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…तब पूर्ण होगा स्वस्थ भारत का सपना

Ashutosh Kumar Singh for BeyondHeadlines

किसी भी राष्ट-राज्य के नागरिक-स्वास्थ्य को समझे बिना वहां के विकास को नहीं समझा जा सकता है. दुनिया के तमाम विकसित देश अपने नागरिकों के स्वास्थ्य को लेकर हमेशा से चिंतनशील व बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने हेतु प्रयत्नशील रहे हैं. नागरिकों का बेहतर स्वास्थ्य राष्ट्र की प्रगति को तीव्रता प्रदान करता है. दुर्भाग्य से हिन्दुस्तान में ‘स्वास्थ्य चिंतन’ न तो सरकारी प्राथमिकता में है और न ही नागरिकों की दिनचर्या में। हिन्दुस्तान में स्वास्थ्य के प्रति नागरिक तो बेपरवाह है ही, हमारी सरकारों के पास भी कोई नियोजित ढांचागत व्यवस्था नहीं है जो देश के प्रत्येक नागरिक के स्वास्थ्य का ख्याल रख सके.

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स्वास्थ्य के नाम पर चहुंओर लूट मची हुई है. आम जनता तन, मन व धन के साथ-साथ सुख-चैन गवां कर चौराहे पर किमकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में है. घर की इज्जत-आबरू को बाजार में निलाम करने पर मजबूर है. सरकार के लाख के दावों के बावजूद देश के भविष्य कुपोषण के शिकार हैं, जन्मदात्रियां रक्तआल्पता (एनिमिया) के कारण मौत की नींद सो रही हैं.

दरअसल, आज हमारे देश की स्वास्थ्य नीति का ताना-बाना बीमारों को ठीक करने के इर्द-गिर्द है. जबकि नीति-निर्धारण बीमारी को खत्म करने पर केन्द्रित होने चाहिए. पोलियो से मुक्ति पाकर हम फूले नहीं समा रहे हैं, जबकि इस बीच कई नई बीमारियां देश को अपने गिरफ्त में जकड़ चुकी हैं.

मुख्यतः आयुर्वेद, होमियोपैथ और एलोपैथ पद्धति से बीमारों का इलाज होता है. हिन्दुस्तान में सबसे ज्यादा एलोपैथिक पद्धति अथवा अंग्रेजी दवाइयों के माध्यम से इलाज किया जा रहा है. स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े लोगों का मानना है कि अंग्रेजी दवाइयों से इलाज कराने में जिस अनुपात से फायदा मिलता है, उसी अनुपात से इसके नुकसान भी हैं. इतना ही नहीं महंगाई के इस दौर में लोगों के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च कर पाना बहुत मुश्किल हो रहा है. ऐसे में बीमारी से जो मार पड़ रही है, वह तो है ही साथ में आर्थिक बोझ भी उठाना पड़ता है. इन सभी समस्याओं पर ध्यान देने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि स्वास्थ्य की समस्या राष्ट्र के विकास में बहुत बड़ी बाधक है.

ऐसे में देश के प्रत्येक नागरिक को स्वस्थ रखने के लिए वृहद सरकारी नीति बनाने की ज़रूरत है. ऐसे उपायों पर ध्यान दिया जाना चाहिए ताकि कोई बीमार ही न पड़े.

मेरी समझ से देश की स्वास्थ्य व्यवस्था को नागरिकों के उम्र के हिसाब से तीन भागों में विभक्त करना चाहिए. 0-25 वर्ष तक, 26-59 वर्ष तक और 60 से मृत्युपर्यन्त. शुरू के 25 वर्ष और 60 वर्ष के बाद के नागरिकों के स्वास्थ्य की पूरी व्यवस्था निःशुल्क सरकार को करनी चाहिए. जहाँ तक 26-59 वर्ष तक के नागरिकों के स्वास्थ्य का प्रश्न है तो इन नागरिकों को अनिवार्य रूप से राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के अंतर्गत लाना चाहिए. जो कमा रहे हैं उनसे बीमा राशि का प्रीमियम भरवाने चाहिए, जो बेरोजगार है उनकी नौकरी मिलने तक उनका प्रीमियम सरकार को भरना चाहिए.

शुरू के 25 वर्ष नागरिकों को उत्पादक योग्य बनाने का समय है. ऐसे में अगर देश का नागरिक आर्थिक कारणों से खुद को स्वस्थ रखने में नाकाम होता है तो निश्चित रूप से हम जिस उत्पादक शक्ति अथवा मानव संसाधन का निर्माण कर रहे हैं, उसकी नींव कमजोर हो जायेगी और कमजोर नींव पर मजबूत इमारत खड़ी करना संभव नहीं होता. किसी भी लोक-कल्याणकारी राज्य-सरकार का यह महत्वपूर्ण दायित्व होता है कि वह अपने उत्पादन शक्ति को मजबूत करे.

अब बारी आती है 26-59 साल के नागरिकों पर ध्यान देने की. इस उम्र के नागरिक सामान्यतः कामकाजी होते हैं और देश के विकास में किसी न किसी रूप से उत्पादन शक्ति बन कर सहयोग कर रहे होते हैं. चाहे वे किसान के रूप में, जवान के रूप में अथवा किसी व्यवसायी के रूप में हों कुछ न कुछ उत्पादन कर ही रहे होते हैं. जब हमारी नींव मज़बूत रहेगी तो निश्चित ही इस उम्र में उत्पादन शक्तियाँ मज़बूत इमारत बनाने में सक्षम व सफल रहेंगी और अपनी उत्पादकता का शत् प्रतिशत देश हित में अर्पण कर पायेंगी. इनके स्वास्थ्य की देखभाल के लिए इनकी कमाई से न्यूनतम राशि लेकर इन्हें राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के अंतर्गत लाने की ज़रूरत है. जिससे उन्हें बीमार होने की सूरत में इलाज के नाम पर अलग से एक रूपये भी खर्च न करने पड़े.

अब बात करते हैं देश की सेवा कर चुके और बुढ़ापे की ओर अग्रसर 60 वर्ष की आयु पार कर चुके नागरिकों के स्वास्थ्य की. इनके स्वास्थ्य की जिम्मेदारी भी सरकार को पूरी तरह उठानी चाहिए. और इन्हें खुशहाल और स्वस्थ जीवन यापन के लिए प्रत्येक गांव में एक बुजुर्ग निवास भी खोलने चाहिए जहां पर गांव भर के बुजुर्ग एक साथ मिलजुल कर रह सकें और गांव के विकास में सहयोग भी दे सकें.

आदर्श स्वास्थ्य व्यवस्था लागू करने के लिए सरकार को निम्न सुझाओं पर गंभीरता-पूर्वक अमल करने की ज़रूरत है. प्रत्येक गाँव में सार्वजनिक शौचालय, खेलने योग्य प्लेग्राउंड,प्रत्येक स्कूल में योगा शिक्षक के साथ-साथ स्वास्थ्य शिक्षक की बहाली हो. प्रत्येक गाँव में सरकारी डॉक्टर, एक नर्स व एक कपांउडर की टीम रहे जिनके ऊपर प्राथमिक उपचार की जिम्मेदारी रहे. प्रत्येक गाँव में सरकारी केमिस्ट की दुकान, वाटर फिल्टरिंग प्लांट जिससे पेय योग्य शुद्ध जल की व्यवस्था हो सके, सभी कच्ची पक्की सड़कों के बगल में पीपल व नीम के पेड़ लगाने की व्यवस्था के साथ-साथ हर घर-आंगन में तुलसी का पौधा लगाने हेतु नागरिकों को जागरूक करने के लिए कैंपेन किया जाए.

उपरोक्त बातों का सार यह है कि स्वास्थ्य के नाम किसी भी स्थिति में नागरिकों पर आर्थिक दबाव नहीं आना चाहिए. और इसके लिए यह ज़रूरी है कि देश में पूर्णरूपेण कैशलेस स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराई जाए.

यदि उपरोक्त ढ़ाचागत व्यवस्था को हम नियोजित तरीके से लागू करने में सफल रहे तो निश्चित ही हम ‘स्वस्थ भारत विकसित भारत’ का सपना बहुत जल्द पूर्ण होते हुए देख पायेंगे.

(लेखक ‘स्वस्थ भारत विकिसित भारत’ अभियान चला रही प्रतिभा-जननी सेवा संस्थान के राष्ट्रीय समन्वयक व युवा पत्रकार हैं.)

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