Waqar Ali for BeyondHeadlines
रात बापू मेरे सपने में आएं… मैं उन्हें इस चकाचौंध भरी विकास की ओर अग्रसर दुनिया में अपने सामने देखकर स्तब्ध हो गया… बापू से पूछ बैठा कि बापू आपको तो गोडसे ने गोली मार दी थी तो आप यहां मेरे सामने कैसे?
तो बापू ने मुझसे जो बात कही उसे मैं शायद ही कभी भुला पाउंगा. बापू ने कहा कि जब गोडसे ने मुझे गोली मारी तब मैं मरा नहीं, अमर हो गया था… काश! अगर मैं उसी दिन मर गया होता तो बेहतर होता… ख्वाह-मखाह पूरी दुनिया इसे मेरा देश समझती है. तुम लोगों ने मुझे राष्ट्रपिता तो बना दिया पर तुम लोग कभी मेरे बेटे न बन सके…
बापू की इस नाराज़गी पर मैंने एक भारतीय होने का सबूत देते हुए कहा कि बापू दिक्कत कहां नहीं होती… हमारे देश में भी है… पर हम लगातार विकास कर रहे हैं… हम आपके सपने को साकार करने के लिए लगातार दिन रात मेहनत कर रहे हैं… और हां! एक दिन हम अपने देश को विकसित देश के रूप में ज़रूर देखेंगे.
मेरे इस उत्तर से बापू जो कि बड़ी मुश्किल से क्रोधित होते हैं, बहुत क्रोधित होकर बोले –मुझे पता है कि तुम लोगों ने कितना विकास किया है. इतना कहते ही बापू के आंखों में आंसू छलक आया और बापू रो पड़े.
अपने आंखों के आंसू को साफ करते हुए बापू फिर से बोले –जब सारा देश आज़ादी की खुशियां मना रहा था तब मैं देश के एक कोने में पड़ा आमरण अनशन कर रहा था. क्यूंकि साम्प्रदायिकता इस देश में अपने क़दम जमाने की कोशिश कर रही थी… जो कि मेरे जीते जी संभव नहीं था. मगर मेरे जाने के बाद ये तुम लोगों ने देश का क्या हाल कर दिया?
आगे बापू बिना रूके बोलते हैं –यहां हर गली मोहल्ले में पंडित और मुल्ले अपनी दुकान चला रहे हैं… और तुम लोग आपस में ही एक दूसरे को मार रहे हो. पिछले कई सालों में मेरी इस पवित्र धरती पर हज़ारों-लाखों सांप्रदायिक दंगे हो चुके हैं. और जब किसी की मां, किसी की बहन, किसी की बेटी की इज़्ज़त से खिलवाड़ होता है. कभी इसको मारा जाता है… कभी उसको मारा जाता है…
तुम लोग क्या समझते हो कि तुम किसी मुसलमान या हिन्दू को मारते हो? नहीं! तुम लोग दंगों में लोगों को नहीं, मुझे मारते हो… मैं हर पल मर रहा हूं…. अब तुम ही बताओ क्या तुम तरक्की कर रहे हो?
फिर बापू ने मेरी तरफ काफी ग़ौर से देखते हुए कहा कि अगर तुम लोग मुझे ज़रा भी अपना मानते हो और थोड़ी भी शर्म बाक़ी है, तो अहिंसा दिवस मनाना बंद करो और हर एक सेकंड को अहिंसा दिवस बना दो. मैं इस देश में ऊंची इमारतें नहीं देखना चाहता. मैं इस देश में खुश रहते लोग देखना चाहता हूं.
बापू की ये बात सुनते ही मेरी आत्मा को ठेस लगी. इससे पहले कि मैं कुछ कहता मेरी नींद खुल गयी. मगर अब मुझे नींद नहीं आ रही है. बापू के ये शब्द मुझे सोने नहीं दे रहे हैं. इसिलिए मैं कसम खता हूं कि मैं अपनी जान लगा दूंगा, मगर बापू के इस देश में साम्प्रदायिकता नहीं फैलने दूंगा…. क्यों हमारा साथ देंगे ना???