Pravin Kumar Singh for BeyondHeadlines
गांवों जवार के जितनें हरामखोर थे, प्रधान बनके आ गये अगली कतार में…! ये पक्तियां अदम गोंडवी की है. यह सुनने में भले ही ठीक न लगे. लेकिन ये खरा सच है…
यूपी में पंचायत का चुनाव चल रहा है, जिसमें खूब शह-मात और सियासी दांव-पेंच का खेल चल रहा है. जो पहले दुश्मन थे, वे दोस्त बन गये हैं. और दोस्त दुश्मन बन गये हैं. चुनाव नज़दीक आने के साथ ही मुर्गा और दारू का भोज तेज़ होता जा रहा है. शराब की बिक्री इतनी बढ़ गयी है कि अबकारी विभाग की सप्लाई कम पड़ गई है. ये तो न. 1 की दारू है. न. 2 की दारू कचिया शराब यहां के देवारा में प्रतिदिन बन रही है और ख़त्म हो जा रही है. चुनाव के साथ ही शराब पी कर मरने की ख़बर आ रही है. लेकिन पीने वालों को नो टेंशन…
जनता के हर दर्द को छूमंतर करने के लिए मसीहाओं का तांता लगा हुआ है. जिसको जो चाहिए बिंदास बताओं –किसी ने ये कहा, नहीं कि हैंडपम्प लग रहा हैं… ख़राब हो गया है! तुरन्त नया हैंडपम्प लग गया. किसी ने कहा कि घर पलस्तर करना है! तुरंत-फुरंत सीमेंट, गिट्टी-बालू सब सामान आ गया.
बिल्कुल आलादीन की चिराग़ की तरह, जो भी चाहिए आका… हाजिर है. बिन मांगें ही कोई पाकेट में 1 सौ, 5 सौ, 1 हजार का नोट हंसतें हुए डाल देता है. चुनाव के एक-दो दिन पूर्व की रात को साड़ी भी बटेंगी. जिसका लाभार्थी बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.
इस बार के चुनाव में वितरण का श्रीगणेश शुभ दीपावली से हुआ है. भावी प्रधानों ने जनता को खूब मिठाई खिलाकर एक दूसरे को बधाई दिया. इसके पूर्व ललर छट्ट में भी कपड़ा, फल आदि का वितरण किया जा चुका है. एक छोटा सा गांव है. जहां लगभग 13 सौ मतदाता हैं. वहां के निवर्तमान प्रधान और वर्तमान प्रधान प्रत्याशी 1 वोट का 5 हजार रूपये दे रहे हैं.
जो मतदाता रोजी-रोटी के लिए दिल्ली, बंबई, गुजरात आदि बाहर है, उन्हें आदर के साथ किराया-भाड़ा देकर बुलाया जा है. जिस शहर में ज्यादा मतदाता है. और ट्रेन का टिकट नहीं मिल पा रहा है, तो उनको रिजर्व बस से बुलाया जा रहा है. ये सब बहुत आश्चर्यजनक नहीं है. काहें कि बीते लोकसभा चुनाव में ऐसा हो चुका है.
हमारे देश में अपने से बड़ों का अनुसरण करने की परम्परा है. पूवर्ती लोकसभा चुनाव में जो-जो शुभ कार्य किया गया. वो सब कुछ करने की कोशिश की जा रही है. मैसेज़, वाट्सअप, फेसबुक का भी प्रयोग किया जा रहा है.
जो समझतें है कि हिन्दुस्तान का गांव 50-60 का ‘मदर इण्डिया’ बराबर गांव है. वैसा नहीं है. क्योंकि अपुन का प्यारा भारत इण्डिया बन गया है. दिल्ली शिकागो बन गया… काशी क्योटो बन गया तो गांव भी ‘विलेज’ बन गया है! जहां गांव-गांव में ‘शीतल बीयर’ की दुकान चार चांद लगा रही है.
मेरे आप के ज़माने में बच्चें पैसा बचा के सिनेमा देखने जाते थे. अब 20 रूपया के सीडी में 4 फिल्म देखने को मिल जाता है. नहीं 10 रू. में एचडी डाउनलोडेड फिल्म गांव-गांव बिक रहा है. जिसे लैपटाप या मोबाईल पर मज़े से देख सकते है. पैसे बच गये हैं. जिसका शीतल बीयर पीके गर्मी में कूल-कूल और ठंडी में… फुल इंज्वाय…
छोडि़य… बात प्रधानी के चुनाव की करें. मसला ये है भाई कोई ये नहीं बोल रहा है कि ये बुरा हो रहा है. बल्कि ये कहा जा रहा है कि ‘इसके बिना’… चुनाव संभव नहीं है? बापू ने ‘‘ग्राम स्वराज’’ से देश की तरक्की और खुशहाली का सपना देखा था. चलिये उनकी क्या खता है. वैसे भी हम उनके किस सपने के प्रति प्रतिबद्ध हैं. आज तो उनके कातिलों को पूजा जा रहा है.
कुल मिलाकर जो इतना पैसा खर्च कर रहा है. वो इसकी पूर्ति भी करेगा. जानते ही है कि पूर्ति… कैसे होती है? इस चुनाव से पिअक्कड़ों की संख्या में ज़बरदस्त इजाफा हुआ है. चुनाव के बाद तो कोई पिलाने वाला मिलेगा नहीं, अपना ही पीना पड़ेगा. जिससे अबकारी विभाग का फायदा होगा. राजस्व में वृद्धि होगी.
रही बात जीतने वाले के काम-काज की तो गांवों में कौन सा बड़ा काम शेष रह गया है. इनका काम होता है नाली, खड़ंजा आदि; इसी को तोड़-फोड़ कर बनाते रहते हैं. अब ग्रामसभा की ही क्यों बुराई करें माननीय सांसद और विधायक के भी विकास कार्य कंचित ही दिखाई देते है.
जो इस चुनाव को देखकर दुःखी होगा या चिन्ता करेगा. वो निरा बेवकूफ समझा जायेगा… पर क्या करें भाई दिल मानता नहीं.