यक्ति ने अपनी समस्त पेंशन आंदोलन के लिए दान करने की पेशकश की। इस पर अन्ना ने कहा था, ‘अभी हमारे पास काफी पैसा है, ज्यादा पैसा खर्च करने के बजाए सही से खर्च करना बेहतर है।’

(This story was first published on www.dainikbhaskar.com)

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